डर से नहीं हौसले से जीती कैंसर के खिलाफ जंग, दूसरों के लिए पेश की मिसाल
कैंसर से लड़ रहे मरीजों के इलाज व उसके बाद आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए पटेल अस्पताल की उम्मीद संस्था की ओर से स्थानीय होटल में वैलेंटाइन डे मनाया गया।
जेएनएन, जालंधर। पटेल अस्पताल की 'उम्मीद' संस्था की ओर से स्थानीय होटल में हुए वैलेंटाइन डे समारोह में कैंसर से जंग जीत चुकी महिलाओं ने अपने अनुभव साझा किए, उपचार से जुड़े भ्रम भी दूर किए। उन्होंने परिवार की भावनात्मक और नैतिक मदद को संजीवनी करार दिया।
बहन ने दिया हौसला और जीत ली बीमारी से जंग
माडल टाउन रहने वाली कुलविन्दर कौर का कहना है कि बीमारी की पुष्टि से पहले जांच करवाने के लिए अस्पताल पहुंचे तो डाक्टरों ने रिपोर्ट आने का लंबा इंतजार करवाया। इस दौरान मेरी सांसें सूखने लगी थीं और काफी मन्नतें मांगी। देर शाम जब डाक्टरों ने ब्रेस्ट कैंसर होने की पुष्टि की तो मेरे आंसुओं का सैलाब थम नही रहा था। मुझे लगा बस अब जिंदगी का अंत है। कई दिन तक रोती रही। रातों की नींद उड़ गई और कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। मेरी बहन ने मुझे काफी समझाया कि आधुनिक तकनीक से बीमारी को हराना संभव है। डाक्टरों ने भी ईलाज से ठीक होने का आश्वासन दिया और हिम्मत जुटाई। बीमारी व ईलाज के दौरान होने वाले दर्द को हंस कर सहना सीख लिया और बीमारी से जीत कर आम लोगों की तरह जिंदगी व्यतीत कर रही हूं।
हौसले से दी कैंसर को मात
टांडा की रहने वाली सुखविंदर कौर ने भी बीमारी के साथ लड़ाई की दास्तान सुनाई। उन्होंने कहा कि जब उन्हें बीमारी के बारे में पता चला तो घर वालों के चेहरे मायूस हो गए। बच्चों के आंसू रुक नहीं रहे थे। तब मैंने खुद परिवार को हौसला दिया कि मुझे तो कुछ हुआ ही नहीं है। छोटी सी कैंसर की बीमारी है, इसे मात दूंगी और परिवार की देखभाल भी करूंगी। इलाज के दौरान टांडा से घर का पूरा कामकाज निपटाने के बाद जालंधर अस्पताल में इलाज करवाने आती थी। कीमोथेरेपी का दर्द भी अकेली ही सहन करती और दूसरे मरीजों को भी हौसला देती रही। वहां बैठे मरीज देख कर हैरान थे कि कैंसर होने के बावजूद महिला के चेहरे पर डर की छाया तक नहीं है। अब ईलाज के बाद बिल्कुल ठीक हूं और परिवार के साथ खुशियां बांट रही हूं।
शहीद की पत्नी हूं, बहादुरी से किया कैंसर का सामना
पठानकोट की रहने वाली शोभा रानी कहती हैं कि उनके पति फौज में कैप्टन थे और शहीद हो गए थे। उनकी शहादत के बाद परिवार में तीन बच्चे थे और कैंसर ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया। घर में कई भी देखरेख करने वाला नहीं था। जांच पड़ताल के बाद बीमारी की पुष्टि होने पर बच्चों को बाप के बाद मां का साया भी उठने की चिंता सताने लगी। मैं अकेली ही बच्चों का पालन पोषण करने के साथ बीमारी से लड़ाई लड़ी। कामकाज निपटा कर ईलाज के लिए जालंधर आती और शाम को फिर दोबारा घर पहुंच कर उन्हें खाना देती थी। हिम्मत से लड़ाई लड़ने के बाद सफलता मिली और बीमारी पूरी तरह से मात दी।
इस दौरान मरीजों को आहार और योग साधना से शरीर को बीमारी के दौरान तनाव से मुक्त करने के टिप्स दिए गए। अंत में मरीजों ने विभिन्न गेम्स का लुत्फ उठा कर ढेरों ईनाम जीते। यहां डॉ. सुषमा चोपड़ा, डॉ. अनुभा भरथुआर, डॉ. शिखा चावला, आंचल अग्रवाल, डॉ. प्रतिमा, नीना सोंधी, मीना सूदन, देवी महाजन, मीनू के अलावा राज्य के विभिन्न जिलों से आकर कैंसर का इलाज करवाने मरीज मौजूद थे।