जालंधर में विकास की बाट जोह रहे दो वार्डों में बंटे इलाके, पार्षद एक-दूसरे पर थोप रहे काम करवाने की जिम्मेदारी
नई वार्डबंदी के बाद शहर के कई क्षेत्र दो वार्डों में पड़ते हैं। यहां पर सड़क के एक तरफ एक वार्ड और दूसरी तरफ का इलाका दूसरे वार्ड में आता है। चुनाव के दौरान विकास करवाने का वादा करने वाले पार्षद बाद में क्षेत्र से मुंह मोड़ लेते हैं।
जालंधर [शाम सहगल]। दो वार्डों के बीच आने वाले शहर के अधिकतर क्षेत्र विकास को तरस गए हैं। यहां के लोगों को सड़कों के निर्माण से लेकर सीवरेज की सफाई, कूड़ा उठवाने से लेकर पेयजल की व्यवस्था करने के लिए भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यहां के लोग दो-दो पार्षदों के होने के बावजूद बुनियादी सुविधाओं से महरूम हैं। पार्षद विकास कार्य करवाने की जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालकर पल्ला झाड़ लेते हैं।
दरअसल, नई वार्डबंदी के बाद शहर के कई क्षेत्र दो वार्डों में पड़ते हैं। यहां पर सड़क के एक तरफ एक वार्ड और सड़क के दूसरी तरफ का इलाका दूसरे वार्ड में आता है। यहीं से शुरू होता है समस्याओं का सफर। श्रेय पाने की राजनीति के बीच दोनों तरफ के पार्षद ऐसे इलाकों का विकास करवाने से कतराते हैं। इसका परिणाम लोगों को भुगतना पड़ता है।
चुनाव से पहले दोनों तरफ के उम्मीदवार करते हैं विकास का वादा
निगम चुनाव से पहले कंपेन के दौरान दोनों तरफ के पार्षद विकास करवाने का दावा करते हैं। चुनाव होते ही ऐसे इलाकों का बंटवारा भी नहीं किया जाता, बल्कि लावारिस छोड़ दिया जाता है। बाद में, दोनों ओर के पार्षद भी ऐसे क्षेत्र के लोगों की सुनवाई करने से कतराने लगते हैं।
नगर निगम भी उदासीन
इस बारे में बर्तन बाजार के रहने वाले मनीष भारी बताते हैं कि अटारी बाजार का आधा हिस्सा वार्ड नंबर 52 और आधा हिस्सा वार्ड नंबर 54 में आता है। जरूरत पड़ने पर कोई भी पार्षद सुनवाई करने को तैयार नहीं होता। ऐसे में नगर निगम को पहुंच करनी पड़ती है, वहां पर भी स्थिति दो घरों का मेहमान वाली ही होती है।
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