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यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बिना हथियार जंग के मैदान में उतरी ट्रैफिक पुलिस

शहर में ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी और कर्मी यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बिना हथियार जंग के मैदान में डटे हुए हैं।

By JagranEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2020 09:27 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2020 09:27 PM (IST)
यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बिना हथियार जंग के मैदान में उतरी ट्रैफिक पुलिस
यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बिना हथियार जंग के मैदान में उतरी ट्रैफिक पुलिस

सुक्रांत, जालंधर

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शहर में ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी और कर्मी यातायात व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए बिना हथियार जंग के मैदान में डटे हुए हैं। इनके पास न तो पूरे साधन हैं और न ही संसाधन, लेकिन यातायात सुरक्षा का जिम्मा वे किसी तरह से पूरी तरह से निभाने में लगे हुए हैं। जंग के मैदान में एक लाठी के सहारे भी ट्रैफिक पुलिस के अधिकारी और कर्मचारी पूरी तो नहीं फिर भी काफी हद तक जंग जीतने में जी जान से जुटे हुए हैं। सरकार दावे करती है कि ट्रैफिक पुलिस को हर तरह की सहूलियत दी जा रही है लेकिन शहर के हालात इन सरकारी दावों की पोल खोल रहे हैं। ट्रैफिक पुलिस व परिवहन विभाग के पास न तो इतने साधन हैं कि होने वाली हर लापरवाही को रोक सकें और न ही इतने संसाधन हैं कि लापरवाही करने वालों को पकड़ सकें। शहर में मात्र यातायात को सुचारू करने के लिए ही चार सौ से ज्यादा पुलिस मुलाजिमों की आवश्यकता है लेकिन दो सौ से भी कम नफरी के सहारे शहर का यातायात चल रहा है। यातायात बाधित करने वाले वाहनों को हटाने के लिए पुलिस के पास कम से कम छह टो-अवे वैन होनी चाहिए लेकिन जालंधर ट्रैफिक पुलिस की बदकिस्मती है कि उसके पास टो-अवे वैन ही नहीं है। यही नही हादसों के बाद क्षतिग्रस्त वाहनों को उठाने के लिए एक क्रेन है, जो टो-अवे के लिए भी इस्तेमाल की जा रही है।

यही हाल परिवहन विभाग का है, हर तरह की कमी से जूझ रहा है। जालंधर के आरटीओ अपने विभाग में नफरी को पूरा मानते हैं क्योंकि वो काम के प्रति कर्मठ हैं। असलियत में वहां पर भी आधे लोगों से ही पूरा काम लिया जा रहा है। ----

विभाग में फैला भ्रष्टाचार भी बढ़ा रहा है परेशानी पुलिस और परिवहन विभाग में फैला भ्रष्टाचार भी परेशानी को बढ़ा रहा है। पहले से ही साधन और संसाधन की कमी से जूझ रहे पुलिस और परिवहन विभाग में हर साल दर्जन भर पुलिस कर्मियों पर भ्रष्टाचार के मामले दर्ज होते हैं और उनमें विभागीय कार्रवाई भी होती है। अपनी जेब भरने के लिए ओवर स्पीड, हेलमेट न होना, शराब पीकर गाड़ी चलाने सहित अन्य नियमों को तोड़ने वालों को पुलिस छोड़ देती है जिसका सीधा असर सरकारी खजाने पर पड़ता है।

------- ट्रैफिक पुलिस : संसाधनों की कमी क्रेन : जरूरत 6 की। विभाग के पास केवल एक। वह भी बड़ी दुर्घटनाओं में ही काम में लाई जाती है। टो-अवे वैन : जरूरत 6, मौजूद एक भी नहीं। स्पीड रडार : जरूरत चार, एक भी नहीं। एल्कोमीटर : जरूरत 14 थानों में प्रति दो के हिसाब से 28 और ट्रैफिक पुलिस के पास हैं मात्र 10 (इनमें से भी कई खराब हैं) नफरी : जरूरत 400, हैं 185 --------- भले ही ट्रैफिक विभाग के पास नफरी व संसाधन की कमी है लेकिन फिर भी हर पुलिस मुलाजिम जरूरत से ज्यादा काम कर रहा है। कहीं-कहीं पर थोड़ी दिक्कत आती है लेकिन उसे भी मेहनत और लगन से दूर कर लिया जाता है। इस सब के बावजूद किसी को रिश्वत लेने या भ्रष्टाचार न करने की इजाजत नहीं है और यदि कोई संलिप्त पाया जाता है तो कड़ी कार्रवाई की जाएगी।

नरेश डोगरा, डीसीपी ट्रैफिक -----

विभाग का हर कर्मी पूरे मन से काम कर रहा है। सारे कर्मचारी किसी भी लिहाज से नफरी, किसी साधन या संसाधन की कमी महसूस नहीं होने दे रहे। जितना भी विभाग के पास है, वो पर्याप्त है।

बलजिदर सिंह, आरटीओ


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