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यह है जालंधरः अपना दबदबा बनाने के लिए अंग्रेजों ने पुराने बाग का नाम रखा था कंपनी बाग

कंपनी बाग ही वह स्थान है जहां दीवान मोहकम चंद के साथ आई सेना ने ठहरकर महाकाली मंदिर की सुरक्षा सुनिश्चित की थी।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Tue, 24 Sep 2019 04:27 PM (IST)Updated: Wed, 25 Sep 2019 10:30 AM (IST)
यह है जालंधरः अपना दबदबा बनाने के लिए अंग्रेजों ने पुराने बाग का नाम रखा था कंपनी बाग
यह है जालंधरः अपना दबदबा बनाने के लिए अंग्रेजों ने पुराने बाग का नाम रखा था कंपनी बाग

जालंधर, जेएनएन। हिंदुस्तान पर अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने कई महत्वपूर्ण नगरों में कुछ बागों का निर्माण कराया और पहले से बने कुछ बागों को अपना नाम दिया। इसीलिए शायद जालंधर में भी अंग्रेजों ने कंपनी बाग को न बनवाकर पुराने बाग को ही अपना दबदबा बनाने के लिए कंपनी बाग नाम दे दिया।

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कुछ इतिहासकार भी इससे सहमत दिखाई देते हैं। जब हिंदुस्तान में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की ज्वाला भड़की, तब जालंधर के डेढ़ सौ के करीब युवक, जो ईस्ट इंडिया कंपनी सेना में भर्ती थे, वे अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के लिए मरने-मारने को आगे बढ़े। यह बात अंग्रेजों को परेशान करती रही। तब उन्होंने कंपनी बाग का नाम देकर कंपनी बहादुर का वर्चस्व दिखाने का प्रयास किया। ईस्ट इंडिया कंपनी को समर्पित यह कंपनी बाग अब नेहरू गार्डन के नाम से विख्यात है। इसे बनाने संवारने के प्रयास वर्षों से हो रहे हैं।

कुछ इतिहासकार कंपनी बाग वाले स्थान को सेनाओं के ठहराव का स्थल मानते रहे हैं। महाराजा रणजीत सिंह के समय की घटनाओं में हरिद्वार को जाने वाले सामंत या सेनानायक अपने लाव-लश्कर के साथ यहां ठहरा करते थे। दीवान मोहकम चंद ने इसी स्थान पर ठहर कर अपने साथ आई सेना के बूते महाकाली मंदिर की सुरक्षा सुनिश्चित की थी। आजकल इस बाग में नगर-निगम का कार्यालय है। कई निगम आयुक्तों ने इसे संभालने, संवारने और सुंदर बनाने के प्रयास भी किए। केवल एक बरगद का वृक्ष इसके इतिहाल का मूक साक्षी है। इसके एक कोने पर क्लॉक टावर भी बना है, वहां अब पंजाब प्रेस क्लब है ।

पहाड़ी पर स्थित था बाग पहाड़ीवाला

यह नाम बड़ा अजीब लगता होगा, लेकिन जालंधर ने एक दौर ऐसा भी देखा जब यहां छोटी सी पहाड़ी हुआ करती थी। इसके पास एक बाग भी था। इस बाग को बाग पहाड़ीवाला कहा जाता था। यह बाग टांडा रोड और सोढल रोड के बीच में हुआ करता था। आज वह पहाड़ी भी भौतिकता की भेंट चढ़ गई और यह बाग भी न जाने कब समाप्त हो गया। सनातन धर्म स्कूल के समीप एक छोटी सी बगीची बची रही और बगीची खन्नेयां भी इस बाग के अवशेषों को कुछ देर तक संभाले रही। ब्रिटिश राज्य में रेलवे का आगमन हुआ और रेल लाइन ने अच्छे भले बाग को दो बगीचियों में विभाजित कर दिया।

रेलवे का फाटक जो दो बगीचियों के बीच है आने जाने का साधन बना। वहां से सोढल मंदिर तक रेत के बड़े-बड़े टीले हुआ करते थे। सोढल मंदिर, जो औद्योगिक क्षेत्र में आ गया, वहां तक जाने के लिए लोग बड़ी कठिनाई अनुभव किया करते थे। इस बाग में नौका विहार के लिए एक लंबा चौड़ा सरोवर हुआ करता था। पहाड़ी के ऊपर एक छोटा-सा जलपान गृह भी हुआ करता था। यह बाग कब बना, इसके बारे में पक्की जानकारी तो नहीं है, परंतु अंग्रेज सिविल अधिकारी यहां छुट्टियों के दिन संध्या गुज़ारने आया करते थे।

(प्रस्तुतिः दीपक जालंधरी - लेखक जानी-मानी शख्सियत और शहर के जानकार हैं)


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