यह है जालंधरः Multiplex के युग में गुम हो गए शहर के 12 सिनेमाघर Jalandhar News
जालंधर के सिने-जगत से गहरे रिश्ते रहे हैं और यहां फिल्म वितरक यानि डिस्ट्रीब्यूटरों की मंडी भी उत्तरी भारत में सबसे बड़ी है।
जालंधर, जेएनएन। जालंधर में कई फिल्म निर्माता और एक्टर हुए हैं। इनमें यश चोपड़ा एवं ओपी रल्हन निर्देशक और बेगम पाशु, विमी और शाम रल्हन आदि शामिल हैं। शहर को इस बात का गर्व है कि यहां के म्यूजिक डायरेक्टर भी कमाल दिखा गए। इनमें ख्याम, हसन लाल, भगत राम और सुरिंदर कोहली के नाम लिए जा सकते हैं। हमारा यह सब बताने का भाव यह है कि जालंधर के सिने-जगत से गहरे रिश्ते रहे हैं और यहां फिल्म वितरक यानि डिस्ट्रीब्यूटरों की मंडी भी उत्तरी भारत में सबसे बड़ी है। फिर क्या कारण बना कि अतीत के गलियारों में कहां गुम हो गए, दर्जनभर सिनेमाघर।
एक दौर ऐसा था जब थका हारा मजदूर कुछ पैसों के बदले सिनेमा देखकर अपने दिनभर के थके हारे मन को सुकून दे लेता था। मध्यमवर्ग के लोग भी शुक्र, शनि और रविवार को अपने परिवार के साथ मनोरंजन के इस सस्ते साधन यानि सिनेमा का आनंद ले लेते थे। पृथ्वीराज और जुबैदा द्वारा अभिनीत पहली स्वाक फिल्म ‘आलम आरा’ घर-घर की कहानी बन गई थी। क्या अब श्रमिकों, छोटे दुकानदारों और निचले दर्जे के कर्मचारी को सिनेमा देखने का अवसर मिल सकता है? आज का सिनेमा पीवीआर और मल्टीपलेक्स जो धनी लोगों के लिए मनोरंजन उपलब्ध करा रहा है, वह साधारण मानव के हाथ से निकल गया है। इसके पीछे एक ही कारण है कि वह सिनेमाघर नहीं रहे।
कभी जालंधर में मात्र दो सिनेमाघर थे, एक कृष्ण, दूसरा हरि पैलेस। कृष्ण थियेटर हरि पैलेस वालों को किराये पर दे दिया गया तो उन्होंने इसका नाम रॉयलटाकी रख लिया जो बाद में कृष्णाटॉकी हो गया। एक सिनेमा घर वाल्मीकि गेट के नजदीक था, जिसे चित्र टॉकी कहा जाता था। इस सिनेमा के मालिक ने टूरिंडा टॉकी बना ली और उसकी प्रोजेक्टर लेकर वह कस्बों और मेलों ठेलों में फिल्में दिखाने लगा। विभाजन से पूर्व जो सिनेमाघर मुस्लिम दनाढ़य लोगों ने बनाने आरंभ किए थे वो आधे-अधूरे बीच में छोड़ कर पाकिस्तान चले गए।
ज्योति थियेटर में सात दिन तक पृथ्वी राज और शम्मी कपूर ने किया नाटक में अभिनय
फिर, जालंधर में जैसे-जैसे सिने दर्शकों की भीड़ बढ़ती गई। वैसे-वैसे सिनेमाघरों की संख्या भी बढ़ने लगी। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जालंधर में जो पहला सिनेमा बना वह था ज्योति थियेटर। मुंबई में बैठे सिने निर्माता की पहली पसंद इसी सिनेमाघर में फिल्म रिलीज करने की होती थी। लिहाजा बहुत सी बड़ी फिल्में ज्योति थियेटर में प्रदर्शित हुईं थीं जिनमें मुगले-आजम भी एक थी। ज्योति थियेटर को इस बात का भी गर्व होगा कि यहां पृथ्वीराज कपूर ने सात दिन दर्शकों के सामने आकर अपने नाटक पेश किए थे जिसके अभिनेता पृथ्वी और उनका बेटा शम्मी कपूर भी थे। ज्योति थियेटर में आज़ाद भारत की पहली पंजाबी फिल्म ‘चमन’ भी अभिनीत हुई थी जिसके लिए प्रसिद्ध कलाकार ओम प्रकाश और मजनू जालंधर आए थे।
इसके बाद मजबूर फिल्म से संत थियेटर का शुभारंभ हुआ। यह पहला थियेटर था जिसे वातानुकूल कहा जा सकता है क्योंकि यह थियेटर संत आइस मिल में था। इसके बाद लक्ष्मी सिनेमा बना जिसका शुभारंभ शम्मी कपूर और सुरैय्या की फिल्म ‘शमा परवाना’ से हुआ। मजे की बात यह है कि आइएस द्वारा निर्मित फिल्म ‘नास्तिक’ संत थियेटर में से दो हफ्ते के पश्चात उतार कर लक्ष्मी सिनेमा में लगा दी गई। जहां इसने तीस हफ्तों से ज्यादा का रिकॉर्ड बनाया। यह फिल्म बंटवारे के दर्द पर आधारित थी। इसका एक गाना आज तक लोगों के जहन में कायम है जिसके बोल थे ‘देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान’। जिन दिनों भारत-पाकिस्तान में हाकी मैच खेले जा रहे थे, तब पाकिस्तान के दर्शकों को सुगमता से वीजा मिला तब लक्ष्मी थियेटर में प्रदीप और बैजयंती माला अभिनीत फिल्म नागिन चल रही थी, तब पाकिस्तानी दर्शक के लिए प्रतिदिन पांच शो किए जाते रहे।
‘साईन पायल’ देवानंद की फिल्म ‘ज्यूल थीफ़’ से आरंभ हुआ। यह थियेटर नकोदर रोड पर नई तकनीक से सजाया संवारा गया। इसके बाद अली मोहल्ला के सामने नाज थियेटर भी आरंभ हो गया जिसमें मनोज कुमार द्वारा अभिनीत और निर्देशित फिल्म ‘उपकार’ का प्रदर्शन हुआ। इस फिल्म का पंजाब सरकार ने मनोरंजन कर माफ कर दिया था। लाल रत्न जब आरंभ हुआ तो इस सिनेमाघर की अलग पहचान इसलिए बनी कि इसमें रैंप था जो लोग सीढ़ियों से न जा सकते थे वह रैंप के रास्ते जा सकते थे। लाल रत्न सिनेमा में एक नहीं दो सिनेमा घर थे एक का नाम था मिनी लाल रत्न। दोनों सफलता से चल रहे थे।
एक दौर ऐसा आया जब बस्ती शेख में प्रीतम पैलेस और जालंधर के भीतरी भाग में ‘फ्रेंड्ज’ सिनेमा दर्शकों के सामने आया। इसी दौरान चित्र सिनेमा ‘ओडियन’ के नाम से चलने लगा था जो बाद में सीमा थियेटर के नाम से जाना गया। ‘सतलुज सिनेमा’ और नरिंदर थियेटर सिनेमा जगत को दो थियेटर नसीब हुए। इस तरह सिनेमा के शौकीन लोगों को 12 सिनेमाघरों में जाकर दिन भर के झंझटों से निज़ात पाने और सुकून हासिल करने के मौके मिलने लगे। फिर क्या कारण बना कि एक-एक करके वह सभी सिनेमाघर इतिहास बनते गए।
कुछ लोग कहते हैं कि सिनेमाघरों की विदाई के पीछे पंजाब सरकार द्वारा लगाई गई मनोरंजन कर की नई नीति जिम्मेदार है परंतु सिनेमाघरों की महंगी होती टिकटें भी इन सिनेमाघरों के लुप्त होने का कारण बनी। यह भी हकीकत है कि लोग छोटे सिनेमाघरों में जाना पसंद करने लगे। जैसे कि ‘महक’ नामक सिनेमा जो प्रवासी लोगों के लिए पहली पसंद बन गया। वह जैसे-तैसे चल रहा है, बाकी 12 सिनेमा घर लोगों की यादों में रह गए। कभी आने वाली पीढ़ियां जब सुनेंगी तो हैरान होंगी कि समय कितना बेरहम होता है जो हालात तक बदल देता है फिर वह मनोरंजन के साधन क्यों न हों।
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