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अखरोट की पैदावार में जज्बा और तकनीक से सिरमौर बन सकते हैं हिमाचल व कश्मीर

सेब ने कश्मीर हिमाचल व उत्तराखंड को बागवानी का सिरमौर बना दिया है। अगर अखरोट पर भी ये तीनों राज्य ध्यान दें तब देश में तो एक बड़ा बाजार इनके स्वागत को तैयार है।

By Tilak RajEdited By: Published: Wed, 09 Oct 2019 06:35 PM (IST)Updated: Sat, 12 Oct 2019 01:27 PM (IST)
अखरोट की पैदावार में जज्बा और तकनीक से सिरमौर बन सकते हैं हिमाचल व कश्मीर
अखरोट की पैदावार में जज्बा और तकनीक से सिरमौर बन सकते हैं हिमाचल व कश्मीर

सैन फ्रांसिस्को [विजय गुप्ता]। सेब ने कश्मीर, हिमाचल व उत्तराखंड को बागवानी का सिरमौर बना दिया है। अगर अखरोट पर भी ये तीनों राज्य ध्यान दें, तब देश में तो एक बड़ा बाजार इनके स्वागत को तैयार है। हर साल अमेरिका से भारत करोड़ों रुपये का अखरोट आयात करता है। अगर ये तीनों राज्य अखरोट का व्यावसायिक उत्पादन करें, बाग लगाने से लेकर प्रोसेसिंग व मार्केटिंग पर भी ध्यान दें, तो दुनिया में धाक जमा सकते हैं। जलवायु व जमीन के लिहाज से तीनों राज्य कैलिफोर्निया की बराबरी में हैं।

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भारत में अभी जम्मू-कश्मीर व हिमाचल के अलावा उत्तर प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश में भी अखरोट होता है। हालांकि, कुल रकबा केवल 68 हजार हेक्टेयर के करीब है, जिसमें हर साल लगभग 72 हजार मीट्रिक टन का उत्पादन होता है। कुल उत्पादन में लगभग 80 फीसद अकेले कश्मीर का योगदान है। फिर भी देश की जरूरत को घरेलू अखरोट केवल 20 फीसद ही पूरा कर पाता है। कश्मीर और हिमाचल में उगाया जाने वाला कागजी अखरोट भी उच्च गुणवत्ता का है, लेकिन वह वैश्विक स्तर पर अमेरिका की तरह का प्रचार नहीं पा सका है।

अमेरिका ने सेब के साथ-साथ अखरोट की बागवानी व उसका बाजार बढ़ाने पर पिछले तीन दशकों (तीस वर्षों) में लगातार काम किया है। यही वजह है कि आज वह चीन के बाद सबसे बड़ा अखरोट उत्पादक देश बन गया है। निर्यात में पहले स्थान पर है। नए व उच्च गुणवत्ता के बाग लगाए जा रहे हैं। कई नई किस्में ईजाद की जा चुकी हैं। यही वजह है कि पिछले 10 साल में कैलिफोर्निया में अखरोट का उत्पादन लगभग दोगुना हो गया है।

तदबीर से बदली तस्वीर

कैलिफोर्निया वालनट कमीशन की सीनियर मार्केटिंग डायरेक्टर पामेला ग्रेविएट ने कहा कि कश्मीर का जलवायु, तापमान, बारिश, चीलिंग आवर्स, मिट्टी भी कैलिफोर्निया की तरह की हो सकती है, लेकिन हमने लगातार रिसर्च के उपरांत नई किस्में तैयार की हैं। भारत में अखरोट के बड़े बाग नहीं हैं, जैसे हमने पिछले दो दशकों में तैयार कर दिए हैं। अखरोट की अच्छी फसल के लिए साल भर काम होता है। तोड़ने से लेकर अखरोट को धोने, सुखाने, तोड़कर गिरी निकालने और बाजार में पहुंचाने तक उच्चस्तरीय तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है। यही वजह है कि हमारे अखरोट की गिरी भारतीय गिरी से ज्यादा बेहतर रंग, खुशबू और स्वाद वाली है। वह कभी कसैले स्वाद की नहीं होती, क्योंकि हम नमी का पूरा ध्यान रखते हैं। यह तीन साल तक फ्रेश रह सकती है।

अच्छा करेंगे काम तो लहलहाएंगे बागान

जिस तरह से कैलिफोर्निया वालनट कमीशन अखरोट के उत्पादन, नई तकनीकों के इस्तेमाल को प्रोत्साहन, उसकी खपत बढ़ाने के लिए नए प्रयोग और वैश्विक स्तर पर प्रचार कर रहा है, उस तरह के प्रयास तो इन दो राज्यों में सेब के लिए भी नहीं किए जाते हैं। सेब को यहां बागवानी व अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है। अच्छी प्रजाति के पौधों की नर्सरी विकसित करने, रूटस्टाक्स क्लस्टर तैयार करने, परागण में आने वाली समस्याओं को समझने और निदान करने की दिशा में भारत के बागवानी विशेषज्ञों को काम करने की जरूरत है।

अब दे रहे ध्यान- डॉ. जेएस चंदेल

डॉ. वाइएस परमार बागवानी व वानिकी विश्वविद्यालय नौणी, हिमाचल के फल विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. जेएस चंदेल मानते हैं कि भारत में अखरोट की कम किस्में हैं। वह कहते हैं कि अब इस ओर ध्यान दिया जा रहा है। कुछ किस्में आयात भी की गई हैं और उनका आकलन किया जा रहा है।

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