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स्वाद पंजाब दाः ये ‘सरले’ खाकर आप भी कहेंगे- वाह क्या बात है! Jalandhar News

सरले यानी आलू व मेथी के पकौड़े जालंधर के अलावा कहीं और नहीं मिलते हैं। इन्हें जालंधर का विशेष स्वाद कहना गलत नहीं होगा।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 12:07 PM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2019 06:01 PM (IST)
स्वाद पंजाब दाः ये ‘सरले’ खाकर आप भी कहेंगे- वाह क्या बात है! Jalandhar News
स्वाद पंजाब दाः ये ‘सरले’ खाकर आप भी कहेंगे- वाह क्या बात है! Jalandhar News

जालंधर [मनोज त्रिपाठी]। ‘सरले’ नाम कई लोगों के लिए नया होगा। लेकिन जालंधर का यह विशेष व्यंजन पीढ़ियों से लोगों का पसंदीदा है। बाजार से गुजरते हुए आपने भी रेहड़ी पर इन्हें बिकते देखा होगा। छिलके वाले आलू व मेथी के पकौड़ों के रूप में इन्हें जानते हैं लोग। आइए आज जानते हैं इन्हीं के लजीज स्वाद के बारे में।

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150 साल से कायम सरले का स्वाद

एक ही अड्डा और एक ही खानदान के 40 से ज्यादा विक्रेता। बनाते भी खुद ही हैं और बेचते भी खुद ही हैं। स्वाद ऐसा कि जुबां से उतरने का नाम ही न ले। जी हां, बात हो रही है जालंधर में एक खानदान के जरिए 150 साल से कायम सरले (छिलके वाले आलू व मेथी के पकौड़े) के स्वाद की। कलां बाजार के जग्गू चौक सहित शहर भर में मोबाइल रेहड़ियों और कंधे पर टोकरी रखकर सरलों के स्वाद को आज तक सतनाम के खानदान के सदस्यों ने संभाल कर रखा है। भले ही इस स्वाद को बेचकर 40 परिवारों की रोटी मुश्किल से चल पाती है, लेकिन इसे छोड़ने को तैयार भी नहीं हैं परिवार के सदस्य। शहर के पुराने लोग इन्हें सरले के नाम से पुकारते हैं तो नई पीढ़ी इन्हें आलू-मेथी के पकौड़ों के नाम से।

सरले यानी छिलके वाले आलू व मेथी के पकौड़े केवल जालंधर में ही मिलते हैं।

सबसे खास बात यह है कि जालंधर के अलावा सरले कहीं और नहीं मिलते हैं। या इसे यूं कहें कि यह जालंधर का स्वाद है तो गलत नहीं है। इस खानदान से 65 साल के सबसे वरिष्ठ सतनाम 40 सालों से जग्गू चौक पर सरले का ठेला लगाते हैं। बताते हैं कि उनके पिता मुन्नी लाल व दादा बाबा राम भी यही काम करते थे। पूरा खानदान जालंधर से ही है। सतनाम बताते हैं कि उनके पिता को दादा ने बोला था यह काम मत छोड़ना और पिता ने उन्हें। यही वजह है कि आज तक 40 परिवारों के दाम पर जालंधर की बाजारों व गलियों तथा मोहल्लों में सरले का स्वाद व खुशबू बिखरी हुई है।

यह है खासियत

छोटे साइज के पहाड़ी आलू को बिना छीले आग पर भूना जाता है। इसके बाद उसे हल्के तेल में उतना ही तला जाता है, जिससे आलू के अंदर ज्यादा तेल न जाने पाए और खाने में तंदूर में भुने आलू जैसा स्वाद मिले। तवे पर तलते समय ही इन आलुओं में मेथी को पीसकर मिलाया जाता है, जिससे इसका स्वाद लाजवाब हो जाता है। साथ ही इसमें गरम मसाले व कई अन्य मसाले मिलाए जाते हैं। पूरी रेसपी सतनाम नहीं बताते हैं, लेकिन इतनी जानकारी जरूर दी। इन्हें खाकर आप दो से तीन घंटे तक भूख मिटा सकते हैं। ज्यादातर लोग इन्हें ब्रेड के साथ खाते हैं साथ में चटखारे के लिए मिर्च वाली हरी चटनी और मूली रहती है। आप भी इस स्वाद को लंबे समय तक अपनी जुबां से नहीं मिटा पाएंगे।

30 साल से खा रहा हूं सरले

लाजपत नगर निवासी व्यापारी गगन अरोड़ा बताते हैं कि वह 30 साल से सरले खा रहे हैं। जब भी जग्गू चौक से गुजरना होता है, तो रुककर सरले जरूर खाते हैं।

पहली बार पिता ने खिलाए थे सरले : मनप्रीत

शेखां बाजार निवासी व्यापारी मनप्रीत सिंह बताते हैं कि पहली बार उनके पिता वरिंदर सिंह ने उन्हें सरले खिलाए थे। उसके बाद से लेकर आज तक जब भी स्वाद बदलने का मन होता है, तो सरले खाना नहीं भूलते हैं।

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