इस हवलदार ने वर्दी के लिए जिंदगी दांव पर लगाई, विभाग ने डिमोट कर बनाया सिपाही
यह जाबाज रविवार को पीएपी शहीदी स्थल पर डीजीपी सुरेश अरोड़ा के सामने फूट-फूट कर रोया। अमरीक सिंह ने कहा कि सम्मान पाने की जंग लड़ते-लड़ते अब वह टूट चुका है।
सुनील प्रभाकर, जालंधर : जिसकी जांबाजी के किस्से पुलिस महकमे के नए रंगरूटों को सुनाए जाते हैं, पुलिस विभाग ने उसे ही छला है। 1991 में आतंकवादियों से लोहा लेते हुए एसएसपी की जान बचाने वाले हवलदार अमरीक सिंह को सम्मानित करने के बजाय विभाग ने सेवानिवृत्ति के बाद डिमोट कर सिपाही बना दिया। यह जाबाज रविवार को पीएपी शहीदी स्थल पर डीजीपी सुरेश अरोड़ा के सामने फूट-फूट कर रोया। अमरीक सिंह ने कहा कि सम्मान पाने की जंग लड़ते-लड़ते अब वह टूट चुका है। डीजीपी से कहा कि आपसे उम्मीद है, इसलिए आपसे मिलने यहा चला आया। डीजीपी अरोड़ा ने आश्वासन दिया कि उनकी समस्या का हरसंभव हल किया जाएगा।
पत्ती सरकारिया कोट खालसा, जिला अमृतसर के अमरीक निवासी ने बताया कि वह 23 जून, 1989 में पुलिस में भर्ती हुआ था। 8 मई 1991 में वह तत्कालीन एसएसपी तरनतारन न¨रदरपाल सिंह का गनमैन तैनात था। उस वक्त ड्यूटी के दौरान आतंकवादियों ने एके-47 व अन्य अत्याधुनिक हथियारों हमला बोल दिया। हमले में तत्कालीन डीआइजी की आतंकियों की गोली लगने से मौत हो गई। एसएसपी को भी गोली लगी। फर्ज निभाते हुए घायल एसएसपी और अन्य अधिकारियों की जान बचाने के लिए वह आतंकियों पर टूट पड़ा। आतंकियों की ओर से मारी गई चार गोलिया उसकी रीढ़ की हड्डी में लगी। इसके बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और अपने साथियों के साथ आतंकियों को तब तक टक्कर देता रहा, जब तक कि उन्होंने मैदान नहीं छोड़ दिया। उसकी जान तो बच गई लेकिन जिंदगी मौत के बीच झूलते हुए उसकी रीढ़ की हड्डी के चार मेजर ऑपरेशन हुए। उसकी जांबाजी का विभाग ने सम्मान नहीं किया। उसका नाम कभी भी राष्ट्रपति अवार्ड के लिए नहीं भेजा गया, जिसका वह हकदार है। उलटा 2008 में सेवानिवृत्त होने पर विभाग ने डिमोशन करते हुए हवलदार की बजाए उनकी सिपाही की पेंशन लगा दी है। 2008 से ही वह बनते सम्मान और पेंशन की जंग लड़ रहे हैं। समय-समय के डीजीपी से गुहार लगा चुके हैं। उन्होंने कहा कि वह तरनतारन के एसएसपी दर्शन सिंह मान का धन्यवाद करते हैं, जिन्होंने उनका केस तैयार कर डीजीपी सुरेश अरोड़ा को भेजा है।