बढ़ रहा है नेत्रहीनों का ग्राफ, आंखें दान करने वालों की संख्या में कमी
देश में करीब 5.50 लाख के करीब लोग ¨जदगी में रंगीन दुनिया के नजारे देखने के लिए किसी की आंखें मिलने का इंतजार कर रहे है। इसमें 10 फीसदी के करीब बच्चे है।
जगदीश कुमार, जालंधर : कहावत है कि जीते-जीते खून दान और मरणोपरांत नेत्रदान। दोनों ही लोगों की ¨जदगी के लिए वरदान साबित होते है। विडंबना यह है कि लोग नेत्रदान के लिए शपथ तो लेते है परंतु मरने के बाद उनकी आंखें दान नही हो पाती है। नतीजतन अंधेपन का ग्राफ तेजी से बढ़ रहा है। देश में करीब 5.50 लाख के करीब लोग ¨जदगी में रंगीन दुनिया के नजारे देखने के लिए किसी की आंखें मिलने का इंतजार कर रहे है। इसमें 10 फीसदी के करीब बच्चे है। एम्स दिल्ली के प्रोफेसर व आई डिपार्टमेंट के मुखी डॉ. जेएस टीटीयाल ने बताया कि देश में 2.50 लाख के करीब ऐसे है जो नेत्रहीन है। हर साल 40 से 50 हजार लोगों की आंखों में कार्निया प्रत्यारोपित कर उन्हें देखने योग्य बनाया जा रहा है। जबकि दो लाख के करीब सर्जरी का लक्ष्य है। लोगों में जागरूकता के अभाव के चलते आंखें देने वालों व लेने वालों की संख्या में अंतर लगातार बढ़ता जा रहा है। शहर में एक सेमिनार में भाग लेने आए डॉ. टीटीयाल ने बताया कि अंधेपन के लिए आपरेशन कर उन्हें नई रोशनी देने वाले देश में कुल 200 के करीब सेंटर और उनमें 500 के करीब माहिर डाक्टर है। देश में तकरीबन 500 आई बैंक है और इनमें से 100 के करीब ही सक्रिया है और दस बैंक ही सालाना दस हजार के करीब आंखों की मांग पूरी कर रहे है।
आई बैंक खोलने को केंद्र सरकार दे रही 15 लाख की राशि
नेशनल आर्गेन ट्रांसप्लांट ऑग्रेनाइजेशन (नोटो) को राज्य व स्थानीय स्तर पर संगठन गठित कर लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। आई बैंक, सर्जरी करने वाले डाक्टरों व सेंटरों की संख्या में इजाफा करना चाहिए। आई बैंक खोलने के लिए केन्द्र सरकार की ओर से 15 लाख रुपए की राशि देने का भी प्रावधान है। डॉ. टीटीयाल ने बताया कि एम्स में काम करने वाले स्टाफ के सभी सदस्यों को विशेष ट्रे¨नग दी गई है जो अस्पताल में आने वाले मरीज व उनकी मौत के बाद उसे परिजनों को मृतक की आंखें दान करने के लिए प्रेरित करते है। यह सिस्टम हर अस्पताल में होना चाहिए।
आंखें दान करवाने को मृतक परिवारों की करवानी चाहिए काउंसलिंग
सड़क हादसों में मरने वाले लोगों की आंखें दान करवाने के लिए पुलिस प्रशासन को परिवार के सदस्यों की काउस¨लग करनी चाहिए। शवगृह में कागजी कागजी कार्रवाई करने और आंखे लेने वाले ट्रेंड स्टाफ की व्यवस्था होनी चाहिए। सामान्य तापमान पर मृतक की छह घंटे तथा एसी शवगृह में पड़े शव की 8 -12 घंटे में आंखें ली जा सकती है। वर्तमान में मृतक के खून के सेंपल लेकर उनकी एचआईवी, एड्स, हैपेटाइटिस बी व सी की जांच की जाती है। इन बीमारियों से ग्रस्त व सेप्टीसिमया से मरने वाले मरीजों की आंखें नही ली जाती। ऐसे मरीजों से दूसरों को घातक बीमारियां होने का खतरा रहता है।