ये है जालंधरः अफगानिस्तान से आए फकीर के नाम पर बना था शाह कुली गेट Jalandhar News
शाह कुली नाम के इस फकीर के चर्चे जालंधर की बस्तियों तक पहुंचे। फिर जुम्मेरात (वीरवार) के दिन बहुत बड़ा जमावड़ा शाह कुली की जियारत को लगने लगा।
जालंधर, जेएनएन। जालंधर शहर को इसके 12 द्वारों के लिए जाना जाता है। इन्हीं में से एक था शाह कुली गेट। एक पठान ने इस गेट के सामने नगर के बाहर खेमे गाड़कर ठहर गया था। वह अफगानिस्तान का रहने वाला अश्व व्यापारी था। वह कई-कई महीने यहां आकर ठहरा करता और अपने घोड़ों को नजदीकी राज्यों में बेचता था। उसके घोड़ों के खरीदारों में कपूरथला के सामंत भी हुआ करते थे। कभी-कभार वह पठान इस गेट से नगर में भी आया करता था। अफगानिस्तान से एक बार एक फकीर भी अश्व व्यापारी के साथ हिंदुस्तान आ गया। उस फकीर के मुरीद भी हिंदुस्तान आने लगे। शाह कुली नाम के इस फकीर के चर्चे जालंधर की बस्तियों तक पहुंचे। फिर, जुम्मेरात (वीरवार) के दिन बहुत बड़ा जमावड़ा शाह कुली की जियारत को लगने लगा। वह फकीर ताबीज और कलमा शरीफ पढ़ कर पानी में फूंक मार देता।
इससे लोगों में उसके चमत्कारों का प्रचार भी खूब होने लगा। अश्व व्यापारी ने शाह कुली फकीर के लिए नगर के बाहर एक हुजरा निर्मित करवा दिया। धीरे-धीरे वहां घर भी बनने लगे। परंतु शाह कुली सप्ताह में एक बार पुरानी जगह पर आकर सांझ ढले जरूर बैठा करता था। जिस प्रवेश द्वार के सामने यह फकीर बैठने लगा, उस गेट को उसी के नाम से पुकारा जाने लगा शाह कुली। लोग जब देखते कि वह भारी डील-डौल वाला पठान उस फकीर के पैर दबा रहा है तो उसका प्रभाव बढ़ा।
भूत-प्रेत जैसी बातों पर यकीन रखने वाले लोग फकीर से ताबीज लेकर गले में पहनने लगे। इस तरह शाह कुली गेट अफगानिस्तान आदि देशों से आने-जाने वालों के लिए सुगम मार्ग बन गया। इसीलिए इस गेट के निकट रहने वाले अमीर लोग नगर के भीतर जाकर रहने लगे। इस गेट के गिरने का दर्द बहुत देर तक कई लोगों में महसूस किया जाता रहा। शाह कुली गेट सन् 1929 में हुई वर्षा के कारण गिर गया और यह रास्ता आम हो गया था। यहां से अब एक रास्ता बाजार शेखां को जाता है, जबकि दूसरा अली मुहल्ला को, फिर भी इस गेट के निश्चित स्थान के बारे में कुछ कहा नही जा सकता।
सय्यद व्यापारी ने बनवाया था सैदां गेट
इस गेट के बाहर कुछ शेख और सय्यद आकर रहने लगे थे। इन लोगों के बारे में कहा जाता है कि यह पंजाब में व्यापारियों के रूप में आया करते थे और कई कई दिन नगर के बाहर खेमें डालकर रहा करते थे। शेख और सय्यद, जो भी जालंधर के बाहरी क्षेत्र में लंबे समय तक रहे, उसके पीछे यहीं कारण था। एक तो जालंधर के लोग बहुत सौहार्दपूर्ण एवं शांतिप्रिय थे। दूसरा ये धनी थे। वे खुश्क मेवों और शालों-दुशालों के व्यापारी थे। वे बहुत विनम्र स्वभाव, धीमा और मीठा बोलने वाले थे। झगड़ा करना उन्हें अच्छा नहीं लगता था। इसलिए वह जालंधर नगर के लोगों के निकट होते गए। सय्यद गेट जालंधर नगर का अच्छा गेट माना जाता था।
एक बार एक आंधी के कारण इसकी महराब का पलस्तर उखड़ गया जो हवा के कारण उड़कर एक सय्यद के बेटे को आ लगा। चोट गहरी थी, परंतु सय्यद का बेटा पांच-दस दिन में स्वस्थ हो गया। सय्यद साहब ने इस गेट की सारी मरम्मत अपने खर्चे पर आरंभ कर दी और उसे पहले जैसा ही बनवा दिया। बाहर रहने वाले लोग पहले पहल इसे सय्यद साहिब का गेट कहा करते थे। धीरे-धीरे इस गेट का नाम सैदां गेट पड़ गया। इस गेट की ऊंचाई 20 (बीस) फुट और चौड़ाई 18 (अठारह) फुट थी। इसके लकड़ी के किवाड़ जो मरम्मत के लिए उतारे गए थे, दोबारा लग न सके। फिर भी नगर में प्रवेश के लिए इस गेट से कोई भी अवांछित व्यक्ति नहीं आ सकता था क्योंकि शेख और सय्यद स्वयं इस मार्ग की सुरक्षा पर नजर रखते थे।
सैदां गेट से एक रास्ता रैनक बाजार, बाजार शेखां और अटारी बाजार तक जाता है। यह गेट 1960 तक जर्जर हालत में भी कायम रहा। विभाजन के बाद कुछ लोगों ने शहीदां गेट कहना आरंभ कर दिया था। उनका भाव था आजादी के शहीदों को समर्पित यह गेट।
(प्रस्तुतिः दीपक जालंधरी - लेखक जालंधर शहर के जानकार और स्तंभकार हैं)
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