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संघर्ष ने इस महिला को बना दिया फौलाद, दूसरों की पीड़ा हर जीत रही मन

मंजीत कौर को मुश्किलोंने फौलाद बना दिया। जीवन की कठिनाइयों से पार पाने को उन्‍होंने पीड़ा में तड़प रहे लोगों को राहत देने का काम चुना। वह पंजाब की पहली महिला एंबूलेंस चालक हैा।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Fri, 05 Oct 2018 09:27 AM (IST)Updated: Fri, 05 Oct 2018 01:06 PM (IST)
संघर्ष ने इस महिला को बना दिया फौलाद, दूसरों की पीड़ा हर जीत रही मन
संघर्ष ने इस महिला को बना दिया फौलाद, दूसरों की पीड़ा हर जीत रही मन

जालंधर, [वंदना वालिया बाली]। अंग्रेजी की एक कहावत है- 'वेन द गोइंग गेट्स टफ, द टफ गेट गोइंग' यानी जब परिस्थितियां कठोर हो जाती हैैं, तो साहसी व निडर व्यक्तित्व वाले लोग ऐसी परिस्थितियों से लोहा ले कर उन पर सफलता हासिल करते हैं। ऐसी ही साहसी व दृढ़ निश्चयी है जालंधर की मंजीत कौर। जीवन के हर कदम पर मिले संघर्ष ने मनजीत को इतना फौलादी बना कि वह वो काम भी कर जाती हैं जिसे पुरुष भी करने को तैयार नहीं होते। जीवन में मुश्किलों से लोहा लेने वाली मंजीत को पीड़ा में तड़प रहे लोगों की मदद कर बहुत सुकून मिलता है।

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जीवन के हर कदम पर मिले संघर्ष ने मनजीत को बनाया फौलादी

मनजीत कौर पंजाब की पहली व एकमात्र महिला हैंं, जो एंबूलेंस चलाती हैं। वह यह कार्य पिछले 11 साल से कर रही हैं। कभी घायल मरीजों और बीमार लोगों को सुरक्षित अस्पताल तक पहुंचाना तो कभी अस्पताल से शव अंतिम संस्‍कार के लिए श्मशान तक ले गईं। वह अपनी एंबूलेंस खरीदना चाहती है, लेकिन इतना पैसा नहीं है कि वह अपनी यह ख्वाहिश पूरी कर सकें। वह बताती है कि यूं तो अनेक संस्थाएं उन्‍हें पहली महिला एंबूलेंस ड्राइवर होने के नाते सम्मानित कर चुकी हैं लेकिन आर्थिक सहायता कहीं से नहीं मिली।

15 साल की उम्र में हुई शादी, पति को हुआ अधरंग

41 वर्षीय मनजीत कौर ने जीवन में अनेक दुख देखे। 15 साल की उम्र में शादी हो गई। पहले तो पति की शराब पीने की आदत ने उन्‍हें परेशान किया और बाद में पति लखबीर सिंह को अधरंग हो गया। दो वक्त की रोटी के लाले पड़ गए। दुखी मनजीत ने भाइयों से पैतृक जमीन का हिस्सा मांगा तो भाइयों ने मां की लिखी वसीयत बदल डाली। उसे बैरंग लौटा दिया। मनजीत ने कानून का सहारा लिया, 10 साल केस चला।

मनजीत बताती हैं कि इस कारण न केवल उसकी एंबूलेंस बिक गई बल्कि बेटे की कमाई का बड़ा हिस्सा भी इस पर खर्च हो गया। उसे जमीन में हिस्सा मिलने की पूरी उम्मीद थी लेकिन वह केस हार गई। सिविल अस्पताल में जब प्राइवेट एंबूलेंस चलाती थी तो अन्य एंबूलेंस वाले उसके दुश्मन बन गए थे, क्योंकि पेशेंट उसे ज्यादा तरजीह दिया करते थे। कई बार वहां अन्य ड्राइवरों से संघर्ष हुआ। शराबी पति भी दो साल पहले घर का सामान बेच कर कहीं चला गया। अब वह एक निजी अस्पताल की एंबूलेंस चला रही हैं।

ऐसे शुरू हुआ ड्राइवरी का सफर

इकलौते बेटे की पढ़ाई और भरण-पोषण की चिंता के साथ-साथ बिस्तर पर पड़े पति की तीमारदारी की चिंता ने उन्‍हें के अंदर बांधे रखा। मन के डर पर जीत पाकर मनजीत ने ड्राइविंग सीखी और ड्राइविंग को रोजी-रोटी का साधन बनाने की ठान ली। उनका मौसेरा भाई बलबीर सिंह एंबूलेंस चलाता था। वह अक्सर उसके साथ जाती तो थी तो लगता था कि बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाने का काम बहुत नेक है। इसके बाद एंबूलेंस चलानी सीख ली। घर के हालात बिगड़े तो उसी भाई ने साथ दिया और अपनी एंबूलेंस चलाने के लिए उसे दे दी। वह खुद एक स्कूल बस चलाने लगा।

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जीवन में अनेक चुनौतियां का किया मुकाबला

- वह बताती हैं, एक मर्डर केस में पुलिस को एनआरआइ महिला का शव मिला। जिस पर कीड़े रेंग रहे थे। इस शव को अमृतसर पहुंचाने के लिए कोई भी एंबूलेंस वाला तैयार नहीं था। तब वह उसे ले कर गई। उसके बाद तीन दिन तक बार-बार सफाई करने के बावजूद एंबूलेंस से कीड़े निकलते रहे।

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तेरे साहस ने बचा लिया बेटा 

मनजीत ने बताया कि कुछ समय पहले वह 18-19 साल के एक मरीज को जालंधर से चंडीगढ़ पीजीआइ ले कर गई। इसे डॉक्टर जवाब दे चुके थे। सर्दियों का मौसम और ऊपर से कोहरा, लेकिन उसने ढाई घंटे में मरीज को वहां पहुंचा दिया। करीब तीन महीने बाद उस लड़के के रिश्तेदार उसे ढूंढ़ते हुए जालंधर आए। उन्होंने मिठाई का डिब्बा व पांच सौ रुपये देते हुए बहुत आशीर्वाद दी। उन्‍होंने कहा कि तुम्हारे साहस ने हमारा बेटा बचा लिया। मनजीत कहती हैं, यही दुआएं मेरा असली इनाम है। 

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जसपाल भट्टी का पार्थिव शरीर पहुंचाया चंडीगढ़

पंजाब के जाने-माने हास्य व व्यंग्य कलाकार जसपाल भट्टी का एक सड़क दुर्घटना में देहांत हो गया था। मनजीत रात के समय घायल हुई 'पावर कट' फिल्म की नायिका सुरीली को लुधियाना ले कर गईं। इसके बाद जसपाल भट्टी का पार्थिव शरीर चंडीगढ़ स्थित उनके निवास पर पहुंचाया। जब वह चंडीगढ़ पहुंचीं तो उनकी पत्नी व परिवार के अन्य सदस्यों ने उसे बहुत सम्मान दिया। केवल इसलिए नहीं कि उसने पूरी सावधानी से अपना काम किया था बल्कि इसलिए भी क्योंकि जसपाल भट्टी जी की मां का नाम भी मंजीत कौर है।

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