शान-ए-शहरः बंटवारे का दर्द झेलकर भी खिला खेल उद्योग, स्पोर्ट्स एसेसरीज में बनाई पहचान
जालंधर के उद्योगपतियों ने दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में खेल उत्पादों की सप्लाई करके यह दिखाया कि बंटवारा भी उनकी हिम्मत व जुनून के जज्बे को नहीं रोक पाया।
जालंधर [कमल किशोर]। देश के बंटवारे के बाद सियालकोट को छोड़कर जालंधर में आए उद्योगपतियों ने नई ऊर्जा के साथ दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में खेल उत्पादों की सप्लाई कर रहे हैं। उन्होंने यह दिखा दिया है कि बंटवारे का दर्द भी उनकी हिम्मत व जुनून को नहीं रोक पाया। सफलता के सफर में आई चुनौतियों ने शहर के खेल उद्योग को अब नई दिशा दी है। अब यह स्पोर्ट्स गारमेंट्स की तरफ बढ़ चला है। आइए डालते हैं खेल उद्योग के इस सफर पर एक नजर।
देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान के सियालकोट से उजड़े खेल उद्यमियों ने जालंधर में खेल उद्योग को स्थापित किया। बंटवारे से पहले दुनिया के सबसे बड़े खेल उद्योग के रूप में सियालकोट की अलग पहचान थी। यहां पर तैयार क्रिकेट के बैट, हॉकी, फुटबॉल, वालीबॉल सहित तमाम खेलों की सामग्री पूरी दुनिया के अधिकतर देशों में सप्लाई की जाती थी। बंटवारे का दर्द लिए सियालकोट से जालंधर पहुंचे वहां के लोगों के पास कोई काम नहीं था। किसी के पास दो हजार रुपये थे तो किसी के हाथ खाली थे। मुश्किल से परिवार के साथ जान बचाकर जालंधर पहुंचे थे वे। यहां सरकारी मदद से सिर छिपाने की जगह मिलने के बाद जब इन उद्योगपतियों ने जालंधर को अपना लिया तो शहर ने भी इन्हें सीने से लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। नतीजतन कुछ ही सालों में जालंधर के बस्ती नौ में खेल उद्योग ने जन्म लिया और देखते ही देखते सियालकोट को पीछे छोड़कर नई ऊर्जा के साथ यहां के उद्योगपतियों ने दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में खेल उत्पादों की सप्लाई करके यह दिखाया कि बंटवारा भी उनकी हिम्मत व जुनून के जज्बे को नहीं रोक पाया।
यूं बसा ‘खेल नगर’
सरकार ने बंटवारे के बाद बस्ती नौ में सियालकोट से आए लोगों को स्थापित किया था, जिसे आज ‘खेल नगर’ के नाम से भी जाना जाता है। जमीन अलॉट होने के बाद 1948 से 1950 के बीच में यहां खेल उद्योग ने अपने पैर जमाने शुरू किए। तब से लेकर आज तक समय की मांग के अनुसार इन उद्योगपतियों ने खुद को बदला और अपनी बादशाहत कायम रखी है।
चुनौतियां मिली तो बदली दिशा
सबसे पहले जालंधर के खेल उद्योग में बैट, बैटमिंटन के रैकेट, शट्ल कॉक, हॉकी स्टिक, बॉक्सिंग किट, कैरम व शतरंज को बनाने का काम फला फूला। कुछ साल बाद ही खेल जगत की मांग और जालंधर के खेल सामग्री की गुणवत्ता को देखते हुए एसेसरीज की डिमांड भी जालंधर को मिलने लगी। कुछ साल तक इस डिमांड को चीन व कोरिया तथा ताइवान तथा पाकिस्तान से चुनौती मिलती रही। सरकारी नीतियों की मार झेलने के साथ विपरीत माहौल में यहां के खेल सामग्री निर्माता खुद को असहज महसूस करने लगे।
कई कारखाने वक्त की चुनौतियों को नहीं झेल पाए तो बंद हो गए, कइयों ने वक्त को पहचाना और खुद को बदल लिया। नतीजतन उन्होंने बिना किसी सरकारी मदद के खेल एसेसरीज को तैयार करना भी शुरू कर दिया। इस दिशा में उद्योगपतियों की सबसे बड़ी मददगार क्रिकेट की किट (जर्सी व पैंट) बनी। उसके बाद हॉकी, फुटबाल तथा अन्य खेलों की वर्दियां बनाने का सिलसिला शुरू हुआ जो लगातार हजारों से करोड़ों तक और फिर उठकर सैकड़ों करोड़ के कारोबार तक पहुंच चुका है।
दूसरे चरण में लुधियाना से ट्रैक सूट का काम छीनकर जालंधर के खेल उद्योगपतियों ने अपने नाम कर लिया। आज हालात यह है कि कपडा़ बेशक चीन या अन्य देशों का होता है, लेकिन उस कपड़े से अन्य देशों की बजाय बेहतरीन ट्रैक सूट जालंधर में तैयार हो रहे हैं। अभी भी तकनीकी जानकारियों की मार है, लेकिन दूसरी पीढ़ी के आने के बाद नए प्रयोग बढ़़े हैं और सार्थक परिणाम सामने आ रहे हैं।
वर्तमान में जालंधर में तैयार ट्रैक सूट देश-विदेश में सप्लाई किए जा रहे हैं।
वक्त ने जालंधर के खेल उद्योग को भी बदल दिया, यह कहना भी गलत नहीं होगा। जैसे-जैसे अन्य उत्पादों की दिशा में जालंधर के खेल उद्योग ने अपने कदम बढ़ाए तो सरकारी मदद व तकनीकी न मिल पाने के कारण बैडमिंटन की शटल कॉक व रॉकेट बनाने वाली इंडस्ट्री बंद हो गई। आज जालंधर से तैयार हुआ हौजरी उत्पाद चीन व ताइवान के उत्पाद को चुनौती दे रहा है। अब कारोबार उन्नति की ओर अग्रसर है। स्पोर्ट्स गारमेंट के क्षेत्र में 1950-60 के दशक में मात्र दो इंडस्ट्री थी, जो उत्पाद तैयार करती थीं। अब 60 से ज्यादा इकाइयां हैं, जो खुद के ब्रांड से लेकर दुनिया के तमाम प्रसिद्ध ब्राडों के स्पोट्र्स गारमेंट तैयार कर रही हैं।
सियालकोट से जाालंधर तक का सफर
सियालकोट में खेल उद्योग 300 साल से पुराना है। सबसे पहले सियालकोट की खेल सामग्री को विदेश तक पहुंचाने का काम 13 अप्रैल 1883 को गंडा सिंह ओबराय ने शुरू किया था। उन्होंने इंग्लैंड में खेल उत्पाद को एक्सपोर्ट करना शुरू किया था। उसके बाद सियालकोट में खेल उद्योग विकसित हुआ और बंटवारे के बाद जालंधर और सियालकोट में बंट गया। मौजूदा दौर में जालंधर में स्पोर्ट्स गारमेंट के निर्माण के 60 यूनिट ऐसे हैं, जो देश व विदेश में गारमेंट्स की सप्लाई कर रहे हैं। स्पोर्टस गारमेंट्स का जीरो से शुरू हुआ कारोबार अब 100 करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच चुका है।
खिलाड़ियों को कर रहे स्पोंसर
स्पार्टन कंपनी के डायरेक्टर चिराग शर्मा कहते हैं कि 1978 में कंपनी की शुरुआत हुई। बैट व क्रिकेट खेल उत्पाद तैयार करने शुरू किए। कारोबार को बढ़ाने व बॉयर की मांग को देखते हुए वर्ष 1990 में स्पोर्ट्स गारमेंट्स बनाने शुरू कर दिए। कंपनी विभिन्न खेलों के खिलाड़ियों को अपने उत्पादों को लेकर स्पांसर कर रही है।
विदेशी खिलाड़ी भी हैं मुरीद
बीटा-ऑल-स्पोर्ट्स के एमडी सोमनाथ कोहली व राकेश कोहली कहते हैं कि दादा देसराज कोहली व चाचा मुलखराज कोहली ने वर्ष 1950 में जालंधर में हॉकी स्टिक बनाने का कारोबार शुरू किया था। कारोबार बढ़ाने के लिए बैट, फुटबाल, रग्बी खेल उत्पाद बनाने शुरू किए। 1998 में जब खेल उद्योग पर वक्त व नीतियों की मार पड़नी शुरू हुई तो नई चुनौती के रूप में स्पोर्ट्स गारमेंट का निर्माण भी शुरू कर दिया। भारतीय क्रिकेट टीम सहित कई देशों की क्रिकेट टीम के खिलाड़ी इनका इस्तेमाल कर रहे हैं।