स्कूलों में छुंिट्टयां, मस्जिदों में इंसानियत का पाठ पढ़ रहे बच्चे
रमजान के पाक माह में 9 वर्ष के आतिफ तथा आठ वर्ष के आकिफ भी रोजे रख रहे हैं।
शाम सहगल, जालंधर
रमजान के पाक माह में 9 वर्ष के आतिफ तथा आठ वर्ष के आकिफ भी रोजे रख रहे हैं। अवतार नगर के रहने वाले हाजी आबिद हसन सलमानी के परिवार के ये बच्चे अपने परिवार के सदस्यों से प्रोत्साहित होकर रोजे रखे रहे हैं। 40 डिग्री तापमान व कई घंटों तक निर्जल व निराहार रहने के बावजूद उनके चेहरे पर कोई शिकन तक नहीं है। तड़के सहरी से शुरू होकर रात को इफ्तार तक भूखे-प्यासे रहकर वे केवल खुदा की इबादत कर रहे हैं। स्कूलों में इन दिनों छुंिट्टयां हैं, इसलिए मुस्लिम समाज के ये बच्चे मस्जिदों में इंसानियत का पाठ पढ़ रहे हैं।
इस बारे में हाजी आबिद हसन सलमानी बताते हैं कि आकिफ व आतिफ ने खुद ही रोजा रखने की पेशकश की थी। अब खुदा की इबादत का मामला है तो उन्हें मना नहीं किया। हालांकि, इस्लाम धर्म के अनुसार बड़ों का रोजा रखना फर्ज है, बच्चों के लिए इसकी बाध्यता नहीं है। लिहाजा, फिर भी अधिकतर बच्चे रोजा रख रहे हैं। उन्होंने बताया कि नमाज के लिए भी बच्चे समय से पहले ही मस्जिदों में पहुंच जाते हैं। रमजान माह में बच्चे कुरान शरीफ तो पढ़ते ही हैं, साथ ही रोजे की तमाम परंपराएं भी पूरी करते हैं। कक्षा पांच में पढ़ने वाले आकिफ बताते हैं कि पिछले वर्ष भी रोजा रखा था। सहरी के बाद नमाज व इबादत करके ट्यूशन भी जाता हूं। भूखे प्यासे कब दिन गुजर जाता है पता ही नहीं चलता है।
वहीं, आठ वर्षीय आकिफ बताते हैं कि रोजे रखने में किसी तरह की परेशानी नहीं है। इसी तरह दस वर्षीय मोहम्मद समद का कहना है कि वह कक्षा चार में पढ़ता है और दो वर्ष से लगातार रोजे रखता आ रहा है। रमजान माह में खुदा स्वयं उसे शक्ति देता है। खास बात यह है कि बच्चे महज रोजा ही नहीं रख रहे हैं, बल्कि नमाज व तरावीह भी पढ़ रहे हैं। फोटो-177
स्कूलों में छुंिट्टयां होने से बच्चों में रोजा रखने को लेकर उत्साह
हाजी आबिद हसन सलमानी बताते हैं कि इन दिनों में स्कूलों में छुट्टियां चल रही हैं। बच्चों द्वारा रोजा रखने का दूसरा कारण यह भी है कि उन्हें स्कूल जाने की बाध्यता नहीं है। यही कारण है कि इन दिनों बच्चे स्कूल जाने की बजाए मस्जिद में खुदा की इबादत कर रहे हैं।