जगी संवेदना तो शिखा ने थामी सेवा की कमान
शिखा बताती हैं कि कोरोना काल में पूरा परिवार घर ही रहता था। ऐसे में खाना तैयार करने के लिए पारिवारिक सदस्य भी सहयोग करने लगे।
जागरण संवाददाता, जालंधर : कोरोना काल में लोग घर से भी निकलने से कतरा रहा थे। इसी दौरान पुरानी सब्जी मंडी से सर्कुलर रोड के बीच पड़ती कालोनी के दरवाजे पर एक परिवार के दो सदस्यों ने दस्तक दी। उन्होंने बताया कि उनके घर में कुल छह सदस्य है। इसमें बुजुर्ग माता-पिता व दो छोटे बच्चे भी शामिल है। एक सप्ताह से वीरान पड़े शहर में दिहाड़ी नहीं लग सकी है, जिससे परिवार को रोटी के लाले पड़ चुके हैं। उन दोनों की व्यथा सुन शिखा अग्रवाल की संवेदना जाग गई। शिखा ने उन्हें कच्चा राशन देने के साथ कुछ आर्थिक सहायता भी कर दी। इसके बाद शिखा ने मानवता की सेवा की कमान खुद थामने की सोची। इसके तहत वह अपने परिवार के साथ-साथ ऐसे लोगों के लिए भी रोजाना खाना तैयार करने लगी जो रोटी से मोहताज हो चुके थे।
परिवार ने दिया सहयोग
शिखा बताती हैं कि कोरोना काल में पूरा परिवार घर ही रहता था। ऐसे में खाना तैयार करने के लिए पारिवारिक सदस्य भी सहयोग करने लगे। यह दौर करीब दो महीने लगातार जारी रहा। शिखा बताती हैं कि सुबह खाना तैयार करके जब वह दोपहर को स्लम इलाकों में वितरित करने जाते थे तो इसे हासिल करने के लिए वहां रहने वाले लोगों में होड़ लग जाती थी। खाना मिलने के बाद उनके चेहरों पर आई मुस्कुराहट देखकर मन को सुकून मिलता था।
आयुर्वेदिक नुस्खों से रखा खुद को सुरक्षित
शिखा बताती हैं लोगों की सेवा के दौरान खुद को सरक्षित रखना भी चुनौती थी। इसके लिए आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रयोग किया गया। स्लम इलाकों में खाना वितरित करने से पहले हल्दी वाला दूध पीने के बाद मुंह में छोटी इलायची जरूर रखी जाती थी। इसके अलावा रोजाना योग व सात्विक भोजन का सेवन करना, सुबह जल्दी उठना तथा रात को जल्दी सो जाना दिनचर्या में शामिल किया।