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कलम का बाहुबली जो इक बूंद में पूरा दरिया है

शायर मनोज मुंतशिर पहली बार जालंधर में आयोजित वेबिनार में मुख्य मेहमान के रूप में शामिल हुए।

By JagranEdited By: Published: Sun, 17 May 2020 02:24 AM (IST)Updated: Sun, 17 May 2020 06:08 AM (IST)
कलम का बाहुबली जो इक बूंद में पूरा दरिया है
कलम का बाहुबली जो इक बूंद में पूरा दरिया है

वंदना वालिया बाली, जालंधर :

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'आकाश छुपे हैं मुझमें कई,

मैं कायनात का इक जरिया हूं

मैं दरिया की इक बूंद नहीं,

इक बूंद में पूरा दरिया हूं।'

मनोज मुंतशिर के यह शे र उनपर पूरे सटीक बैठते हैं। हिदी सिनेमा में मनोज मुंतशिर एक ऐसे गीतकार के रूप में नाम कमा रहे हैं, जिनके गीतों में शायरी की गहराई और काव्यात्मकता देखने को मिलती है। यही कारण है कि आज के दौर में उनके गीतों को हर वर्ग के लोग पसंद कर रहे हैं। हाल ही में फिल्म 'केसरी' के लिए लिखे उनके देशभक्ति पर उनके गीत 'तेरी मिट्टी' को बहुत पसंद किया जा रहा है। 'बाहुबली' के लिए लिखे मनोज मुंतशिर के संवाद उनके उत्कृष्ट लेखन का परिचय देते हैं। इसके अलावा मनोज ने 'रुस्तम' का 'तेरे संग यारा', 'हाफ गर्लफ्रेंड' का 'मैं फिर भी तुम को चाहूंगा' जैसे गीत लिखे।

फिल्मनगरी में बेहतरीन गीत लिखने वाले मनोज मुंतशिर साहित्य जगह में भी काफी नाम कमा रहे हैं। कई बड़े मुशायरों में वे शिरकत करते रहते हैं। फिल्म उद्योग के कई पुरस्कार जीतने वाले मनोज का पहला काव्य संग्रह 'मेरी फितरत है मस्ताना' प्रकाशन के 24 घटे के अंदर अमेजन बेस्ट सेलर सूचि में पहले स्थान पर पहुंच गया था।

खुद को मां हिदी का बेटा कहने वाले शायर मनोज मुंतशिर पहली बार जालंधर में आयोजित वेबिनार में मुख्य मेहमान के रूप में शामिल हुए। यह अवसर था कोलकाता की प्रभा खेतान फाउंडेशन द्वारा एहसास विमन ऑफ जालंधर से सौजन्य से 'कलम' कार्यक्रम का आयोजन, जिसमें दैनिक जागरण प्रिंट पार्टनर रहा।

कार्यक्रम में संचालक की भूमिका अहसास वूमन ऑफ जालंधर की रूही वालिया स्याल ने निभाई। इस दौरान रेडियो मंत्रा और रेडियो सिटी से जुड़े रहे बिजनेस मैन इंद्रजीत सिंह पेंटल ने सवाल-जवाब किए।

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मनोज शुक्ला से मनोज मुंतशिर का सफर

अपनी संघर्ष यात्रा के बारे में मनोज ने अपनी पुस्तक में 'बाबू जी' शीर्षक से एक कविता में लिखा है :-

'हजारों मुश्किलों से लड़ रहा हूं, मैं अकेला ही, दुआएं साथ हों जिसके उसे लश्कर नहीं लगता, मेरे बाबू जी बूढ़े हैं, मगर अब भी यह आलम है, वो मेरे पास होते हैं तो मुझको डर नहीं लगता।'

मनोज कहते हैं, 'बड़ी आकांक्षाओं से बाबू जी ने मुझे पढ़ाया था, लेकिन जिस दिन मैंने उन्हें बताया कि मैं डॉक्टर या इंजीनियर नहीं, बल्कि एक लेखक बनना चाहता हूं और अपना नाम 'शुक्ला' से 'मुंतशिर' कर रहा हूं। बड़ी सहजता से (भले ही मन में तूफान उमड़ा होगा लेकिन दिखाया नहीं) उन्होंने मेरे सपनों की उड़ान को पंख दिए थे। मेरी खुशिया खरीदने के लिए मेरे बाबूजी खर्च हो गए।'

मा के बारे में उन्होंने कहा कि मा स्वयं मात्र पाच सौ रुपये कमाती थी, तो उसमें से तीन सौ रुपए मेरे स्कूल की फीस देती थीं, क्योंकि इकलौते बेटे से उसका स्नेह यह सहर्ष करवाता था। उनके लिए पुस्तक में मनोज लिखते हैं:- 'इतर कोई तो था, जो मा के होंठों से छलकता था, वो माथा चूम लेते थी, बदन पूरा महकता था।' दिल की चोट ने बनाया शायर

मनोज बताते हैं कि 12वीं कक्षा में उन्हें जिस लड़की से प्यार था, उसने दो साल बाद कहा कि उसके पिता को मैं इसलिए पसंद नहीं था, क्योंकि मैं लेखक बनना चाहता हूं। उसने मुझ से फोटो व खत मागे तो मैंने पहली बार कविता लिखी थी:- 'आखों की चमक, जीने की लहक, सासों की रवानी वापस दे। मैं तेरे खत लौटा दूंगा, तू मेरी जवानी वापस दे।' उस कच्चे शायर की इस कविता को हू-ब-हू मैंने अपनी इस पुस्तक में भी शामिल किया है। बस वहीं से बह निकली शायरी की वो नदी। कलम को नहीं झोका चूल्हे की आग में

मुंबई की ओर आकíषत युवाओं के लिए संदेश देते हुए मनोज कहते हैं :- 'आसमान पर आख लगाए क्यों बैठा है यारा, तेरे अंदर ही चमकेगा तेरा सितारा।' साथ ही उन्होंने बताया कि जब वह मुंबई आए थे, तो केवल 350 रुपये पिता शिव प्रकाश शुक्ला से लिए थे, जो केवल लखनऊ से मुंबई का किराया था। मैंने दृढ़ प्रतिज्ञा की थी कि मैं कलम का सौदा नहीं करूंगा और घर का चूल्हा जलाने के लिए अपनी कलम को उसमें नहीं झोकूंगा। लंबा समय लगा, लेकिन पहला ही अवसर जब मिला तो 'एक विलेन' फिल्म का गीत 'तेरी गलिया' ने अवॉर्ड जीत गया। यह मेरे आत्मविश्वास व दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत था। यदि कोई यह सोचता है कि कोई अवसर उसे परोसा जाएगा तो वह जान लें: 'न हमसफर, न हमनशीं से निकलेगा, मेरे पाव का काटा मुझी से निकलेगा।' यानी अपने प्रयास से ही सफलता मिल सकती है माया नगरी में। मनोज कहते हैं कि अच्छे लेखन के लिए अच्छा पढ़ना बहुत जरूरी है और मैं 13-14 घटे काम करने के बाद भी कम से कम एक घटा पढ़ कर सोता हूं। जीवन की भागमभाग ने कम की कविता : जालंधर से अंजली दादा ने पूछा कि अब कविता की ज्यादा किताबें पढ़ने को क्यों नहीं मिलतीं, तो मनोज मुंतशिर का कहना था कि लोगों ने जीवन की भागमभाग में इंसानियत को गहरायी से देखना, समझना छोड़ दिया है। अब लॉक डाउन में फिर लोगों को कुछ ठहरने का मौका मिला है, तो उन्होंने इस ओर ध्यान देना शुरू किया है।

वरदान के समान लगा लॉकडाउन में वेबिनार : जालंधर के प्रसिद्ध कोरियोग्राफर गगुन बेदी ने भी इस वेबिनार में भाग लिया। उनका कहना था कि ऐसे बड़ी संस्थाओं का हमारे शहर में आना और कला व साहित्य को प्रोत्साहित करना एक गर्व की बात है। लॉक डाउन में जब हर इतनी नकारात्मकता है, उसमें ऐसा सकारात्मक आयोजन किसी वरदान के समान है।

मन को छू गई ये कविताएं : दिल्ली से नीलिमा डालमिया अधार ने कहा कि वह मनोज की यह नई किताब सिरहाने के पास रख कर सोती हैं और इनकी कविताओं ने उनके मन की गहराइयों को छू लिया है।


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