मुद्दों से ज्यादा लोगों के बीच पैठ तय करेगी जीत
इस सीट पर अकाली दल भी पूरा दमखम दिखा रहा है। वहीं, आम आदमी पार्टी ने अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारकर दोनों दलों की ¨चता बढ़ा दी है। शाहकोट हलके में मुद्दों की राजनीति से ज्यादा उम्मीदवार का जनाधार ज्यादा मायने रखता है।
कुसुम अग्निहोत्री, जालंधर
शाहकोट में 28 मई को होने जा रहे उपचुनाव को लेकर चुनावी माहौल पूरी तरह से गरमा गया है। सत्तारूढ़ कांग्रेस पार्टी के लिए अहम इस सीट पर अकाली दल भी पूरा दमखम दिखा रहा है। वहीं, आम आदमी पार्टी ने अपना प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारकर दोनों दलों की ¨चता बढ़ा दी है। शाहकोट हलके में मुद्दों की राजनीति से ज्यादा उम्मीदवार का जनाधार ज्यादा मायने रखता है। अकाली नेता स्व. अजीत ¨सह कोहाड़ इसी जनाधार के बल पर लगातार पांच बार जीत दर्ज कर विधानसभा पहुंचते रहे। यानी जीत उसी की होगी, जिसका जनाधार मजबूत होगा।
अकाली नेता अजीत सिंह कोहाड़ के निधन के बाद कांग्रेस को मौका मिला है और अब वह इस सीट को हर हाल में जीतन चाहती है। जीत के लिए कांग्रेस व अकालियों ने जिला से लेकर प्रदेश स्तर तक अपनी पूरी ताकत लगा दी है। इतिहास बताता है कि
आम आदमी पार्टी को भी पूरी उम्मीद है कि वह यहां से पहले नहीं तो दूसरे नंबर पर तो आ ही जाएंगी। हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव परिणाम व पार्टी संयोजक अर¨वद केजरीवाल की ओर से अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया से माफी मांगे जाने के प्रकरण ने इस उम्मीद को भी फीका कर दिया है। ऐसे में आप व बसपा की धार को हलके में कम आंका जा रहा है।
एनआरआइ पंजाबियों की भी नजर भी उपचुनाव पर
शाहकोट विधानसभा उपचुनाव पर पूरे पंजाब की नजर तो है ही, यहां से भारी तादाद में विदेश में बसे पंजाबियों की नजर भी इस चुनाव पर बनी हुई है। भले ही विदेशों में बैठे एनआरआइ यहां पर उम्मीदवार को वोट नहीं डाल सकते, लेकिन वह अपने-अपने पसंदीदा उम्मीदवारों को लेकर अपने रिश्तेदारों से संपर्क कर उन्हें वोट डालने के लिए फोन पर संपर्क साध रहे हैं। शाहकोट हलके से एनआरआइ ज्यादा होने के चलते चुनाव पर एनआरआइ का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
दोनों ही पार्टियों के नेताओं पर लगे माइ¨नग के आरोप
कांग्रेस सत्ता में है। जो पार्टी सत्ता में होती है, अक्सर उपचुनाव जीतती रही है। पंजाब में सत्ता संभाले कांग्रेस को करीब डेढ़ वर्ष होने को है। वह जनता के बीच किसानों के कर्ज माफी जैसे मुद्दों को उठा रही है। वहीं अकालियों के हाथ दस साल राज करने के बाद भी अधूरे वादों और कांग्रेस के उम्मीदवार पर रेत खनन मामले में फंसने का मुद्दा हाथ लग गया है। हालांकि जब अकाली दल सत्ता में था तो उसके नेताओं पर भी रेत खनन के आरोप लगते रहे हैं। ऐसे में हलके के लोगों का मानना है कि जो भी पावर में आता है तो उस पर रेत खनन के आरोप लगते ही रहे हैं। इतने सालों में यह हलका अकाली दल के पास रहा है। यहां तक की 2002 में जालंधर जिले में 10 विधानसभा हलके थे, उस समय भी कांग्रेस सारी सीटें जीत गई थी, लेकिन शाहकोट की सीट हार गई थी। ऐसे में अकालियों का आधार वहां पर काफी मजबूत बताया जा रहा है। अजीत ¨सह कोहाड़ के निधन के बाद उनके बेटे नायब ¨सह पर लोगों का विश्वास बन पाता है यह तो समय ही बताएगा। शेरोवालिया ने भी साल भर गांव-गांव जा लोगों के बीच अपना आधार मजबूत बनाने की कोशिश की है।
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