सूर्य की गर्मी का खुलेगा रहस्य, कितने समय चमकेगा इसका भी होगा खुलासा
जल्द ही सूर्य की गर्मी के रहस्य का खुलासा हो सकेगा। इसके साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि यह अब और कितने समय चमकेगा।
जालंधर, [मनीष शर्मा]। यदि आप यह जानना चाहते हैं कि सूर्य की सतह से निकलती हाई एनर्जी की गर्मी व ग्रहण का राज क्या है? उसके आसपास इतनी चमक कैसे फैलती है? सूर्य की कितनी उम्र बची है? कुछ ही सालों में वैज्ञानिक इन सवालों का जवाब खोज लेंगे। इसके लिए अगले साल इसरो आदित्य-एल 1 सेटेलाइट को अंतरिक्ष में भेजेगा। इस पूरी स्टडी के लिए 300 करोड़ की लागत वाले विजिबल इमीशन लाइन कोर्नोग्राफ (वीईएलसी) उपकरण का इस्तेमाल होगा। जिसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आइआइए) बेंगलुरु ने तैयार किया है।
300 करोड़ के वीईएलसी उपकरण से होगा संभव, अगले साल इसरो भेजेगा अंतरिक्ष में
लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी जालंधर में चल रही 106 वींं इंडियन साइंस कांग्रेस में इसे दिखाया जा रहा है। 10 साल की मेहनत से तैयार किए इस उपकरण को अगले साल इसरो को सौंप दिया जाएगा। दुनिया में अपनी तरह का यह पहला उपकरण होगा, जो सूर्य के इतने नजदीक जाकर वहां की सूचना वैज्ञानिकों को भेजेगा।
क्या-क्या होंगे फायदे
वैज्ञानिक पता लगाएंगे कि सूर्य की सतह पर कौन-कौन से केमिकल हैं। उनका तापमान कितना ज्यादा होता है कि उनसे इतनी ऊर्जा पैदा होती है। यह ऊर्जा कितनी देर या कितने दिन तक बरकरार रहती है। यह भी अनुमान लगाया जा सकेगा कि अगर यह केमिकल इसी तापमान से गर्म होता रहेगा तो सूर्य की अनुमानित उम्र कितनी बची होगी।
सूर्य के बिल्कुल नजदीक जाने वाला दुनिया में अपनी तरह का होगा अकेला ऐसा उपकरण
वहीं, सूर्य की सतह के आसपास बने चमकदार घेरे यानी कोरोना में कौन-कौन सी गैसें होती हैं। कितना रेडिएशन निकलता है। कौन-कौन सी हानिकारक किरणें निकलती हैं। इतनी चमक कैसे होती है, इस सबकी स्टडी की जाएगी। सूर्य की चमक के साथ उसके आसपास चुंबकीय क्षेत्र बन जाता है। यह पूर्वानुमान भी संभव होगा कि उस वक्त सेटेलाइट उस दायरे में न जाएं। सूर्य की स्टडी के बाद अंतरिक्ष के मौसम का अनुमान लगाना भी संभव होगा।
वीईएलसी उपकरण के बारे में जानकारी देते आइआइए बsaगलुरु के इंजीनियर अमित कुमार।
धरती पर पैदा हो सकेगी सूर्य जैसी ऊर्जा
किस केमिकल या उनके कांबिनेशन को किस तापमान पर गर्म किया जाए कि वो सूर्य जैसी ऊर्जा देने लगे, जब इसकी स्टडी हो जाएगी तो फिर धरती पर भी उन्हीं केमिकल को वैसे ही उच्च तापमान पर गर्म कर ऊर्जा पैदा की जा सकेगी। जो आगे आम लोगों के काम आ सकेगी। वीईएलसी बनाने वाले इंजीनियर अमित कुमार का कहना है कि स्टडी होने के बाद यह पूरी तरह से संभव होगा, जिसके बाद देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना आसान हो जाएगा।
ग्रहण के वक्त आती हैं कौन सी गैसें
इस उपकरण से सूर्य ग्रहण का सटीक राज खोलने में भी वैज्ञानिक कामयाब होंगे। इससे पता चलेगा कि ग्रहण के वक्त सूर्य की सतह या उसके आसपास ऐसी कौन सी गैसें आ जाती हैं, जिसकी वजह से आगे कालापन आ जाता है।
ऐसे काम करेगा वीईएलसी
आइआइए बेंगलुरु के इंजीनियर अमित कुमार बताते हैं कि वीईएलसी के पहले शीशे पर सूर्य का प्रकाश पड़कर दूसरे पर चला जाएगा। वहां से सूर्य की सतह वाली रोशनी एक होल से उपकरण में आ जाएगी और आसपास का प्रकाश यानी कोरोना फिर चौथे शीशे से एक तरफ स्प्रेक्ट्रोस्कोपी में चला जाएगा, जहां स्प्रेक्ट्रम के जरिए उसकी स्टडी होगी तो दूसरी तरफ उसकी इमेज बनकर वैज्ञानिकों के पास आ जाएगी।