आरटीआइ को बनाया हथियार, बच्चों को दिलाया अधिकार
बचों को उनके अधिकार दिलाने के लिए आरटीआइ एक्टिविस्ट संजय सहगल चाइल्ड राइट एक्टिविस्ट भी बन गए।
जागरण संवाददाता, जालंधर : बड़े लोग तो अपने अधिकारों के लिए अपनी लड़ाई खुद लड़ सकते हैं, लेकिन बच्चों को अपने अधिकारों और उनके हनन के बारे में ही जानकारी नहीं है। देश के भविष्य के साथ हर जगह धक्केशाही हो रही है और उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी मुहैया नहीं करवाई जा रही हैं। बच्चों के साथ हो रही यही धक्केशाही बर्दाश्त नहीं हुई और बच्चों को उनके अधिकार दिलाने के लिए आरटीआइ एक्टिविस्ट संजय सहगल चाइल्ड राइट एक्टिविस्ट भी बन गए।
स्वामी संतदास स्कूल के पास पार्क तो था, लेकिन इलाके के लोग इसे स्कूल के बच्चों के लिए उपलब्ध कराने को तैयार नहीं थे। पार्क पर ताला जड़ दिया था। संजय ने बच्चों की इस परेशानी को समझा और बच्चों को उनका अधिकार दिलाने की जंग शुरू की। उन्होंने एक्ट पढ़ा और बच्चों के अधिकार जाने। इसके बाद वह चाइल्ड राइट कमिशन तक जा पहुंचे। आखिरकार जीत बच्चों की हुई और इलाके के लोगों को पार्क पर लगाया गया ताला खोलना पड़ा। इसी तरह से शहर के साईदास स्कूल के नजदीक नगर निगम की तरफ से आसपास के इलाकों का कूड़ा फेंका जाने लगा। स्कूल के आसपास बदबू आती थी। नगर निगम के अधिकारी जानकारी होने के बावजूद डंप हटाने को तैयार नहीं थे। ऐसे में संजय ने बच्चों की परेशानी समझी और स्कूल के नजदीक बनाए गए इस कूड़े के डंप को खत्म कराने की लड़ाई शुरू कर दी। कोई वकील नहीं किया, बल्कि खुद अपना केस तैयार किया और आखिरकार नगर निगम को झुकते हुए इस कूड़े के डंप को वहां से शिफ्ट कर देना पड़ा। आरटीआइ को बनाया अपना हथियार
2005 में आरटीआइ एक्ट के अस्तित्व में आने के बाद संजय ने इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल किया और आरटीआइ डालनी शुरू की। वह अब तक ढाई हजार से ज्यादा आरटीआइ आवेदन कर चुके हैं। वर्ष 2005 में संजय सहगल ने रीजनल पासपोर्ट कार्यालय की तरफ से दो इमारतों का किराया देने संबंधी मामले का खुलासा आरटीआइ में जानकारी मांग कर किया था और तब से यह शुरू हुआ सिलसिला थमा नहीं है। हाल ही में संजय ने जालंधर पानीपत सिक्स लेन हाईवे को लेकर भी एनएचएआइ एवं निर्माण कंपनी की खामियों को उजागर किया है। खत्म होने चाहिए फर्स्ट अपीलेंट अथॉरिटी के पद
संजय सहगल आरटीआइ अपीलेंट अथॉरिटी अथवा कमीशन जैसे अति महत्वपूर्ण पदों पर पूर्व अधिकारियों की नियुक्ति को सही नहीं मानते हैं। संजय सहगल का कहना है कि यह पूर्व अधिकारी भी उन्हीं अधिकारियों में से आते हैं, जो कानून के साथ खिलवाड़ कर रहे होते हैं। ऐसी में पूर्व की अफसरशाही मौजूदा अफसरशाही के खिलाफ कभी कोई फैसला ही नहीं करती है। संजय सहगल ने कहा कि फर्स्ट अपीलेंट अथॉरिटी जैसे पदों को तो खत्म ही कर देना चाहिए यह पद तो मात्र समय की बर्बादी के लिए बनाए गए हैं। ब्लोअर पॉलिसी पर गंभीर नहीं प्रशासन
उन्होंने कहा कि आरटीआइ एक्टिविस्ट की सुरक्षा के लिए सरकार ने विसलब्लोअर्स पॉलिसी बनाई है, जिसके तहत शिकायत मिलने के 48 घंटे के भीतर आरटीआइ एक्टिविस्ट को राहत दी जानी जरूरी है, लेकिन दुख इस बात का है कि प्रशासन ने ब्लोअर पॉलिसी लागू करने को कभी गंभीरता से नहीं लिया। यह लापरवाही पूरे देश में दिखाई जा रही है।