दलालों के ट्रैक पर दौड़ता है आरटीए, आम आदमी खाता है धक्के
रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के ऑटोमेटिड ड्राइ¨वग टेस्ट ट्रैक पर ड्राइ¨वग लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया में आवेदन से लेकर फोटोग्राफी, एप्रूवल किसी भी सीट पर पेडेंसी न के बराबर है।
सत्येन ओझा, जालंधर : रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी के ऑटोमेटिड ड्राइ¨वग टेस्ट ट्रैक पर ड्राइ¨वग लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया में आवेदन से लेकर फोटोग्राफी, एप्रूवल किसी भी सीट पर पेडेंसी न के बराबर है। फिर भी, ड्राइ¨वग लाइसेंस बनने में दो से तीन महीने लग रहे हैं, नियमानुसार लर्निग लाइसेंस आवेदन की फोटोग्राफी वाले दिन ही देना होता है, परमानेंट लाइसेंस एक सप्ताह में डिलीवर करना होता है।
ट्रैक पर पूरी प्रक्रिया की पड़ताल की तो पूरा सिस्टम ही प्रो-दलाल निकला। सिस्टम इस तरह बनाया है कि जिनके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, चे¨कग करने वाला अधिकारी उन्हें शाबाशी देकर चला जाता है। आवेदन की तिथि व क्रम के अनुसार कोई ब्योरा आरटीए में उपलब्ध ही नहीं है। अगर ये ब्योरा दर्ज हो तो दलालों के ही रास्ते बंद नहीं होंगे, भ्रष्टाचार की भी गुंजाइश कम से कम हो जाएगी।
ये है प्रक्रिया
ऑनलाइन आवेदन के बाद मिली तिथि पर आवेदक का फोटो होता है, एप्रूवल के बाद डाटा स्कैन होता है। वहां से इंडेक्स नंबर लगकर लाइसेंस ¨प्रट होता है। अंत में केएमएस (की मैनेजमेंट सिस्टम) से डीएल डिलीवरी काउंटर पर चले जाते हैं।
मौके पर ये मिला
एप्रूवल में सिर्फ तीन से चार दिन की पेंडेंसी थी। स्कै¨नग का रिकॉर्ड उपलब्ध नहीं था। इंडेक्स नंबर भी साथ-साथ लग रहे थे। प्रिं¨टग टेबल पर दोपहर लगभग 12.35 बजे सिर्फ 90 आवेदन लंबित थे, जो शाम तक पूरे हो चुके थे। पेंडेंसी खत्म। बैक लॉग एंट्री काउंटर पर देखा तो वहां पुराने लाइसेंस की बैक लॉग एंट्री कराने वालों को चार-से पांच दिन का समय दिया जा रहा था। दलालों का काम उसी दिन निपट रहा था। पता चला कि यहां से सरकारी रिकार्ड बाहर भी जाता है, ऑनलाइन सिस्टम चेक किया जाए तो हजारों एंट्री ऑफिस समय बाद रात को या छुट्टी के दिन भी हुईं मिल जाएंगी।
ऐसे होती है हेराफेरी
आवेदकों का तिथि व क्रम के आधार पर रिकार्ड नहीं बनता है। किस दिन कितनी फाइलें आईं, कितनी स्कै¨नग पर गईं, कितनों को एप्रूवल मिला, कितनी पें¨डग हैं। ये ब्योरा तिथि बार कहीं भी दर्ज नहीं होता है। सिर्फ संख्या के आधार पर रिकॉर्ड मेंटेन होता है। उदाहरण के लिए अगर कोई व्यक्ति ये जानना चाहे कि 15 जुलाई को कितने आवेदकों के फोटो हुए, इस तिथि में जिन आवेदकों को फोटो हुए उनमें से कितनों की फाइलें एप्रूव हुईं, कितनी पें¨डग रहीं। उक्त तिथि के कितने डीएल बनकर डिलीवरी काउंटर पर पहुंचे तो कोई रिकार्ड उपलब्ध नहीं है। तिथि व क्रम का ब्योरा न होने का फायदा सीधा दलालों को मिलता है। उनके काम समय से पहले हो जाते हैं, सीधे काम कराने के लिए आने वाले दो-दो महीने तक डीएल के लिए लाइन में ही लगे रहते हैं।
दैनिक जागरण ने प्रमुखता से उठाया मुद्दा
दैनिक जागरण केस स्टडी के साथ 14 अगस्त के अंक में ये तथ्य प्रमुखता से प्रकाशित कर भी चुका है। तिथि व क्रम के आधार पर ब्योरा न होने से कोई अधिकारी इस साजिश को पकड़ भी नहीं पाता है, ऐसे में ड्राइ¨वग लाइसेंस के नाम पर भ्रष्टाचार का खेल खेलने वाले बेखौफ अपनी योजना को अंजाम देते रहते हैं। तिथिवार ब्योरा दर्ज हो तो अधिकारी भी आराम से पकड़ सकता है किस दिन के कितने आवेदन पें¨डग हैं, फिर पेंडेंसी का कारण भी पूछ सकता है।
-सीधी बात : सुख¨बदर ¨सह, असिस्टेंट ट्रांसपोर्ट अफसर
सवाल : क्या वजह है कि किसी टेबल पर पेडेंसी नहीं है, लोगों को डीएल के लिए फिर भी दो-दो महीने इंतजार करना पड़ रहा है?
जवाब : नियमानुसार लर्निंग तो सेम डे हो रहे हैं, परमानेंट लाइसेंस का सिस्टम भी ठीक हो रहा है।
सवाल : आवेदन की तिथि व क्रम के अनुसार ब्योरा क्यों दर्ज नहीं हो रहा है?
जवाब : ये बात मेरी जानकारी में नहीं है। अभी दो सप्ताह पहले ही चार्ज लिया है। अब पूरा रिकॉर्ड दर्ज होगा। लोगों को परेशान नहीं होने दिया जाएगा।