मां-बाप दें ध्यान, जन्म के बाद आईसीयू में रहने वाले शिशुओं को ऑटिज्म का खतरा ज्यादा
बच्चे के सुनने, देखने व बोलने तथा बच्चे के स्वभाव से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चे को ऑटिज्म बीमारी की शुरुआत हो चुकी है।
जागरण संवाददाता, जालंधर। सरकारी व प्राइवेट अस्पतालों में जन्म लेने के तुरन्त बाद आईसीयू में सांसें लेने वाले नवजात शिशुओं को ऑटिज्म की बीमारी होने की संभावना सामान्य बच्चों के मुकाबले अधिक होती है। अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले बच्चों की गहन जांच पड़ताल करने से ऑटिज्म के लक्षणों का पता लगाकर बीमारी से बच्चे को होने वाले खतरा को टाला जा सकता है।
इस बात की जानकारी रविवार को जालंधर अकादमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की ओर से आयोजित संगोष्ठी में बाल रोग माहिर डॉ. टीएस रंधावा ने दी। उन्होंने बताया कि बच्चे के सुनने, देखने व बोलने तथा बच्चे के स्वभाव से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बच्चे को बीमारी की शुरुआत हो चुकी है। अलग-अलग थेरेपी से बच्चे को सामान्य जीवन जीने की राह पर लेकर आना संभव है। उम्र बढऩे के साथ-साथ देरी से बीमारी का पता लगने से इलाज के नतीजों की सफलता दर भी प्रभावित होती है।
सेमिनार में सिविल सर्जन डा. राजेश कुमार बग्गा ने बताया कि ऑटिज्म के बच्चों को दिव्यांगों की श्रेणी में रखा जाने लगा है। बच्चों की आदत के आधार पर उन्हें विकलांगता प्रमाणपत्र जारी करने और स्कूल-कालेजों में सुविधाएं मुहैया करवाने का प्रावधान है। वर्कशाप के दौरान डॉ. केएस मुल्तानी व डॉ. छाया ने डाक्टरों को ऑटिज्म के बच्चों की जांच के मापदंड से अवगत करवाया।
इस मौके पर डॉ. एचएस बैंस व डॉ. जतिंदर सिंह ने भी बीमारी के इलाज को लेकर विचार व्यक्त किए। वर्कशाप के दौरान प्रधान डॉ. गुरदीप सिहं ने डाक्टरों को रिपोर्टों के आधार पर बच्चे की बीमारी का आंकलन करने के भी टिप्स दिए।