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Punjab Assembly Election 2022: सियासी दलों ने पहले दिया बदलाव का नारा, फिर पुराने चेहरों को ही मैदान में उतारा

Punjab Assembly Election 2022 पंजाब विधानसभा चुनाव में लगभग सभी पार्टियों ने पुराने चेहरों को ही दोहराया है। जबकि उन्होंने पहले बदलाव का नारा दिया था। इसी कारण टिकट की आस में बैठे नए नेता मायूस हैं और आम कार्यकर्ता फिलहाल घर से बाहर नहीं निकल रहा है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 04:40 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 04:40 PM (IST)
Punjab Assembly Election 2022: सियासी दलों ने पहले दिया बदलाव का नारा, फिर पुराने चेहरों को ही मैदान में उतारा
कांग्रेस व शिरोमणि अकाली दल ने सबसे ज्यादा पुराने चेहरों पर दाव खेला है। सांकेतिक चित्र।

मनोज त्रिपाठी, जालंधर। पंजाब में इस बार भी कार्यकर्ताओं व लोगों को बदलाव का नारा देने वाले सियासी दलों ने अंत में पुराने चेहरों पर ही दांव लगाया है। इसी कारण पांच सालों तक टिकट की आस में पार्टियों की सेवा व संगठन को मजबूत करने में जुटे कार्यकर्ता फिलहाल घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। नतीजतन चुनावी माहौल भी गरमा नहीं पा रहा है। दोआबा, मालवा व माझा की दर्जनों सीटों पर आम कार्यकर्ताओं की दूरी से सियासी दल भी परेशान हैं और टिकट हासिल करने वाले उम्मीदवार भी। सियासी दलों के उम्मीदवारों में कई दागी चेहरों ने भी अपनी जगह हमेशा की तरह बना ली है। इसलिए चुनाव के बाद आने वाली सरकार की तस्वीर भी पिछली सरकारों की तुलना में बदलती नजर नहीं आ रही है।

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पुराने चेहरों को टिकट देने में कांग्रेस और अकाली दल ने सबसे आगे

पुराने चेहरों पर दांव खेलने वाले सियासी दलों में सबसे आगे कांग्रेस व शिरोमणि अकाली दल हैं। कांग्रेस ने कई दागी चेहरों के साथ पहली लिस्ट में तमाम मौजूदा विधायकों व मंत्रियों तथा पंजाब की सियासत से दूर रहे चेहरों को चुनावी मैदान में उतारा है, जो बीते पांच सालों में कुछ खास नहीं कर पाए। इनमें दीना नगर से अरुणा चौधरी, कादियां से प्रताप सिंह बाजवा, फतेहगढ़ चूड़ियां से तृप्त राजिंदर सिंह बाजवा, डेरा बाबा नानक से डिप्टी सीएम सुखजिंदर सिंह रंधावा, अमृतसर सेंट्रल से ओपी सोनी, अमृतसर ईस्ट से नवजोत सिंह सिद्धू, कपूरथला से राणा गुरजीत सिंह, शाहकोट से हरदेव सिंह लाली शेरोवालिया, होशियारपुर से सुंदर शाम अरोड़ा, मोहाली से बलबीर सिंह सिद्धू, लुधियाना से सुरिंदर डाबर, लहरा से राजिंदर कौर भट्टल, नाभा से साधू सिंह धर्मस्रोत प्रमुख हैं।

शिरोमणि अकाली दल से बटाला से सुच्चा सिंह छोटेपुर,फतेहगढ़ चूरिया से लखबीर सिंह लोधीनंगल,अटारी से गुलजार सिंह राणीके, खेमकरण से वलसा सिंह वल्टोहा, पट्टी से आदेश प्रताप सिंह कैरो, खडूर साहिब से रंजीत सिंह ब्रह्मपुरा, भुलत्थ से बीबी जगीर कौर, साहनेवाल से शरनजीत सिंह ढिल्लों, रूपनगर से डा. दलजीत सिंह चीमा, लुधियाना दक्षिणी से हीरा सिंह गाबड़िया, लुधियाना से महेश इंदर सिंह ग्रेवाल, धर्मकोट से जत्थेदार तोता सिंह, मुक्तसर से कंवरजीत सिंह रोजी बरकंदी, फरीदकोट से परबंस सिंह बंटी रोमाणा, रामपुरा फुल से सिकंदर सिंह मलूका, घनौर से प्रोफेसर प्रेम सिंह चंदूमाजरा व समाना से सुरजीत सिंह रखड़ा के अलावा प्रकाश सिंह बादल जैसे पुराने चेहरे पार्टी को फिर से सत्ता में लाने की कवायद को लेकर मैदान में हैं।

भाजपा ने भी बाकी सियासी दलों की तरह ही जीत के मंत्र को लेकर पुराने चेहरों पर ही मजबूरी में भरोसा किया है। इस बार भाजपा की रणनीति थी कि चुनाव में लगभग पुराने चेहरों को बदल दिया जाएगा, लेकिन ऐन वक्त पर पार्टी ने रणनीति बदलकर मनोरंजन कालिया, तीक्ष्ण सूद, केडी भंडारी, मोहिंदर भगत, दिनेश बब्बू, सुरजीत कुमार ज्याणी जैसे पुराने नामों पर भरोसा किया है। पार्टी ने अपनों को किनारे करके दूसरे दलों से आए राणा गुरमीत सिंह सोढी, निमिषा मेहता तथा अरविंद खन्ना जैसे चेहरे भी मैदान में उतारे हैं।

आम आदमी पार्टी भी इस मामले में किसी से पीछे नहीं है। आप ने भी हरपाल सिंह चीमा, कुलदीप सिंह धालीवाल, सज्जन सिंह चीमा जस किशन रोडी, सर्वजीत कौर माणुके व कुलतार सिंह संधवा जैसे तमाम नामों को चुनावी मैदान में उतार कर तमाम सीटों से चुनाव लड़ने की जमीन तैयार कर करने में जुटे कार्यकर्ताओं को निराश किया है।

इसलिए मिली पुराने चेहरों को तरजीह

चुनाव से पहले सियासी दलों ने बेशक इस बार पुराने चेहरों को किनारे करने की रणनीति बनाई थी, लेकिन जमीनी स्तर पर अगर इन चेहरों को उम्मीदवारों के मैदान से हटाया जाता तो सभी सियासी दलों को अपनी जमीन खिसकती नजर आ रही थी। यह चेहरे दूसरे दलों के साथ जुड़कर पार्टियों को खासा नुकसान पहुंचा सकते थे। वोट शेयर को बढ़ाने के खेल के चलते मजबूरी में ही सही पुराने चेहरों पर ही पार्टियों ने फिर से दांव खेला है।

जीतने वाले उम्मीदवारों की कमी ने बढ़ाई पुरानों की मांग

चुनाव में टिकट वितरण से पहले पार्टियों की तरफ से करवाए गए सियासी सर्वे में चुनाव जीतने वाले नए चेहरों की खासी कमी निकल कर सामने आई। इसके चलते पर्टियों ने फिर रणनीति बदली और पुराने चेहरों पर ही दांव खेला। नए दावेदार अपना सियासी कद पुरानों की तुलना में ज्यादा बड़ा कर पाने में भी विफल रहे। इस बार भारतीय जनता पार्टी से सबसे ज्यादा नए चेहरों को चुनावी मैदेन में उतारने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन सीटों की हार जीत का सर्वे के बाद भाजपा ने भी अपनी रणनीति बदल दी। नतीजतन भाजपा के साथ जमीनी स्तर पर वर्षों से अपने दम पर चुनाव लड़ने का हौसला देने वाले तमाम दावेदार निराश हो रहे हैं।

कांग्रेस में अंदरूनी लड़ाई ने पुराने चेहरों को दिया मौका

कांग्रेस में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री के चेहरे को लेकर चल रही खींचतान व कैप्टन के हटने के बाद पार्टी का नया चेहरा बनने को लेकर पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू, मुख्यमंत्री चरनजीत सिंह चन्नी व सुनील जाखड़ में चल रही खींचतान व अंदरूनी लड़ाई के चलते पार्टी ने पुराने चेहरों को ही मैदान में उतार दिया। तमाम सीटों पर तीनों ही नेताओं की अपने-अपने चहेतों को सेट करने को लेकर हुई खींचतान के बाद अभी तक जारी उम्मीदवारों में 60 मौजूदा विधायकों को ही टिकट दे दिया गया है।

भाजपा व आप ने नए-पुरानों के साथ सजाया मैदान

भारतीय जनता पार्टी की तरफ से भी उम्मीद की जा रही थी इस बार पहली बार अपने दम पर पंजाब के चुनावी मैदान में आ रही पार्टी संगठन को मजबूत करने के लिए जुटे नए चेहरों को मौका देगी, लेकिन चुनाव जीतने की ललक ने भाजपा को भी पुराने चेहरों पर भरोसा करने पर मजबूर कर दिया। यही हाल आम आदमी पार्टी का रहा है। अभी तक जारी उम्मीदवारों की लिस्ट में आप में भी पुराने चेहरों की भरमार है, लेकिन कई स्थानों पर पार्टी ने नए चेहरे भी उतारे हैं। भाजपा भी अपनों को किनारे करके दूसरे दलों से आने वाले उम्मीदवारों को नए चेहरे के रूप में मैदान में ला रही है।


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