सरकारी अस्पतालों में सेहत सेवाओं के रेट बढ़ाने का फैसला वापस, विरोध के बाद दबाव में आई सरकार
सरकार के इस फैसले से सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने वालों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा।
जालंधर, जेएनएन। कोरोना काल में सरकारी अस्पतालों में एक सितंबर को स्वास्थ्य सेवाओं के रेट बढ़ाने के मामले को लेकर सेहत विभाग बैकफुट पर आ गया है। चौतरफा भारी विभाग के बाद सोमवार को विभाग ने आदेश वापस ले लिया। सरकार के इस फैसले से सरकारी अस्पतालों में इलाज करवाने वालों पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा। पंजाब हेल्थ सिस्टम कारपोरेशन की एमडी तनु कश्यप ने सोमवार को कोरोना महामारी का हवाला देते हुए स्वास्थ्य सेवाओं के रेट बढ़ाने का आदेश वापस लेने का ऑर्डर जारी किया है।
पिछली बार स्वास्थ्य विभाग की ओर से वर्ष 2014 में स्वास्थ्य सेवाओं के रेट बढ़ाए गए थे। सरकार ने छह साल बाद कोरोना काल में सेहत सेवाओं की दर 25 से 30 फीसद बढोतरी के आदेश जारी किए थे। इसका राज्य भर के राजनीतिक व समाजिक संगठनों ने कड़ा विरोध किया था। मामले की गंभीरता को देखते हुए स्वास्थ्य विभाग बैकफुट पर आ गया।
लग्जरी सुविधाएं लेने वालों पर डाला था अतिरिक्त बोझ
नए दरों में लग्जरी सुविधाएं लेने वालों पर अधिक बोझ डाला गया था। अस्पताल में प्राइवेट एसी कमरे का प्रतिदिन का किराया 500 से बढ़ा कर एख हजार रूपये किया गया था। वहीं, लड़ाई झगड़े के बाद सिविल अस्पताल में मेडिको लीगल रिपोर्ट (एमएलआर) तैयार का रेट 300 से बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया था। हालांकि 21 प्रकार की कैटेगिरी में मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाने की सूची में रखा गया था।
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