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खुद इलाज को मोहताज हुआ ट्रामा सेंटर

रोड सेफ्टी अभियान के तहत 2010 में आरएस-10 प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। सरकार की ओर से बैठकों का सिलसिला चला लेकिन इन बैठकों से पहले ही जालंधर में पंजाब का पहला ट्रामा सेंटर बन चुका था और एक साल से सेवाएं भी दे रहा था।

By JagranEdited By: Published: Tue, 27 Jul 2021 06:01 AM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 06:01 AM (IST)
खुद इलाज को मोहताज हुआ ट्रामा सेंटर
खुद इलाज को मोहताज हुआ ट्रामा सेंटर

जगदीश कुमार, जालंधर

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रोड सेफ्टी अभियान के तहत 2010 में आरएस-10 प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई। सरकार की ओर से बैठकों का सिलसिला चला लेकिन इन बैठकों से पहले ही जालंधर में पंजाब का पहला ट्रामा सेंटर बन चुका था और एक साल से सेवाएं भी दे रहा था। पूर्व सेहतमंत्री प्रो. लक्ष्मी कांता चावला ने 27 नवंबर 2009 को नेशनल हाईवे अथारिटी के सौजन्य से सिविल अस्पताल में ट्रामा सेंटर का उद्घाटन किया था। पंजाब का पहला सेंटर होने के कारण कई माहिर डाक्टरों की टीम ने दौरा किया और इसकी तर्ज पर अमृतसर, पठानकोट व खन्ना में ट्रामा सेंटर बनाए गए।

कुछ साल सब ठीक चला। ट्रामा सेंटर घायल मरीजों को बचाने में अहम कड़ी भी निभाने लगा लेकिन बिना सरकारी मदद आखिर कितने दिन चलता। नतीजा, सेंटर खुद ट्रामा का शिकार हो गया। न माहिर डाक्टर और स्टाफ है और न आधुनिक उपकरण। एंबुलेंस तक आखिरी सांसें बनकर रह गई है। वार्ड को जनरल वार्ड बना दिया गया। जनवरी 2015 जनवरी में पत्र जारी कर सेंटर के स्टाफ को हमेशा के लिए अलविदा भी कह दिया गया। दो साल पहले सेंटर की सरकार को दोबारा यादा आई तो केंद्र सरकार ने बर्न व इंजरी वार्ड बनाने के लिए 1.10 करोड़ का बजट जारी किया। अक्टूबर 2019 में निर्माण कार्य शुरू हुआ और मार्च में कोरोना की दस्तक से फिर काम बंद हो गया। अभी तक काम दोबारा शुरू नहीं हो पाया। फिलहाल सिविल अस्पताल के ट्रामा सेंटर में केवल एक ही मरीज दाखिल है। सड़क हादसों के शिकार घायलों को जनरल वार्ड में रखना पड़ रहा है। ज्यादातर मरीजों के परिजनों अस्पताल में की मौजूदा व्यवस्था को देख निजी अस्पतालों में ले जाना ही बेहतर समझते है। इन दिनों ट्रामा वार्ड कोरोना वार्ड का काम कर रहा है। ----

दोबारा से निर्माण शुरू करवाया जाएगा : मेडिकल सुपरिंटेंडेंट

सिविल अस्पताल की मेडिकल सुपरिटेंडेंट डा. सीमा का कहना है कि कोरोना के मरीजों की संख्या बढ़ने की वजह से ट्रामा सेंटर को विशेष वार्ड बनाने की हिदायतें दी गई थी। इसके चलते बर्न एंड इंजरी सेंटर का निर्माण कार्य बंद करवाया था। अब दोबारा निर्माण कार्य पूरा करवाने के लिए बातचीत चल रही है। हादसों के शिकार मरीजों के इलाज के लिए नए आईसीयू का इस्तेमाल किया जा रहा है।

सरकारी ट्रामा सेंटर में पहले ये थी सुविधाएं

16 बैड का आईसीयू

4 बैड का बर्न वार्ड

6 बैड का इमरजेंसी वार्ड

3 बैड रिकवरी रूम में

1 आपरेशन थियेटर

हर माह औसतन 410 मरीज होते थे भर्ती स्टाफ भी धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा

स्टाफ 2009 2021

सुपरस्पेशलिस्ट डाक्टर 03 00 (आउट सोर्स)

स्पेशलिस्ट डाक्टर 09 02

जनरल ड्यूटी मेडिकल अफसर 06 00

स्टाफ नर्स 40 20

वार्ड अटेंडेंट 12 00

------------------------------------------------------------------ मरीजों को निजी अस्पताल में करवाना पड़ता है दाखिल

होशियारपुर हाईवे पर बने जौहल अस्पताल के एमडी डा. बीएस जौहल का कहना है कि सरकार ने हाईवे पर ट्रामा सेंटरों को नोटिफाई करना था परंतु अभी तक मामला लंबित है। आसपास के इलाके के सड़क व अन्य हादसों के ज्यादातर घायल उनके अस्पताल में पहुंचते है। उन्होंने ट्रामा सेंटर के लिए बनाई तमाम शर्तों को पूरा किया है। अस्पताल में 28 बेड का आईसीयू, 13 वेंटीलेटर, एक्सरे, सी स्कैन व ब्लड बैंक की सुविधा के अलावा माहिरों की टीम मौजूद है। एंबुलेंस भी बीमार पड़ी

नेशनल हाईवे अथारिटी ने गंभीर मरीजों के लिए ट्रामा सेंटर को एंबुलेंस दी थी। एंबुलेंस को 22 मार्च 2011 को पूर्व सेहत मंत्री प्रो. लक्ष्मी कांता चावला ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। पहले एंबुलेंस को डेढ़ साल ड्राइवर नही मिला और बाद में वाईआईपी ड्यूटी के लिए इस्तेमाल की गई। वर्तमान में एंबुलेंस खटारा बन गई है और धूल फांक रही है।


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