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Bio Mining Project: वरियाणा डंप से कूड़ा खत्म करने का प्रोजेक्ट फिर बदला, नए सिरे से हाेगी तैयारी

वरियाणा डंप से कूड़ा खत्म करने के लिए करीब एक साल से जिस बायो माइनिंग प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने की तैयारी थी उसमें एक बार फिर रुकावट आ गई है।

By Edited By: Published: Thu, 17 Sep 2020 05:50 AM (IST)Updated: Thu, 17 Sep 2020 09:22 AM (IST)
Bio Mining Project: वरियाणा डंप से कूड़ा खत्म करने का प्रोजेक्ट फिर बदला, नए सिरे से हाेगी तैयारी
Bio Mining Project: वरियाणा डंप से कूड़ा खत्म करने का प्रोजेक्ट फिर बदला, नए सिरे से हाेगी तैयारी

जालंधर, जेएनएन। वरियाणा डंप से कूड़ा खत्म करने के लिए करीब एक साल से जिस बायो माइनिंग प्रोजेक्ट पर काम शुरू करने की तैयारी थी, उसमें एक बार फिर रुकवाट आ गई है। हालांकि इस बार भी प्रोजेक्ट बायो माइनिंग का ही है, लेकिन नए सिरे से तैयार किया जा रहा है। दावा है कि इसमें काफी कुछ बदलाव होगा।

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नगर निगम कमिश्नर करनेश शर्मा ने कहा कि नया प्रोजेक्ट डीपीआर स्टेज पर है और एक महीने में टेंडर प्रोसीजर शुरू हो जाएगा। नया प्रोजेक्ट पटियाला नगर निगम में तैयार बायोमाइनिग प्रोजेक्ट पर आधारित है। इसमें नगर निगम को वित्तीय लाभ होगा और काम की जगह जिम्मेवारी ठेकेदार पर रहेगी।

उन्होंने कहा कि नए प्रोजेक्ट के तहत मशीनरी लगाने की पूरी जिम्मेवारी कांट्रेक्टर की होगी और बायो माइनिग प्रोजेक्ट शुरू होने के बाद कूड़ा खत्म करने के बाद जो वेस्ट बचेगा, उसे जहां कहीं भी भेजना होगा उसके ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी ठेकेदार पर ही रहेगा। उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट से निगम पर बोझ कम पड़ेगा और काम की पूरी जिम्मेवारी ठेकेदार ही होगी। नगर निगम सुपरविजन करेगा, जिसे काम करवाना आसान होगा। करनेश शर्मा से पहले निगम कमिश्नर और स्मार्ट सिटी कंपनी के सीईओ रहे दीपर्वा लाकड़ा ने बायो माइनिग प्रोजेक्ट तैयार करवाया था और इसके लिए 69 करोड़ का टेंडर लगाया था।

50 सालाें से इकट्ठा हो रहा है कूड़ा

वरियाणा डंप पर पिछले 50 सालों से कूड़ा इकट्ठा हो रहा है। इस समय रोजाना करीब 500 टन कूड़ा शहर से डंप पर जा रहा है। 2003 में ही वरियाणा डंप पर कूड़े से खाद बनाने के प्रोजेक्ट पर काम चलता तो आज करीब 70 करोड़ खर्च न करने पड़ते। वरियाणा डंप को साफ करने के लिए पीपीसीबी ने भी निगम को अल्टीमेटम दे रखा है। कूड़े को एनर्जी में बदलने का प्लांट जमशेर में लगाया जाना था, लेकिन राजनीतिक विरोध के चलते प्रोजेक्ट बंद हो गया। पिछले 6 सालों से विवाद के कारण किसी भी प्रोजेक्ट पर सहमति नहीं बनी। अब बायोमाइनिग प्रोजेक्ट पर काम शुरू होना था, लेकिन बदलाव के कारण अब फिर देरी हो रही है।

कूड़ा खत्म करने में लगेंगे तीन साल

एक अनुमान के अनुसार वरियाणा डंप पर इस समय करीब 7 लाख टन से ज्यादा कूड़ा है। अगर बायोमाइनिग प्रोजेक्ट अगले तीन महीने में शुरू हो भी जाता है तो भी कूड़ा खत्म करने में तीन साल लग जाएंगे। वरियाणा डंप पर पहले लोगों के घरों का ही कूड़ा आता था, जो धीरे-धीरे खाद में बदल जाता था। इस खाद को किसान खरीद कर ले जाते थे, लेकिन जैसे-जैसे पॉलीथिन का इस्तेमाल बढ़ा, वैसे-वैसे कूड़ा बढ़ता गया और हानिकारक होने के कारण खाद की बिक्री बंद हो गई। इससे कूड़े के पहाड़ लग गए।

गीला-सूखा कूड़ा अलग-अलग करने से मना कर दिया था निगम ने

2003 में वरियाणा डंप पर कूड़े से खाद बनाने का कारखाना लगाया गया था। तब ग्रोमोर कंपनी ने निगम से मांग की थी कि उन्हें गीला कूड़ा ही उपलब्ध करवाया जाए, लेकिन निगम ने इससे साफ मना कर दिया था। तब निगम को गीला-सूखा कूड़ा अलग-अलग करने का सिस्टम पसंद नहीं आया था। अगर तभी यह सिस्टम शुरू कर दिया गया होता तो निगम को आज वेस्ट मैनेजमेंट के लिए इतने पापड़ न बेलने पड़ते। नगर निगम का इस समय पूरा फोकस गीले-सूखे कूड़े को अलग-अलग करने के लिए लोगों को तैयार करना ही है।


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