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साहित्य, कला व संस्कृति हैं प्रीत नगर की रीत, कभी कलाकारों और साहित्यकारों का मक्का कहलाता था ये गांव

1936 में गांव के लिए नक्शा तैयार किया गया। 1937 में इसके लिए जमीन खरीदी गई और 7 जून 1938 को वह सपना सच हुआ जब 16 परिवारों ने वहां रहना शुरू किया।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Sat, 23 Feb 2019 01:46 PM (IST)Updated: Sun, 24 Feb 2019 10:18 AM (IST)
साहित्य, कला व संस्कृति हैं प्रीत नगर की रीत, कभी कलाकारों और साहित्यकारों का मक्का कहलाता था ये गांव
साहित्य, कला व संस्कृति हैं प्रीत नगर की रीत, कभी कलाकारों और साहित्यकारों का मक्का कहलाता था ये गांव

जालंधर [वंदना वालिया बाली]। पंजाब के पहले सुनियोजित गांव होने का गौरव प्राप्त है अमृतसर के प्रीत नगर को। नाम के अनुरूप यहां प्रेम व दोस्ती का बसेरा रहा है। करीब 90 साल से कला व साहित्य का अनोखा संगम इस गांव ने देखा है। पंजाबी लेखक गुरबख्श सिंह ‘प्रीतलड़ी’ की दूरदर्शिता से उपजे इस गांव ने विभाजन, युद्ध व आतंकवाद जैसे तूफानों को भी झेला है। अनेक उतार-चढ़ाव के बावजूद यह गांव आज पुन: अपने गौरवशाली इतिहास को संजो कर नई पीढ़ी के लिए एक अनोखे सृजन केंद्र के रूप में लौटने लगा है। 35 साल बाद यहां सांस्कृतिक मेले का आयोजन किया गया है। इससे कलाकारों के लिए सृजनात्मक वातावरण उपलब्ध करवा कर प्रीत व अमन की नई इबारत लिखने की तैयारी है।

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बंटवारे से पहले 1930 के दशक में इंजीनियर व पंजाबी साहित्यकार गुरबख्श सिंह ने 170 एकड़ में फैले इस गांव की नींव रखी थी।

प्रीत नगर कभी साहित्यकारों व कलाकारों का मक्का कहलाता था। यह अजनाला-चुगावां रोड स्थित लोपोके गांव से जुड़ा है और अमृतसर व लाहौर से 20-20 किलोमीटर दूर है। खुले विचारों के मालिक व दूरदर्शी गुरबख्श सिंह रचनात्मक कार्यों से जुड़े लोगों के लिए एक विशेष गांव बसाना चाहते थे। एक ऐसा गांव जहां प्राकृतिक सौंदर्य के बीच, शांत वातावरण में कलाकार व साहित्यकार आ कर अपने सृजन कार्य कर सकें।

बड़ी हस्तियों का जमावड़ा रहा यहां

1936 में गांव के लिए नक्शा तैयार किया गया। 1937 में इसके लिए जमीन खरीदी गई और 7 जून 1938 को वह सपना सच हुआ जब 16 परिवारों ने वहां रहना शुरू किया। अदाकार बलराज साहनी, लेखक भीष्म साहनी, अमृता प्रीतम, साहिर लुधियानवी, नानक सिंह, बलवंत गार्गी, र्मोंहदर सिंह, शिव कुमार बटालवी, फैज़ अहमद ‘फैज़’, चित्रकार सोभा सिंह जैसी कई हस्तियों ने यहां रह कर अपनी कला को निखारा।

एक मॉडल गांव था यह

अद्भुत व्यक्तित्व के स्वामी गुरबख्श सिंह ‘प्रीतलड़ी’ लोगों को प्रीत की लड़ी में पिरो कर रखना चाहते थे। उनकी अनोखी सोच के अनुसार प्रेम व सौहार्द के इस गांव में जाति, धर्म, लिंग का कोई भेदभाव नहीं था। न कोई प्रादेशिक सीमाएं थी और न ही दिलों में किसी तरह की कोई लकीर। उस जमाने में भी उनके विचार बेहद प्रगतिशील थे। उन्होंने प्रीतनगर में एक सामूहिक रसोई बनाई जिसमें न केवल सांझा चूल्हा था, बल्कि उसके लिए सांझी डेयरी, सांझी खेती का भी प्रावधान रखा। यहां महिलाएं व पुरुष बारी-बारी समूह में सभी परिवारों का खाना पकाते थे। इसके पीछे सोच यह थी कि महिलाओं को भी उनके सृजनात्मक कार्यों के लिए समय मिल सके। वे गायन और अभिनय के लिए समय निकाल पाएं। गुरबख्श सिंह की बहन उमा पंजाब की पहली महिला रंगमंच कलाकार थीं। उनसे पहले महिलाओं के किरदार भी पुरुष ही निभाते थे। 

इसके अलावा उन्होंने एक अनोखा स्कूल वहां शुरू किया था। वहां बच्चों को किताबी शिक्षा से ज्यादा अनुभव आधारित पाठ पढ़ाए जाते थे। देश में पहला विदेशी ट्रैक्टर लाने वाले गुरबख्श सिंह की ऐसी सोच के पीछे कारण थी उनकी विदेश में हुई पढ़ाई। वह अमेरिका से इंजीनियरिंग की डिग्री ले कर लौटे थे। इस पढ़ाई के पीछे उनकी पत्नी का बलिदान भी था, जिन्होंने अपने जेवर बेचकर उन्हें पढ़ने विदेश भेजा था। 

प्रीत नगर की ‘प्रीत मिलनियां

इस अनोखे गांव में ‘प्रीत मिलनियों’ का आयोजन होता था, जिनमें सांस्कृतिक व राजनीतिक हस्तियां पहुंचती थीं। 23 मई 1942 को पंडित जवाहर लाल नेहरू भी यहां आये थे और रविंद्र नाथ टैगोर ने अपने प्रतिनिधि गुरुदयाल मलिक, जो शांतिनिकेतन विश्वविद्यालय के कुलपति थे, को यहां भेजा था। महात्मा गांधी ने भी यहां आने की इच्छा जाहिर की थी।
 

यादों की धरोहर 

जो साहित्यकार प्रीतनगर में रहे उनमें उपन्यासकार नानक सिंह का विशेष उल्लेख जरूरी हैं क्योंकि वे अंतिम सांस तक प्रीतनगर की मिट्टी से जुड़े रहे। यही कारण था कि गुरबख्श सिंह तथा उनकी याद में 16 अप्रैल 1999 को ‘गुरबख्श सिंह- नानक सिंह फाउंडेशन’ की स्थापना की गई और ठीक पांच साल बाद यहां ‘प्रीत भवन’ खुला। इसमें एक संग्रहालय है, जहां गुरबख्श सिंह प्रीतलड़ी के जीवन से संबंधित तस्वीरें व अन्य वस्तुएं संग्रहित हैं, नाटक मंचन के लिए एक बड़ा हॉल है। डिजिटल सुविधाओं वाला एक हॉल भी है।

साहित्यिक योगदान

गुरबख्श सिंह ‘प्रीतलड़ी’ एक इंजीनियर होने के साथ वरिष्ठ साहित्यकार थे। उनकी रचनाओं में दो उपन्यास, 11 कहानी संग्रह, 24 लेख संग्रह, तीन नाटक, तीन स्वजीवनियां, सात बाल साहित्य की पुस्तकें शामिल हैं। उनके सृजनात्मक कार्य में सबसे महत्वपूर्ण है 1933 में उनके द्वारा शुरू की गई पंजाबी पत्रिका ‘प्रीतलड़ी’। इसे आज भी उनके पौत्र रतिकांत सिंह व पौत्र वधु पूनम सिंह चला रहे हैं। इनके अलावा चौथी पीढ़ी के समिया, रतिका व सहज भी इसमें रचनात्मक भूमिका निभाते हैं। सांझे (भारत और पाकिस्तान के) पंजाब के लेखकों की रचनाएं तब से अब तक इसमें छपती हैं। सरहदों से ऊपर उठ कर साहित्य के जरिए प्रीत की लड़ी पिरोने वाले इस परिवार ने एक चिराग आतंकवाद में खोया है। गुरबख्श सिंह के पोते सुमित सिंह जो तब प्रीतलड़ी के संपादक थे, को उनके जोशीले लेखों के कारण 22 फरवरी 1984 को आतंकियों ने गोली का निशाना बनाया था।

परंपरा चौथी पीढ़ी के हवाले

‘प्रीतलड़ी’ की संपादक पूनम सिंह बताती हैं कि इस गांव की परंपरा को जारी रखने का जिम्मा अब चौथी पीढ़ी ने उठाया है। रतिका सिंह और समिया सिंह द्वारा शुरू किए गए ‘आर्टिस्ट्स रेजिडेंसी प्रोग्राम’ के अंतर्गत ब्रिटिश कोलंबिया तथा स्कॉटलैंड से भी विद्यार्थी आकर यहां पंजाबियत के बारे में लिखते और डाक्यूमेंटरी फिल्में बनाते हैं। यहां मॉरिशस, कनाडा, बैंगलूरू के कलाकारों का काम भी प्रदर्शित है।

ऐतिहासिक है यह गांव

प्रीतनगर पहुंचते ही आपका स्वागत एक ऐतिहासिक तालाब करता है। कहते हैं कि नानकशाही ईंटों से यह तालाब जहांगीर ने बनवाया था। इसी के पास स्थित है एक ऐतिहासिक इमारत, जो कभी जहांगीर व नूरजहां की आरामगाह थी पर अब खंडहर हो गई है। इसी इमारत में कभी गुरबख्श सिंह ‘प्रीतलड़ी’ ने अपनी प्रिंटिंग प्रेस लगाई थी।

35 वर्ष बाद शुरू हुआ प्रीत नगर का मेला

प्रीत मिलनियों के 35 वर्ष बाद कल यानी 22 फरवरी को शुरू हुआ मेला आज भी जारी रहेगा। इस मेले में फरीदकोट से पारंपरिक खेस बुनने वाले तथा जंडियाला गुरु से पीतल पर नक्काशी करने वाले कलाकार अपने हुनर का प्रदर्शन करेंगे। साथ ही ऑर्गेनिक खेती के बारे में गांव वालों के लिए एक वर्कशॉप खेती विरासत मिशन द्वारा लगाई जाएगी। पटियाला से लोकनृत्य गिद्दा प्रस्तुत करने कलाकार विशेष रूप से पहुंचेंगे। यहां महीने के हर तीसरे वीरवार को नाटक का मंचन भी होता है।


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