कबूतरों की उड़ान सरवण की पहचान, जालंधर के लाल ने देश-विदेश में बढ़ाया भारत का मान
दुनिया में कहीं भी कबूतर उड़ान प्रतियोगिता हो शहर का नाम सबसे ऊपर रहता है। इसका कारण हैं मोहल्ला गोबिंदगढ़ के सरवण सिंह कलेर। उन्होंने इस क्षेत्र में कई ऐसे रिकॉर्ड कायम किए हैं
जालंधर [शाम सहगल]। कबूतरबाजी का नाम जुबां पर आते ही पुराने दिनों के राजसी खेल की बात दिमाग में आती है लेकिन आज हम जिस कबूतरबाज की बात कर रहे हैं, उसने जालंधर का नाम दुनिया में रोशन किया है। दुनिया में कहीं भी कबूतर उड़ान प्रतियोगिता हो, शहर का नाम सबसे ऊपर रहता है। इसका कारण हैं मोहल्ला गोबिंदगढ़ के सरवण सिंह कलेर। उन्होंने इस क्षेत्र में कई ऐसे रिकॉर्ड कायम किए हैं, जो केवल जालंधर के नाम पर हैं। विदेशों में भी उनका कोई सानी नहीं है। तभी तो अमेरिका, इंग्लैंड व कनाडा से लोग सरवन से ऑनलाइन कबूतर उड़ाने का ज्ञान हासिल कर रहे हैं।
सरवण सिंह ने कबूतर उड़ान व ब्रीड प्रतियोगिता में विदेशों में जाकर जीत का परचम लहराया है। वर्ष 2000 में अमेरिका में हुई कबूतरों की ब्रीडिंग प्रतियोगिता में शामिल होकर विश्व में एकमात्र हरी आंखों वाले जालदार कबूतरों की नस्ल विकसित करने पर उन्हें विश्व चैंपियन घोषित किया गया। ज्यूरिख में हुई कबूतरों की उड़ान प्रतियोगिता में भी उन्होंने प्रथम पुरस्कार पाया। उन्हें पिजन क्लब ऑफ स्विजरलैंड ने 2002 में अभिनंदन पत्र दिया। इसी तरह इंग्लैंड में हुई कबूतरों की ब्रीडिंग प्रतियोगिता में भी उनके द्वारा विकसित की गई हरी आंखों वाले कबूतरों की नस्ल ने उन्हें सम्मान दिलाया।
कबूतरबाजी में जालंधर का नाम रोशन करने वाले सरवण सिंह को सम्मानित करते हुए पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल।
विरासत में मिला शौक बन गया जुनून
कलेर बताते हैं कि उनके नाना ने अमृतसर में कबूतर पाले हुए थे। कबूतरों के साथ नाना के भावनात्मक रिश्ते ने उनमें भी यह शौक पैदा कर दिया। भाई ओलंपियन हॉकी खिलाड़ी देवेंद्र सिंह गरचा की ख्याति ने सरवन को भी कबूतरों के खेल को विकसित करने को प्रेरित किया। इसके लिए उन्होंने शेर-ए-पंजाब महाराजा रणजीत सिंह पिजन फ्लाइंग क्लब बनाया। फिर शुरू हुआ इस जुनून को अंजाम देने का दौर।
लाखों की पेशकश ठुकराई, नहीं किया धरोहर का सौदा
अमेरिका में हुई ब्रीडिंग प्रतियोगिता में हरी आंखों वाले जालदार कबूतरों की नस्ल के साथ प्रथम स्थान पाने वाले सरवन सिंह को अमेरिकी आयोजकों ने यह नस्ल उन्हें देने को कहा। बदले में 16 लाख रुपये देने की पेशकश की, लेकिन सरवन ने पारिवारक धरोहर का सौदा करने से साफ मना कर दिया।
विश्व में कबूतरबाजी में देश का नाम रोशन करने पर पूर्व राष्ट्रपित प्रणब मुखर्जी से सम्मान पाते हुए सरवण सिंह।
सरवण के इशारों पर नाचते हैं उनके कबूतर
सरवन सिंह के पाले कबूतर उनके इशारों पर नाचते हैं। जैसे ही वह कबूतरों के पास पहुंचते हैं, वे उनके साथ प्यार करने लगते हैं। जब वह हाथ आगे करते हैं तो कबूतरों में उनके हाथ पर बैठने के लिए जैसे होड़ लग जाती है। यह सरवन का कबूतरों से लगाव व ट्र्रेंनग का ही परिणाम है।
देश-विदेश में लोगों को दे रहे ऑनलाइन ट्र्रेंनिंग
सरवन सिंह से देश-विदेश के 600 लोग कबूतरों को पालने, प्रतियोगिता के लिए तैयार करने व ब्रीड विकसित करने की ऑनलाइन ट्र्रेंनिंग ले रहे हैं। इसके लिए वह दिन में रोजाना दो से तीन घंटे ऑनलाइन लोगों के सवालों के जवाब देते हैं। साथ ही कबूतरों को पालने व उनसे से जुड़ी अन्य बारीकियों का ज्ञान बांटते हैं।
आज भी पोस्ट मास्टर बनने की क्षमता रखता है कबूतर
सरवन बताते हैं कि कबूतर अपने मालिक के वस्त्र व महक की पहचान रखते हैं। जब कबूतर उड़ान प्रतियोगिता करवाई जाती है तो भले वह कितना भी ऊपर उड़ जाए, लेकिन वस्त्र पहचानकर वापस सीधे मालिक के पास ही आता है। इसी कारण कबूतर को पोस्टमास्टर भी कहा जाता रहा है। अगर कायदे से ट्र्रेंनग दी जाए तो कबूतर आज भी एक शहर से दूसरे शहर तक संदेश भेजने की क्षमता रखता है। इसके अलावा जो कबूतर को लगातार खाना देता है, उसे वे उसकी महक से ही पहचान लेते हैं। जब भी वह कबूतरों के पास पहुंचते है तो उनके साथ भले दस लोग हों, लेकिन कबूतर उनकी तरफ ही आते हैं।
यह है प्रतियोगिता की प्रक्रिया
काबूतर उड़ान प्रतियोगिता की शुरुआत तड़के छह बजे होती है जबकि कबूतर के उड़ने का समय सुबह 10 बजे से नोट किया जाता है। तब से लेकर जितने घंटे तक कबूतर उड़ान भरकर वापस लौटेगा, उसके मुताबिक ही अधिक समय बाद लौटने वाले कबूतर को विजेता घोषित किया जाता है।
इनसे मिला सम्मान
- पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी
- पूर्व प्रधानमंत्री स्व. आइके गुजराल
- पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल
- मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह।