बहीखाताः सरकार को खजाने की चिंता पर जनता के लिए शराब नहीं रोटी बड़ा मसला
इस बीच नई बात निकल कर सामने आई कि सरकार ठेकेदारों को लुभाने में भी लगी हुई है। उन्हें घाटे के कारण छोड़े गए ठेके भी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है।
जालंधर, [मनुपाल शर्मा]। बीते दो सप्ताह से शराब ठेकेदारों और सरकार में ठनी हुई है। ठेकेदार शराब बेचने को तैयार नहीं है और सरकार बिकवाने को आमादा है। अपने लिए राहत की मांग कर रहे ठेकेदारों को सरकार के आगे हार माननी पड़ी और सात दिन बाद बैक फुट पर आना पड़ा। इसी बीच सरकारी आदेश आया कि राज्य भर में शराब की अवैध बिक्री बंद होनी चाहिए और तस्करी पर भी पूर्ण अंकुश लगना चाहिए। इस बीच नई बात निकल कर सामने आई कि सरकार ठेकेदारों को लुभाने में भी लगी हुई है। उन्हें घाटे के कारण छोड़े गए ठेके भी लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। दरअसल, सारे प्रयास खाली खजाना भरने के लिए हो रहे हैं। जबकि इस बात की किसी को फिक्र नहीं है कि कई दिनों से घरों में बंद जनता को चिंता शराब की नहीं बल्कि उनके लिए बड़ा मसला रोटी का है।
पैकेज में हिस्सा ढूंढ़ रहे
बीते दो माह से राज्य और केंद्र सरकार उन महानुभावों को अच्छी तरह से हिला रही है, जो यह बताते नहीं थकते थे कि उनके कहने पर सरकार ने अमुक फैसला ले लिया। कोई सरकार का धन्यवाद करता था तो कोई हाथ जोड़े वाली इमोजी डालकर खुद को सरकार के खासा नजदीक बताता था। बहरहाल बीते दो माह में बिजली के बिल माफ नहीं हुए, श्रमिकों का वेतन सरकार ने दिया नहीं। वैट और जीएसटी रिफंड की बात ही नहीं हुई और एक तरफ कारोबार शुरू करने के आदेश देकर दूसरी तरफ श्रमिकों की घर वापसी भी शुरू करवा डाली। झेंप मिटाने के लिए कुछ लोग इसे भी ठीक भी बताते रहे। इसी बीच केंद्र सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा कर डाली। अब महानुभाव 20 लाख करोड़ रुपये में से अपने हिस्से कितने आए उसे ढूंढ़ रहे हैं, जो ढूंढे से भी नहीं मिल रहे हैं।
काश, हम बाहरी होते
सरकार ने नीले कार्ड बनाए नहीं और इसी कारण राशन नहीं मिला। कर्फ्यू लागू होने से बाहर भी नहीं निकल पाए। जिस दिन थोड़ा बहुत जोश दिखाया, उस दिन पुलिस के डंडे ने ठंडा कर डाला। ऐसे में कुछ स्थानीय लोग इन दिनों खासे परेशान हैं। काम धंधा भी कुछ नहीं रहा और सरकार ने सुध भी नहीं ली। सरकार का ध्यान मात्र उन्हेंं ही घर पहुंचाने पर रहा, जो बाहरी राज्यों से संबंधित थे। स्थानीय की बजाय बाहरी राज्य वालों को रसद पहुंचाने में भी प्राथमिकता मिली। वहीं स्थानीय लोगों को मदद के लिए भी सिफारिश करवानी पड़ी। अब जब सरकार ने करोड़ों रुपये बाहरी राज्यों के लोगों को भिजवाने के लिए ट्रेन और बसें चलाने पर खर्च डाले तो कुछ स्थानीय लोग यह भी कहते हुए नजर आए कि काश हम भी खुद को बाहरी राज्य का साबित कर डालते। इसी बहाने सरकार से कुछ राहत तो मिल जाती।
हुण किस्त कौण देउगा
लगभग पौने दो महीने बाद कफ्र्यू हटने का स्वागत तो सभी ने किया। लेकिन इसी बीच इन दिनों दिमाग में यह टेंशन भी घर करने लगी है कि अब क्या करेंगे। पहले तो किसी तरह लोन की किस्तें काम कर निकाल लेते थे और अब जब दो महीने बाद काम धंधा शुरू करेंगे तो यह किस्तें कैसे निकलेंगी। सबसे ज्यादा परेशान इन दिनों ई रिक्शा और थ्री व्हीलर चालक हैं। उन्हें अब भी भविष्य अंधकार में दिखाई दे रहा है। यही हाल टैक्सी, ट्रक और बस मालिकों का है। अब बैंक और फाइनांस कंपनियां अपनी लोन वाली फाइलों पर पड़ी गर्द को हटाएंगी और फिर शुरू हो जाएगा किस्त मांगने का सिलसिला। इस वक्त तो लाले दो वक्त की रोटी के पड़े हुए हैं और किस्त कहां से वापस करेंगे। चाहे सरकार ने तीन महीने की राहत दी है लेकिन अब इस अवधि को बढ़ाने की मांग उठने लगेगी।