जच्चा-बच्चा सुरक्षा के लिए सरकारी की बजाय निजी अस्पतालों में जा रहे लोग
कोरोना के संकट में सरकारी अस्पतालों को जच्चा-बच्चा सुरक्षा के लिए संकट के दौैर से गुजरना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लोगों में पहले ही विश्वास कम था।
जालंधर, [जगदीश कुमार]। कोरोना के संकट में सरकारी अस्पतालों को जच्चा-बच्चा सुरक्षा के लिए संकट के दौैर से गुजरना पड़ रहा है। सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लोगों में पहले ही विश्वास कम था। कोरोना के बाद अब अधिकतर लोग जच्चा-बच्चा की सुरक्षा के लिए निजी अस्पतालों की शरण ले रहे हैं। पिछले चार माह में सरकारी अस्पतालों में प्रसव की दर में तेजी गिरावट आई है। दूसरी तरफ निजी अस्पतालों की बल्ले-बल्ले रही। जनवरी में जिले में हुई 3074 में सरकारी अस्पतालों में 1290 प्रसव हुए थे, जबकि अप्रैल में 1704 में से केवल 631 प्रसव हो पाए।
सिविल सर्जन डॉ. गुरिंदर कौर चावला का कहना है कि इन दिनों में प्रसव की दर कम हो जाती है। कोविड-19 के चलते सिविल अस्पताल को आइसोलेशन सेंटर में तबदील कर दिया था, लेकिन जच्चा-बच्चा केंद्र चल रहा था। जिले के स्वास्थ्य केंद्रों में भी प्रसव करवाए जा रहे हैं। कोरोना के मद्देनजर आयुष्मान सेहत बीमा योजना के तहत कार्ड धारकों को पैनल में शामिल निजी अस्पतालों में भी इसकी सुविधा दी गई है। इस कारण भी निजी अस्पतालों में दर जाती है।
फेडरेशन ऑफ ऑब्सटेट्रिक एंड गायनीकोलोजीकल सोसायटीज ऑफ इंडिया (फोगसी) की प्रधान डा. सुरजीत कौर का कहना है कि मार्च व अप्रैल में हर साल प्रसव कम होते है। आयुष्मान सरबत सेहत बीमा योजना के तहत पैनलमेंट वाले अस्पतालों में केसों की दर बढ़ी है। कोविड-19 के डर से पूरे एहतियात बरत कर काम किए जा रहा है।
माह सरकारी निजी घर कुल
जनवरी 1290 1731 53 3074
फरवरी 775 1402 55 2232
मार्च 754 1690 22 2466
अप्रैल 631 1041 32 1704
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