आप जानते हैं किसने की थी ओम जय जगदीश हरे... की रचना, इन्होंने ही लिखा था हिंदी की पहला उपन्यास
अधिकांश लोग पंडित श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी को लोकप्रिय आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ के रचयिता के रूप में जानते हैं लेकिन उन्होंने हिंदी का पहली उपन्यास भी लिखी थी।
जालंधर [वंदना वालिया बाली]। अधिकांश लोग पंडित श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी को लोकप्रिय आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ के रचयिता के रूप में जानते हैं, लेकिन क्या आपको मालूम है कि वह हिंदी के पहले उपन्यास ‘भाग्यवती’ के लेखक भी थे। 1877 में लिखे इस क्रांतिकारी उपन्यास द्वारा उन्होंने स्त्री-पुरुष समानता की बात की और बाल विवाह का विरोध किया था। 24 जून को इस महान साहित्यकार की पुण्यतिथि है। इसी मौके पर महिला सशक्तिकरण के झंडाबरदार रचनाकार के जीवन के इस पहलू पर एक नजर...
जालंधर के फिल्लौर शहर में 1837 में जन्म लेने वाले पंडित श्रद्धाराम शर्मा फिल्लौरी एक ओर सनातन धर्म के लिए ‘ओम जय जगदीश हरे’ जैसी लोकप्रिय आरती की रचना की तो दूसरी ओर उनकी लेखनी में स्त्री-पुरुष समानता की आवाज भी बुलंद दिखती है उनके उपन्यास ‘भाग्यवती’ में।
पहला हिंदी उपन्यास लिखने का श्रय भी पंडित श्रद्धा राम शर्मा फिल्लौरी को ही जाता है। इस बात को प्रमाणित करने वाले राष्ट्रपति अवार्ड विजेता डॉ. हरमहेंदर सिंह बेदी, जो इन दिनों धर्मशाला स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति हैं। बताते हैं कि अपने इस उपन्यास ‘भाग्यवती’ को उन्होंने नायिका प्रधान रखा। ‘भाग्यवती’ नाम एक विधवा के लिए इस्तेमाल करना, वो भी उस दौर में जब समाज में पति की मृत्यु के लिए अकसर पत्नी के कर्मों व भाग्य को ही दोषी मान लिया जाता था, अपने आपमें ही बहुत कुछ कहता है।
महिलाओं को सम्मान देने का यह उनका अपना फलसफा था। उन्होंने अपनी इस नायिका के जरिए न केवल विधवाओं को सम्मान दिलाने की बात की बल्कि उनके पुनर्विवाह का वकालत करते हुए भी समाज को जागरूक करने की पूरी कोशिश की। इसी के साथ कहानी के जरिए बाल विवाह जैसी कूप्रथा पर भी उन्होंने प्रहार किया।
जब दहेज में दिया जाता था उपन्यास ‘भाग्यवती’
35 साल तक गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी अमृतसर में हिंदी के विभागाध्यक्ष रहे डॉ. बेदी के अनुसार पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी द्वारा रचित इस उपन्यास में एक विधवा के पुनर्विवाह के बाद नए घर के आंगन में पहुंचकर कहना, ‘मैैं भाग्यवती हूं, इस घर के भाग जगाने आई हूं।’ एक सकारात्मक संदेश के रूप में समाज में फैला। यह इतना लोकप्रिय हुआ कि भाग्यवती के समर्थन में एक लहर सी चल पड़ी। अमृतसर व लाहौर में तो यह उपन्यास दाज-वरी की दुकानों पर मुफ्त दिया जाने लगा, क्योंकि इसे बेटी के दहेज का एक आवश्यक हिस्सा माना जाने लगा था।
स्त्री उद्धार व सुधार की पुस्तिका
गत 40 साल से डा. बेदी कहते हैं कि पंडित श्रद्धा राम का यह उपन्यास स्त्री उद्धार व सुधार की पुस्तिका के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसके जरिए महिला सशक्तिकरण के लिए समाज में दो प्रभाव पड़े। पहला यह कि सती प्रथा के विरोध में पूरा पंजाब जागरूक हुआ। दूसरा गुरुओं की बाणी व वीरांगनाओं के कारण जहां महिलाओं का सम्मान था, वहीं अब विधवाओं को भी ‘भाग्यवती’ मानने लगे लोग।
इसके अलावा पंडित श्रद्धा राम के उपन्यास की नायिका का बाल विवाह के कारण छोटी उम्र में विधवा होना और नाजुक उम्र में जीवन के तूफान को झेलना, बाल विवाह की कुप्र था पर भी समाज को सोचने पर मजबूर करता है। पंडित जी बच्चियों की शादी 16 साल की उम्र के बाद ही करने की सलाह सभी को देते थे। इस प्रकार अपनी लेखनी द्वारा पंडित श्रद्धा राम शर्मा फिल्लौरी द्वारा नारी सशक्तिकरण के बारे में जो चेतना जगायी गई, उसके बाद नारी को समाज में वह स्थान मिलना शुरू हुआ जिसकी वो हकदार थी।
मंदिर में महिलाओं का प्रबंधन
पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी ने फिल्लौर में श्री हरि मंदिर का निर्माण करवाया और उसके प्रबंधन का काम काज नारी सशक्तिकरण की मिसाल पेश करते हुए 19वीं सदी में महिलाओं को सुपुर्द किया। आज भी शहर के बीचों बीच स्थित इस मंदिर के प्रबंधन की कमान महिलाओं के हाथ में ही है।
डॉ. बेदी ने सिद्ध किया पं. श्रद्धाराम को हिंदी का पहला उपन्यासकार
डॉ. हरमहेंद्र सिंह बेदी पिछले 40 साल से पंजाब की हिंदी कविता के गवाह हैं। पंजाब के हिंदी साहित्य को राष्ट्रीय पहचान दिलाने में इनकी सक्रिय भूमिका रही है। विशेषकर पंडित श्रद्धाराम फिल्लौरी पर इनकी रिसर्च ने ही सिद्ध किया कि ‘भाग्यवती’ ही
हिंदी का पहला उपन्यास है। यह 1877 में लिखा गया और 1888 में पहली बार प्रकाशित हुआ। इससे पहले 1902 में छपे लाला श्री निवास द्वारा लिखे उपन्यास ‘परीक्षा गुरु’ को पहला हिंदी उपन्यास माना जाता था। डॉ. बेदी पंडित श्रद्धा राम फिल्लौरी ग्रंथावली के तीन खंडों के रचयिता भी हैं।
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