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90 लाख के बिल पर फर्जी हस्ताक्षर मामले में एक महीने की जांच फेल, नहीं पकड़ा गया आरोपी, फाइल बंद

सड़क निर्माण कार्य के 90 लाख के दो बिलों पर डिप्टी कंट्रोलर ऑफ फाइनेंस एंड अकाउंट्स के फर्जी हस्ताक्षर मामले में नगर निगम की जांच फेल हो गई है।

By JagranEdited By: Published: Thu, 01 Oct 2020 06:01 AM (IST)Updated: Thu, 01 Oct 2020 06:01 AM (IST)
90 लाख के बिल पर फर्जी हस्ताक्षर मामले में एक महीने की जांच फेल, नहीं पकड़ा गया आरोपी, फाइल बंद
90 लाख के बिल पर फर्जी हस्ताक्षर मामले में एक महीने की जांच फेल, नहीं पकड़ा गया आरोपी, फाइल बंद

जागरण संवाददाता, जालंधर

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सड़क निर्माण कार्य के 90 लाख के दो बिलों पर डिप्टी कंट्रोलर ऑफ फाइनेंस एंड अकाउंट्स के फर्जी हस्ताक्षर मामले में नगर निगम की जांच फेल हो गई है। ज्वाइंट कमिश्नर शायरी मल्होत्रा के नेतृत्व में गठित 3 सदस्यीय टीम की 1 महीने की जांच के बाद भी कोई आरोपी नहीं पकड़ा गया। जांच टीम यह पता नहीं लगा पाई कि फर्जी हस्ताक्षर किसने किए हैं, लेकिन तय प्रक्रिया तोड़कर ठेकेदार को भुगतान करने के ऑर्डर जारी करने वाले अकाउंटेंट राजीव सोबती पर कार्रवाई करते हुए पब्लिक डीलिग से हटा दिया है। सोबती को नोटिस भी जारी किया गया है और पूछा गया है कि इस लापरवाही के लिए उन पर कार्रवाई क्यों न की जाए। वही ठेकेदार राजीव बंसल को भी नोटिस दिया गया है। ठेकेदार से पूछा गया है कि वह बिल से संबंधी नगर निगम की फाइल को अपने कब्जे में लेकर भुगतान की कोशिश क्यों करवा रहा था।

निगम कमिश्नर करनेश शर्मा ने जांच कमेटी की रिपोर्ट को फाइनल मान लिया है। उन्होंने कहा कि आगे से ऐसी गड़बड़ी न हो इसके लिए पेमेंट की प्रक्रिया को फूलप्रूफ बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि पेमेंट के लिए फाइल अकांउट्स ब्रांच में कई स्टेज से होकर गुजरती है और अब इस प्रक्रिया को छोटा करने की तैयारी है। इस मामले का खुलासा दैनिक जागरण ने 4 सितंबर के अंक में किया था। इसके बाद नगर निगम कमिश्नर ने जांच के लिए कमेटी गठित कर दी थी। न फॉरेंसिक और न ही पुलिस जांच

नगर निगम कमिश्नर करनेश शर्मा ने 90 लाख के दो बिलों पर फर्जी हस्ताक्षर के मामले की फाइल बंद कर दी है। जांच कमेटी की रिपोर्ट किसी नतीजे पर नहीं पहुंची है। इसके बावजूद आरोपित तक पहुंचने के लिए न तो फॉरेंसिक जांच की जरूरत समझी गई है और न ही पुलिस को मामला सौंपा गया है। निगम कमिश्नर ने कहा है कि इस पूरे मामले में कहीं भी वित्तीय नुकसान नहीं हुआ है, इसलिए मामला पुलिस को सौंपने की जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा कि फर्जी साइन किसने किए यह पता लगाना काफी मुश्किल काम है। भविष्य में ऐसा न हो इसके लिए सिस्टम में सुधार करेंगे। दैनिक जागरण ने किया था खुलासा

इस मामले का खुलासा दैनिक जागरण ने ही किया था। बिल का भुगतान करने के लिए डीसीएफए के साइन जरूरी होते हैं। उस समय भुगतान के लिए डीसीएफए पंकज कपूर की जिम्मेवारी थी। पंकज कपूर के पास जब फाइल दूसरी बार आई तो उन्होंने देखा कि उनके साइन पहले से ही फाइल पर मौजूद हैं। पंकज कपूर ने इसकी शिकायत निगम कमिश्नर से कर दी। दैनिक जागरण में इसका खुलासा होने के बाद जांच टीम बनाई गई। निगम में फर्जीवाड़ा

- पहले नगर निगम के विभिन्न विभागों में मैन पावर सप्लाई के लिए आकाश गवर्नमेंट कांट्रैक्टर ने टेंडर डॉक्युमेंट के साथ पीएफ और ईएसआई के जाली दस्तावेज जमा करवाए थे। प्रोविडेंट फंड एक्ट के तहत कार्रवाई की सिफारिश की गई है।

- विशाल कांट्रैक्टर ने निगम का ठेका लेने के लिए जारी लेबर लाइसेंस जमा करवाया था। जांच में मामला पकड़ा गया। नगर निगम ने ठेकेदार पर केस दर्ज करने के लिए पुलिस कमिश्नर पत्र लिखा है।

- नगर निगम का टेंडर लेने के लिए अमृतसर की वीएच इंटरप्राइजेज ने साल 2015 में फर्जी दस्तावेज जमा करवाए थे। जालंधर के भाजपा नेता की कंपनी के खिलाफ 2019 में मेयर जगदीश राजा ने जांच दोबारा शुरू करवाई। राजनीतिक कारणों से जांच रुकी हुई है।

- बजवाड़ा कोआपरेटिव सोसायटी ने टेंडर लेने के लिए पीएफ के जाली दस्तावेज दिए। मामले की जांच चल रही है, लेकिन कार्रवाई होने की उम्मीद कम है। एफएंडसीसी में भी मामला उठ चुका है।


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