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एनआरआई सभा पंजाब ने की सरकार से आर-पार की लड़ाई की तैयारी, यह है वजह

2013 से एनआरआई सभा के चुनाव न होने से संस्था के सदस्यों में रोष है। उन्होंने मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से तत्काल चुनाव करवाने की मांग की है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Thu, 15 Nov 2018 04:53 PM (IST)Updated: Thu, 15 Nov 2018 04:53 PM (IST)
एनआरआई सभा पंजाब ने की सरकार से आर-पार की लड़ाई की तैयारी, यह है वजह
एनआरआई सभा पंजाब ने की सरकार से आर-पार की लड़ाई की तैयारी, यह है वजह

सत्येन ओझा, जालंधर। एनआरआइ सभा पंजाब के चुनाव को लेकर इस बार एनआरआइ (अनिवासी भारतीय) आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। साल 2013 के बाद से अभी तक एनआरआइ सभा का चुनाव नहीं हुआ है, जिससे एनआरआइज आक्रोशित हैं। सभा के निवर्तमान अध्यक्ष जसवीर सिंह शेरगिल का कहना है कि अगर इस बार चुनाव नहीं कराए गए तो वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे।

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 उन्होंने कहा कि चुनाव के मसले को लेकर सभा के चीफ पैट्रन मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह से मुलाकात के लिए कई बार समय मांगा गया पर आज तक समय नहीं मिला। सभा के सभी फंक्शनल अधिकार डिवीजनल कमिश्नर के पास हैं। छह महीने पहले यहां पदभार संभालने वाले नए डिवीजनल कमिश्नर बी पुरुषार्थ को अमृतसर ट्रेन हादसे की जांच का जिम्मा सौंपे जाने के बाद वे अभी तक एनआरआई सभा के चुनाव को लेकर कोई बैठक नहीं कर पाए हैं।

एनआरआइज को ये आ रही हैं मुश्किलें

सभा के पास एनआरआइ के जमीनी विवादों से संबंधित सबसे ज्यादा मामले सामने आते हैं। सभी का निर्वाचित अध्यक्ष होने पर वह प्रशासन व एनआरआई के बीच की कड़ी के रूप में काम करते हुए इन समस्याओं को तेजी के साथ निपटाने में मददगार साबित होता है। इसके साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी योजनाओं में मदद कर सभा विकास कार्यों में अहम योगदान करती है। कई गांवों में विकास के लिए सरकार की ओर से दी जाने वाली विकास की राशि के बराबर राशि प्रदान करने की योजना भी प्रदेश में चल रही थी, सभा के चुनाव न होने से विकास योजनाएं भी ठप पड़ी हैं।

एनआरआइ हब है शहर

सूबे में संचालित हो रहीं 12 एनआरआइ सभा की कुल सदस्यता लगभग 24 हजार है। एनआरआइ सभा पंजाब में जालंधर के सदस्यों की कुल संख्या लगभग 18 हजार हैं। इनमें सबसे ज्यादा संख्या में एनआरआइ जालंधर जिले से संबंधित हैैं। सभा के अंतिम बार चुनाव जनवरी 2013 में हुए थे। अध्यक्ष का कार्यकाल एक साल का होता है। साल 2014 में जब सभा के तत्कालीन अध्यक्ष जसवीर सिंह शेरगिल का कार्यकाल खत्म हुआ तो नए चुनाव की सरगर्मियां शुरू हो गईं थी, इसी बीच सभा की नई सदस्यता को लेकर सभा में दो गुट बन गए थे। दोनों गुटों में सदस्यता का विवाद इस कदर गरमाया कि मामला अदालत तक जा पहुंचा था।

2015 में हुए प्रयास सिरे नहीं चढ़े

साल 2015 में एनआरआइ मामलों के तत्कालीन मंत्री जत्थेदार तोता सिंह ने पहल करके एनआरआइ सभा पंजाब के चुनाव कराने का प्रयास किया, लेकिन सदस्यता विवाद का मामला 2016 में जब तक सुलझा तब तक विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण चुनाव नहीं हो सके। बाद में साल 2017 में राज्य में सत्ता परिवर्तन हो गया। नई सरकार के अस्तित्व में आने के बाद सभा के सक्रिय सदस्य चुनावों को लेकर लगातार प्रयास करते रहे, लेकिन सभा के चेयरमैन डिवीजनल कमिश्नर की ओर से चुनाव में दिलचस्पी न दिखाने के कारण अभी तक मामला अटका हुआ है।

डिवीजनल कमिश्नर अगर चुनाव का प्रस्ताव देते हैं, तो  सरकार उसे तत्काल मंजूरी दे देगी। सरकार की ओर से चुनाव को लेकर किसी प्रकार की रूकावट नहीं है।

-एसआर लद्दड़, प्रिंसिपल सेक्रेटरी, एनआरआइ मामले (पंजाब सरकार)


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