घुमक्कड़ः थानों में इंसाफ की गुहार लगाने वालों को कुर्सियों की दरकार
तंदुरुस्त लोगों को छोड़ भी दें तो महिलाओं व बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक फरियाद पकड़े खड़े रहते हैं। कहने को यहां कुर्सियां लगी तो हैं लेकिन अफसरों के आते ही उन पर गनमैन बैठ जाते हैं।
जालंधर [मनीष शर्मा]। थानों में इंसाफ नहीं मिलता तो लोग बड़े अफसरों का दरवाजा खटखटाने पुलिस कमिश्नरेट पहुंचते हैं। पुलिस कमिश्नर, डीसीपी और एडीसीपी तक यहीं बैठते हैं। यहां अफसरों से मिलने के लिए इंतजार तो करना ही पड़ता है, उससे बड़ी समस्या इंतजार का समय काटने की है। जरूरत किसी मनोरंजन की नहीं बल्कि एक मूलभूत जरूरत की है और वो है बैठने की। हां, अगर किसी को सीपी को मिलना हो तो वेटिंग रूम है, लेकिन फरियाद पांच एडीसीपी व पांच डीसीपी तक पहुंचानी हो तो मुलाकात तक का वक्त खड़े रहकर काटना पड़ता है। तंदुरुस्त लोगों को छोड़ भी दें लेकिन महिलाओं व बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक फरियाद पकड़े खड़े रहते हैं। कहने को यहां कुर्सियां लगी तो हैं लेकिन अफसरों के आते ही उन पर गनमैन बैठ जाते हैं। फरियादी भी कहते हैं, इंसाफ का तो पता नहीं, लेकिन बैठने को कुर्सियां तो दे दो।
डीसी का पौधा फिर हुआ हरा
पिछले हफ्ते डिप्टी कमिश्नर वरिंदर शर्मा की नेम प्लेट वाले सूखे पौधे का जिक्र दैनिक जागरण ने किया तो वह अब अचानक हरा हो गया। लगता तो यह चमत्कार जैसा है लेकिन है नहीं। जैसे ही अफसरों ने यह पढ़ा कि सूखा पौधा मीडिया में सुर्खियां बटोर गया तो गंभीर हुए कर्मचारियों ने तुरंत उसे हटाकर नया हरा पौधा लगा दिया। वो बात अलग है कि जब जिला प्रशासकीय कांप्लेक्स को हरा-भरा बनाने की बात हुई थी तो यह भी तय हुआ था कि जिसके नाम का पौधा है, वो ही देखभाल भी करेगा। इसीलिए तो नेमप्लेट भी लगाई गई थी। खैर, इसी बहाने सूखे पौधे को गायब कर हरे पौधे ने उसकी जगह ले ली और अब बाकी पौधों की निराई-गुडाई शुरू हो गई है। वैसे, कई और अधिकारियों के पौधे भी सूखने की कगार पर हैं, वक्त रहते ध्यान न दिया तो वो भी सुर्खियां बटोर ही लेंगे।
पब्लिक तो सब जानती है
वैसे तो सड़क सुरक्षा सप्ताह हर साल इसीलिए मनाया जाता है कि कम से कम एक हफ्ते तो गंभीरता से सड़क सुरक्षा के लिए काम हो, लेकिन निर्भर तो उन्हीं अफसरों पर करता है जो बाकी हफ्तों में कुछ नहीं करते। कुछ यही खानापूर्ति रीजनल ट्रांसपोर्ट अथॉरिटी ने की। शुरुआत हस्ताक्षर अभियान से की लेकिन दफ्तर वालों को छोड़ किसी के हस्ताक्षर नहीं हुए। फिर सड़क पर जागरूकता करने निकले तो बीएमसी चौक की ठंड में कर्मचारियों से लेकर अफसरों का आधे घंटे में ही दम फूल गया। अगले दिन हेलमेट जागरूकता रैली निकाली। एक तो उसमें घटिया क्वालिटी के हेलमेट पहना दिए और रैली भी डीसी दफ्तर से शुरू होकर दो-तीन किलोमीटर जाकर लौट आई। अगले दिन हेलमेट वितरण समारोह रखा तो उसका आयोजन नो-पार्किंग में कर दिया। अब कागजों में ये सब देख चंडीगढ़ बैठे अफसर तो खुश हो जाएंगे लेकिन ये पब्लिक है, सब जानती है।
देहात पुलिस की टी पार्टी
नया साल आया और फिर माघी भी आई। देहात पुलिस के एसएसपी नवजोत माहल ने दोनों मौकों पर एसएचओ से लेकर एसपी स्तर के कर्मचारियों को बुलावा भेजा। अपने घर पर टी-पार्टी दी। वादा भी लिया कि इस एक साल भी हम अपराध रोकने में जी-जान लगा देंगे। बॉस की टी-पार्टी से अफसर व खासकर थानों के एसएचओ खासे खुश दिखे। इसके उलट कमिश्नरेट पुलिस में ऐसा कुछ नजर नहीं आया। वैसे हुआ ही नहीं होगा, होता तो हर छोटी-बड़ी उपलब्धि मीडिया तक पहुंचाने के ख्वाहिशमंद अफसर इससे कतई न चूकते। असल में कमिश्नरेट में अफसरों की फौज इतनी बड़ी हो चुकी है कि कई तो एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते। तालमेल ही मुश्किल से बैठता है। ऐसे में कोई विवाद की जगह दूरी ही ठीक है।