खेल-खेल मेंः तनख्वाह दे दें यही बहुत है... और नेताओं का खेल
जालंधर में खेल विभाग से जुड़ें केंद्र और कर्मचारी अपनी खस्ता हालत को लेकर परेशान हैं। आइए उनसे जुड़ी कुछ चर्चाओं पर डालते हैं एक नजर।
जालंधर, जेएनएन। जिले में खेल गतिविधियों से जुड़ी कुछ चर्चित वाकयों को अपने चुटीले अंदाज में प्रस्तुत कर रहे हैं हमारे संवाददाता कमल किशोर। आइए, डालते हैं एक नजर।
तनख्वाह दे दें, यही बहुत है
खेल विभाग के हालात किसी से छिपी नहीं है। विभाग दावे तो बड़े-बड़े करता है लेकिन अपने स्टाफ की भी सही से सुध नहीं ले पा रहा। हाल ही में कोचों की विभागीय दफ्तर में नववर्ष की पार्टी हुई। पार्टी में विभिन्न खेलों के कोच शामिल हुए। सभी को शानदार लंच करवाया गया। इस पर खर्च किए गए पैसे खेल विभाग के खाते से नहीं बल्कि कोचों की जेब से गए। दरअसल, कोचों ने विभाग से आस लगानी ही बंद कर दी है। उनका कहना है कि विभाग समय पर तनख्वाह दे दे, यही बहुत है। कुछ कोचों ने कहा कि विभाग इतना फटेहाल है कि यदि कोई कोच या कर्मचारी सेवानिवृत्त होता है तो विभाग उसे रिटायरमेंट पार्टी तक नहीं देता। ये अलग बात है कि साथी के रिटायर होने पर सभी मिलकर उसे विदाई देते हैं। ऐसे हालात में विभाग से कोई पार्टी की आस करना दूर की बात है।
हमारी भी सुनो
खेल विभाग में ठेके पर काम कर रहे कोच अंदर ही अंदर काफी दुखी हैं पर उन्हें समझ नहीं आता कि अपना दुखड़ा किसे सुनाएं। उनका दर्द यह है कि विभाग में सरकारी जंवाई बने बैठे कोच जो साठ से सत्तर हजार रुपया महीना वेतन ले रहे हैं पर उनके खिलाड़ी तो परफार्म कर नहीं पा रहे हैं। ठेके वाले कोच, जिनके खिलाड़ी मेडल ला रहे हैं, उन्हें नौ से दस हजार रुपया थमा कर निपटाया जा रहा है। एक सीनियर एथलेटिक कोच ने अपना दर्द साझा करते हुए कहा कि खिलाड़ियों को ना तो इनामी राशि मिल रही है और ना ही कोचों को प्रोत्साहन। इतने कम वेतन में घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है। दूसरी ओर डीएसओ गुरप्रीत सिंह कहते हैं कि भर्ती खुलने के बाद जल्द कोच स्थायी होंगे। हालांकि वह दिन कब आएगा, इसका किसी के पास जवाब नहीं है।
जेब से करवा रहे हैं सफाई
सरकार दावा करती है कि खिलाडिय़ों को हर सुविधा दी जाएगी लेकिन स्पोर्ट्स कॉलेज के हॉस्टल की हालत को देखकर ऐसा नहीं लगता। यहां देश के लिए पदक लाने का सपना लेकर रहने वाले खिलाड़ी खेलों से पहले गंदगी से मुकाबला करने को मजबूर हैं। तीन साल से कोई सफाई कर्मचारी और सिक्योरिटी गार्ड नहीं है। विभाग को बार-बार कहने के बावजूद जब कहीं सुनवाई नहीं हुई तो डीएसओ गुरप्रीत सिंह ने हॉस्टल में रह रहे खिलाडिय़ों का दर्द समझा। खेल विभाग की इज्जत बचाने के लिए अपनी जेब से पैसे खर्च कर सफाई करवा रहे हैं। सरकार ने तो नहीं सुनी लेकिन एक खिलाड़ी ने दूसरे खिलाड़ी का दर्द जरूर समझा। खिलाड़ी भी डीएसओ के इस कदम की सराहना करते हैं और खुद भी हॉस्टल को साफ रखने का प्रयास कर रहे हैं।
फटे एथलेटिक्स ट्रैक पर नेतागीरी
नेता लोगों की परेशानी का हल कैसे निकालते हैं, इसका उदाहरण स्पोर्ट्स कॉलेज के फटे सिंथेटिक ट्रैक पर राजनीति से मिलता है। तीन सप्ताह पहले सांसद चौधरी संतोख सिंह फटा ट्रैक देखने पहुंचे थे। उसके बाद घोषणाओं का सिलसिला शुरू हो गया। खिलाडिय़ों को बड़े-बड़े सपने दिखाए गए और फोटो खिंचवाए गए। अकाली दल दोआबा जोन के नेता भी खिलाडिय़ों का दर्द बांटने के लिए पहुंच गए। खेल सेंटर में पहुंचकर खिलाडिय़ों से मिले। यहां भी फोटो सेशन हुआ। अब दोनों ही दलों के नेता चुप्पी साध कर बैठ गए हैं। खिलाडिय़ों की समस्या जस की तस बनी हुई है। दस साल से खिलाड़ी अपना दर्द इन नेताओं को बता रहे हैं सभी मरहम की बात तो करते हैं पर मरहम कोई नहीं लगा रहा। सभी सिर्फ राजनीति चमकाने में लगे हैं। अब खिलाडिय़ों ने इन नेताओं से आस छोड़ चुके हैं। फटे ट्रैक पर ही देश के लिए मेडल जीतने को लेकर अभ्यास कर रहे हैं।
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