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Referendum 2020: चरमपंथियों के सियासी आकाओं को सख्त संदेश देने की जरूरत

Referendum 2020 अमेरिका की धरती से एक प्रतिबंधित संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ (एसएफ़जे) का स्वघोषित संचालक बन पन्नू देश की अखंडता को चुनौती देने के वैसे ही निरर्थक प्रयास कर रहा है

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Tue, 14 Jul 2020 08:38 AM (IST)Updated: Tue, 14 Jul 2020 04:11 PM (IST)
Referendum 2020: चरमपंथियों के सियासी आकाओं को सख्त संदेश देने की जरूरत
Referendum 2020: चरमपंथियों के सियासी आकाओं को सख्त संदेश देने की जरूरत

पंजाब, अमित शर्मा। Referendum 2020 पंजाब और हरियाणा में ‘रेफरेंडम-2020’ की पूर्ण दुर्गति के बाद भी लगातार व्हाट्सएप कॉल और प्री-रिकॉर्डेड ऑडियो संदेश भेजकर अब भी गुरपतवंत सिंह पन्नू, जिसे हाल ही में भारत सरकार ने आतंकी घोषित किया है, किसको क्या संदेश देने की नाकाम कोशिशे कर रहा है , यह तो वह ही बता सकता है। लेकिन हां , देश भर के सिखों ने पन्नू की उकसावे भरी तमाम कोशिशों को सिरे से नकार कर एक बार फिर अस्सी के दशक में पनपे एक ऐसे ही स्वयंभू चरमपंथी नेता जगजीत सिंह चौहान की चालबाजियों व रणनीतियों के किस्से जरूर ताजा कर दिए हैं।

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अमेरिका की धरती से एक प्रतिबंधित संगठन ‘सिख फॉर जस्टिस’ (एसएफ़जे) का स्वघोषित संचालक बन पन्नू देश की अखंडता को चुनौती देने के वैसे ही निरर्थक प्रयास कर रहा है जैसे चौहान ने चालीस वर्ष पहले इंग्लैंड में रहते हुए खुद को स्वघोषित ‘खालिस्तान गणराज्य’ का राष्ट्रपति नामांकित कर किया था। पंजाब से भागकर 21 वर्षों तक लगातार ब्रिटेन में रह कर खालिस्तान का राग अलापा और फिर 2001 में भारत वापसी की। छह साल बाद अप्रैल 2007 में आकस्मिक निधन से ठीक एक सप्ताह पहले एक अंग्रेजी अखबार के लिए मुझे दिए गए अपने जीवनकाल के अंतिम साक्षात्कार में चौहान ने न सिर्फ खालिस्तान की मांग को अंतत: एक “भ्रांतिपूर्ण सपना” बताया था बल्कि निर्णयात्मक लेकिन अप्रत्याशित वक्तव्य देते हुए कहा था कि 'इंग्लैंड से आकर इस बदले हुए पंजाब में कुछ साल बिताकर अब महसूस हुआ कि यहां न खालिस्तान बना है, न ही बन सकेगा'। मोटे तौर पर चौहान का यह कथन दिग्भ्रमित विचारधारा रखने वाली देश विरोधी ताकतों की पराजय का एक ऐसा स्पष्ट संकेत था जिसे नजरंदाज कर पन्नू जैसे चरमपंथियों ने ‘रेफरेंडम-2020’ जैसे अभियान का आगाज अपने मुताबिक तो किया लेकिन उसका अंजाम निसंदेह चौहान की कथनी में ही समाहित हो कर रह गया।

पंजीकरण के पहले हफ्ते में ही पंजाब और हरियाणा के सिख समुदाय ने सार्वजानिक तौर पर इस तथाकथित जनमत संग्रह से न सिर्फ किनारा कर लिया बल्कि प्रतिबंधित एसएफ़जे के खिलाफ बीते तीन महीनों में राज्य के पुलिस थानों में 30 शिकायतें और तीन एफ़आईआर दर्ज करवा पन्नू को कड़ा संदेश दिया। रेफरेंडम के लिए मांगे जा रहे समर्थन के जवाब में रही सही कसर उस समय पूरी हो गई जब पुलिस के खुफिया विभाग ने मोबाइल कॉलर की पहचान सक्षम बनाने वाली एक स्मार्टफ़ोन एप्लीकेशन के डाटाबेस का विश्लेषण कर खुलासा किया कि 95 प्रतिशत लोगों ने एसएफजे द्वारा पाकिस्तान,चीन,अमेरिका और यूरोपियन देशों के नंबरों से की जाने वाली कॉल को अपने फ़ोन पर 'एंटी-नेशनल' व 'एंटी-इंडिया' जैसे नाम देकर ब्लाक किया हुआ है।

स्पष्ट है कि आज के पंजाब में खालिस्तानी विचारधारा के लिए न तो अब कोई स्थान है और न ही यहां किसी भी तरह की अलगाववादी सोच को जनसमर्थन मिल सकता है। लेकिन अफ़सोस और चिंता की बात तो यह है जहां सूबे की आम जनता बार-बार और हर बार साबित करती आई है कि वह कट्टरवाद और पृथकतावादी सोच की कतई हिमायती नहीं है, वहीँ यहां की राजनीतिक पार्टियां एक दूसरे को नीचा दिखाने के कोशिश में ऐसों का साथ देती रही हैं या समर्थन हासिल करती रही हैं । कुछ ऐसा ही सबब धार्मिक नेताओं में भी देखने को मिलता है जो देश - विदेश में आयोजित किए जाने वाले धार्मिक समागमों में गाहे-बगाहे उनकी विवादित सोच को बुलंद करने से नहीं चूकते।

हाल ही में सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था श्री अकाल तख्त साहिब के प्रमुख जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने तो ‘हर सिख चाहता है खालिस्तान’ जैसा बयान देकर सबको सकते में डाल दिया। इतना ही नहीं, कुछ दिन बाद उन्होंने पुन: शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) प्रधान गोबिंद सिंह लोंगोवाल को उन सिख युवकों के केसों की कानूनी पैरवी करने का निर्देश दे डाला जिन्हें पिछले कुछ महीनों में पंजाब पुलिस द्वारा आतंकी या अन्य गैरकानूनी गतिविधियों में कथित संलिप्तता को लेकर गिरफ्तार किया गया था। नतीजतन विदेश में बैठे अनेक खालिस्तान समर्थक पुन: सक्रिय होकर जहां सरेआम जत्थेदार के बयान का अनुमोदन करने में जुट गए , वहीं पंजाब के गांवों से आंतकी मॉडयूल चलाने के आरोप में गिरफ्तार युवकों के घरों में सांसद ,विधायक समेत अन्य राजनीतिक हस्तियों की भीड़ पहुंचनी शुरू हो गई।

अब इसे इसी खालिस्तानी मुहावरेबाजी में वोट बटोरने की कवायद का ही परिणाम कहें या कुछ भी... लेकिन वस्तुस्थिति यह है कि ऐसे ही राजनीतिक और धार्मिक सरंक्षण के चलते राज्य के कई गैंगस्टरों को सुरक्षा एजेंसियों ने अलगाववादी संगठनों से सीधे - सीधे जुड़ा होने के इतर रेफरेंडम-2020 के प्रचार- प्रसार समेत टारगेट किलिंग के मामलों में भी सक्रिय भागीदार पाया है । आज बेशक पंजाब में अलगाववादी सोच पूरी तरह प्रभावहीन हो चुकी है और अब रेफरेंडम-2020’ जैसे अभियानों द्वारा इस सोच को जिंदा रखने की कोशिशे भी मात्र एक हास्यास्पद कवायद बन कर रह गई हैं लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि ऐसे मसले में किसी भी स्तर पर दिखाई गई थोड़ी सी भी उदासीनता बड़ी मुसीबत बन सकती है।

चूंकि अब रेफरेंडम जैसे षड़यंत्र के कर्ताधर्ता आतंकी करार दिए जा चुके है तो ऐसी साजिशों को हमेशा के लिए नाकाम करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को उनकी हर गतिविधि, चाहे वह विदेश मे हो या देश के भीतर, उसका कड़ाई से संज्ञान लेना होगा। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि वर्तमान में ऐसे ज्यादातर संगठन अमेरिका, कनाडा और यूरोप में खुल कर अपनी गतिविधियाँ चला रहे हैं और आसानी से अपने- अपने क्षेत्र के स्थानीय नेताओं का समर्थन भी हासिल कर लेते हैं । कनाडा और ब्रिटेन की सरकारों को उनकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने को मजबूर करने के लिए कूटनीतिक स्तर पर कानूनी लड़ाई के इतर पंजाब के नेताओं को विदेश में बसे हर चौहान और पन्नू के सियासी आकाओं के खिलाफ भी कुछ वैसा ही सख्त स्टैंड लेना होगा जैसा कुछ समय पहले मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कनाडा के रक्षा मंत्री हरजीत सज्जन व उनके पांच साथी मंत्रियों को खुलेआम 'खालिस्तान’ समर्थक बता उनके पंजाब दौरे के दौरान भी मुलाकात का समय न देकर लिया था।

[स्थानीय संपादक]


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