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सिद्धू बिगाड़ेंगे परगट का खेल, मंत्री बनते ही डिफेंसिव हुए

जालंधर कैंट से दो बार विधानसभा का चुनाव जीतने वाले परगट सिंह का खेल नवजोत सिंह सिद्धू बिगाड़ रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 29 Sep 2021 02:25 AM (IST)Updated: Wed, 29 Sep 2021 02:25 AM (IST)
सिद्धू बिगाड़ेंगे परगट का खेल, मंत्री बनते ही डिफेंसिव हुए
सिद्धू बिगाड़ेंगे परगट का खेल, मंत्री बनते ही डिफेंसिव हुए

मनोज त्रिपाठी, जालंधर

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जालंधर कैंट से दो बार विधानसभा का चुनाव जीतने वाले परगट सिंह का खेल नवजोत सिंह सिद्धू बिगाड़ रहे हैं। सिद्धू के पंजाब कांग्रेस के प्रधान के पद से इस्तीफे के बाद नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देना परगट के लिए मजबूरी बन गया है, क्योंकि कांग्रेस ज्वाइन करने से लेकर परगट के साथ मिलकर पूर्व मुख्यमंत्री को हटवाने तक में सिद्धू की अहम भूमिका रही है। इसके बाद मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के मंत्रिमंडल में परगट सिंह को शामिल करवाने में भी सिद्धू के रोल को परगट किसी भी कीमत नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं, लेकिन अब सिद्धू के पीछे लगकर मंत्री पद से इस्तीफा देने परगट के लिए आत्मघाती गोल ही साबित होगा।

हाकी से सियासत में आए परगट सिंह अब सियासत के भी मंझे हुए खिलाड़ी बन चुके हैं। इसी वजह से उन्होंने सिद्धू के इस्तीफा देने के बाद खुद इस्तीफा देने के बजाय सिद्धू को मनाने पर पूरा जोर लगा दिया है। अगर सिद्धू नहीं मानते हैं तो परगट की मुश्किलें बढ़नी तय हैं।

2012 में शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सुखबीर सिंह बादल परगट को कैंट हलके की सीट अकाली दल के खाते में डालने के लिए सियासत में लेकर आए थे, लेकिन परगट सुखबीर बादल के भी नहीं हुए। जो लोग परगट को एक आम खिलाड़ी समझ रहे थे हकीकत में परगट उन भोले-भाले खिलाड़ियों में नहीं थे, जिन्हें सियासतदान इस्तेमाल कर पाएं। यह बात सुखबीर को भी जल्द ही समझ आ गई थी और परगट सिंह को भी। यही वजह रही कि मंत्री न बनाने को लेकर नाराज परगट ने अकाली दल से नाता तोड़कर अकालियों के खिलाफ ही बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। उसके बाद सिद्धू के साथ मिलकर दोनों ने आम आदमी पार्टी ज्वाइन करने की दिशा में कदम बढ़ाए, लेकिन बात नहीं बनी तो कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस में आने के बाद टिकट मिली और चुनाव जीते। उसके बाद फिर मंत्री न बनाने को लेकर कैप्टन के खिलाफत शुरू कर दी। अब लंबे इंतजार व संघर्ष के बाद कैप्टन को ही सत्ता से उखाड़ फेंकने के बाद जालंधर ही नहीं बल्कि पंजाब में कांग्रेस का महासचिव बनकर परगट ने अपना सियासी कद बढ़ा लिया था। सिद्धू की पहल पर नए मंत्रिमंडल में मंत्री बनने का सपना भी परगट का पूरा हो गया, लेकिन मनपसंद निकाय विभाग नहीं मिला।

परगट को भी पता है कि वह अपने हलके में बीते दस सालों में कोई खास विकास कार्य नहीं करवा पाए हैं। अगर निकाय विभाग मिल जाता तो बाकी के विधायक भी परगट के पास चक्कर काटते और जालंधर में परगट नया पावर सेंटर बन जाते। साथ ही अपने हलके का विकास भी तीन चार महीनों में काफी हद करवा कर लोगों के बीच यह संदेश में देने में कामयाब हो जाते कि मौका मिला तो कर दिखाया। अब सिद्धू के इस्तीफे के बाद नैतिक रूप से परगट के इस्तीफे की भी लोगों द्वारा उम्मीद की जा रही है, लेकिन परगट ने फिलहाल जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं किया है। उन्होंने इस्तीफा देने के बजाय सिद्धू को बनाने की कोशिशें शुरू कर दी है। फिलहाल सिद्धू परगट के मनाने पर मानने वाले नहीं है। सिद्धू का पेंच पार्टी हाईकमान के साथ सरकार को सामानांतर सरकार के रूप में चलाने को लेकर फंसा है। यह परगट भी अच्छी तरह से जानते हैं। उम्मीद यह भी की जा रही है कि आने वाले दो चार दिन में या तो इस मामले को लेकर परगट और सिद्धू की जोड़ी टूट जाएगी या फिर भविष्य की सियासत के मद्देनजर परगट सिद्धू के साथ नई पारी खेल सकते हैं।


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