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जय जवान, जय किसान को मजबूत बनाने में जुटी जालंधर की नवरूप कौर, बिजाई के लिए अब भी खुद चलाती हैं ट्रैक्टर

जालंधर में 74 साल की नवरूप कौर ने खेतों में पसीना बहा जय किसान के नारे को सच कर दिखाया। वह कहती हैं कि बचपन से ही खेतों में काम करने की शौकीन थी। पिता जी के साथ खेतों में जाना और कामकाज देखना जिंदगी का हिस्सा बन चुका था।

By Vinay kumarEdited By: Published: Mon, 08 Mar 2021 09:08 AM (IST)Updated: Mon, 08 Mar 2021 09:08 AM (IST)
जय जवान, जय किसान को मजबूत बनाने में जुटी जालंधर की नवरूप कौर, बिजाई के लिए अब भी खुद चलाती हैं ट्रैक्टर
जय जवान, जय किसान को मजबूत बनाने में जुटी हैं जालंधर की नवरूप कौर।

जालंधर [जगदीश कुमार]। जमीन से लेकर आसमान की ऊंचाइयों तक महिलाओं ने परचम फहरा दिया है। कृषि प्रधान प्रदेश पंजाब में युवा पीढ़ी कृषि से मुख मोड़ कर विदेशों का रुख कर रही है। वहीं, 74 साल की नवरूप कौर खेतों में पसीना बहा कर नई मिसाल कायम कर रही हैं। पिता और भाई ने भारतीय सेना में सेवाएं देकर देश की सेवा कर जय जवान तथा जिले के रुड़का कलां ब्लाक के गांव नवां पिंड नेयचा की में नवरूप कौर ने खेतों में पसीना बहा कर जय किसान के नारे को सच कर दिखाया। वह कहती हैं कि बचपन से ही खेतों में काम करने की शौकीन थी। पिता जी के साथ खेतों में जाना और कामकाज देखना जिंदगी का हिस्सा बन चुका था।

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खेतों में भी कई बार खुद ट्रैक्टर चलाती हैं और मजदूरों के साथ कंधे से कंधा मिला कर काम करती हैं। इससे पहले अपने पिता जी के साथ खेतों में ट्रैक्टर से भी खेतों में जुताई करती थीं। पूरे इलाके में बुआ जी के नाम से पहचान बना चुकी नवरूप कौर ने अपने ही नही रिश्तेदारों के खेतों को भी एक नया रूप देने में कामयाबी हासिल की है। एमए बीएड की शिक्षा हासिल कर पहले गांव में एक छोटा सा स्कूल खोला था। वह वैन और जीप में बच्चों को भी खुद उनके घर से स्कूल लेकर आती थी और वापिस घर छोड़ कर आती थीं। अब कई बार ट्रैक्टर ट्राली चला कर गांवों से मजदूरों को लेकर आती हैं और शाम को वापिस भी छोड़ती हैं।

नवरूप कहती हैं कि उन्होंने शादी नहीं की और खुद घर की कमान संभाली और खेतों में पसीना बहाया। वर्तमान में सात एकड़ में सब्जियां तथा 24 एकड़ में धान व गेहूं की खेती कर रही हैं। उन्होंने कहा कि सब्जियों की खेती में मुनाफा कम होने से निराशा का सामना करना पड़ रहा है। इसके बावजूद हिम्मत नहीं हारी और इसका रकबा बढ़ा कर पांच से सात एकड़ कर दिया। इसमें खीरे की खेती को प्रमुखता दी जा रही है। धीरे-धीरे खेती योग्य जमीन का दायरा बढ़ाया जा रहा है। खेतों में काम करने के लिए उन्होंने कभी महसूस नहीं किया की वह एक महिला है। गांव व आसपास गांव के लोग उन्हेंं पूर्ण सहयोग देते हैं। कई किसान खेती को लेकर उनसे सलाह लेने आते हैं। फसल के बीज खरीदने से लेकर फसल को मंडी में बेचने तक की प्रक्रिया में वह पूरी तरह से निपुण हो चुकी हैं।

1977 में नर्सरी से लेकर आठवीं कक्षा तक का स्कूल चलाया। 11 साल तक स्कूल चलाया। उनके पढ़ाए बच्चे इंजीनियर और डाक्टर के अलावा विदेशों में अच्छे पदों पर तैनात हैं। पिता स्व. जोगिंदर सिंह का 1999 में सड़क हादसा हो गया था। 2005 में उनका निधन हो गया था। उन्होंने फौज में सेवाएं प्रदान की थीं। उनके पिता स्व. जोगिंदर सिंह, भाई सेवानिवृत्त कर्नल अमलदेव सिंह सेना में सेवाएं दे चुके हैं। उनके भाई कर्नल अमलदेव सिंह सेवानिवृत्त होने के बाद लुधियाना में बुटिक का काम देख रहे है। उनके भतीजे ने गांव में पोली हाउस बनाया था और उसके बाद वह आस्ट्रेलिया चला गया।

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