जालंधर की यादों में सदैव जीवित रहेंगे नरेंद्र चंचल, 80 के दशक में किया था पहला जागरण
शहर में जब भी नरेंद्र चंचल का जागरण होना होता था तो होर्डिंग्स व उस जागरण में जाने के प्लान पहले ही बन जाते थे। यहीं कारण था कि केवल शहर ही नहीं बल्कि राज्यभर से श्रद्धालु चंचल को सुनने पहुंच जाते थे।
जालंधर, जेएनएन। भक्ति को सुर देकर मां के भक्तों के दिलों में राज करने वाले नरेंद्र चंचल शहर की यादों में सदैव जीवित रहेंगे। शहर में जब भी नरेंद्र चंचल का जागरण होना होता था, तो होर्डिंग्स व उस जागरण में जाने के प्लान पहले ही बन जाते थे। यहीं कारण था कि केवल शहर ही नहीं बल्कि राज्यभर से श्रद्धालु चंचल को सुनने पहुंच जाते थे। बात भले श्री देवी तालाब मंदिर की हो या फिर नकोदर रोड पर होने वाले वार्षिक जागरण की, चंचल के भजन सुनने को लेकर लोग सदैव बेताब रहते। उनके निधन से धार्मिक, सामाजिक व राजनीतिक संगठनों में भी शोक की लहर दौड़ गई। नरेंद्र चंचल के शिष्य वरुण मदान साथियों के साथ दिल्ली रवाना हो गए।
बिना चंचल के कोई भी धार्मिक आयोजन अधूरा
गीता मंदिर अर्बन एस्टेट फेज वन के प्रधान राजेश अग्रवाल व महासचिव अनुराग अग्रवाल ने कहा कि नरेंद्र चंचल के निधन से धार्मिक क्षेत्र को कभी न पूरी होने वाली कमी हुई। चंचल अपने भजनों के साथ सदैव जीवित रहेंगे। अर्जुन मल्होत्रा ने कहा कि पिछले वर्ष जुलाई में ही दिल्ली जाकर उन्हें मिलकर आए थे। कारण, पिता स्व. सतीश मल्होत्रा के करीबी होने के चलते चंचल ने उनके परिवार के साथ संबंध कभी कम नहीं किया।
नकोदर रोड पर हर वर्ष जागरण करवाने वाले जय मां सेवा संघ के प्रधान हेमंत सरीन ने कहा कि जब भी जागरण में नरेंद्र चंचल को आना होता था, तब सुरक्षा के लेकर तमाम तरह की इंतजाम अतिरिक्त करने पड़ते थे। चंचल को सुनने वालों की भीड़ सबसे अधिक रहती है। चंचल से मिलने वाले समाज सेवक सौरभ शर्मा बताते है कि सनातन धर्म में कोई भी धार्मिक आयोजन नरेंद्र चंचल के भजनों के बिना अधूरा है। किसी भी धार्मिक आयोजन में यह परंपरा सदैव बरकरार रहेगी।
सिद्ध शक्तिपीठ में किया था पहला जागरण, संगीत को बताया था मां की देन
नरेंद्र चंचल ने सिद्ध शक्तिपीठ श्री देवी तालाब मंदिर में 80 के दशक में पहला जागरण किया था। उसमें उन्होंने अपनी मां कैलाशवती का जिक्र किया था। उन्होंने कहा कि धार्मिक संगीत उनकी मां की ही देन है। कारण, वह अपनी मां को धार्मिक गीत गाते देखते थे। यहीं से मन में भक्ति की रोशनी ज्वलंत हुई थी। उस समय उनके साथ खास वाद्य यंत्र नहीं थे। केवल तीखी आवाज व बल्ले शाह के कलाम के साथ यह जगराता यादगार बन गया।
आतंकवाद के दौर में भी नहीं रुके जगराते
आतंकवाद के दौर में भी चंचल द्वारा जालंधर में जागरण करने का सिलसिला जारी रहा। नवरात्र के दिनों में सिद्ध शक्तिपीठ में होने वाली भजन संध्या में चंचल हाजिरी लगवाने जरूरत आते थे।
जगराते को जमीन से आसमां तक पहुंचाया
नरेंद्र चंचल ने किसी समय जमीन पर दरी बिछाकर पारंपरिक ढंग से किए जाते भगवती जागरण (जगराता) को विशाल मंच प्रदान किया। जगराते में उनकी प्रस्तुति देर रात रखी जाती थी। सर्दी हो या फिर गर्मी लोग चंचल को सुनने के लिए रात दो से तड़के तीन बजे तक डटे रहते थे। ऐसा ही नजारा सिद्ध शक्तिपीठ के अलावा नकोदर रोड व माता रानी चौक पर होने वाले जागरण में अक्सर देखा जाता था।