मोबाइल क्रांति के बावजूद लोगों का लैंडलाइन में अटूट विश्वास
देश में संचार क्रांति के बढ़ते कदमों से लैंडलाइन फोन की जगह धीरे-धीरे मोबाइल फोन ने ले ली हैं।
कमल किशोर, जालंधर : देश में संचार क्रांति के बढ़ते कदमों से लैंडलाइन फोन की जगह धीरे-धीरे मोबाइल फोन ने ले ली हैं। हालांकि दफ्तर हो या हेल्पलाइन डेस्क, आज भी लैंडलाइन फोन अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं।
आज से करीब 20 साल पहले की बात करें तो लैंडलाइन फोन घर में लग्जरी व शान का प्रतीक होता था। कुछ ही समय में यह लोगों की जरूरत बना गया और कई लोगों का काम ही इन्हीं के सहारे टिक गया। ये बात अलग है कि भारत संचार निगम लिमिटेड (बीएसएनएल) के लैंडलाइन कनेक्शन में पिछले 10 वर्षों में भारी गिरावट आई है, लेकिन लोगों का अटूट विश्वास अभी भी बना हुआ है।
जिले में 10 वर्ष पहले करीब दो लाख लैंडलाइन कनेक्शन थे, जो कि अब महज 75 हजार रह गए हैं। लैंडलाइन कनेक्शन कम होने का कारण मोबाइल क्रांति है। जिले में 5.30 लाख लोगों के पास बीएसएनएल का सिम कनेक्शन है। इन सभी के जरिए बीएसएनएल जिले में प्रतिमाह करीब पांच करोड़ रुपये का कारोबार कर रही है।
पहले एक माह तक करना पड़ता था इंतजार
लैंडलाइन को लोकप्रियता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आज से 10 साल पहले लोगों को कनेक्शन लेने के लिए करीब एक माह तक का इंतजार करना पड़ता था। कई बार तो वेटिंग इससे भी लंबी हो जाती थी। इसके लिए सिफारिशों का दौर भी चलता था। अब महज तीन दिन में कनेक्शन उपलब्ध करवाने की प्रक्रिया है।
राज्य सरकार के सभी कॉल सेंटर की नेटवर्किग बीएसएनल से
इंडियन टेलिकॉम सर्विसिज के प्रिसिपल जनरल मैनेजर सुनील कुमार ने कहा कि मोबाइल क्रांति के कारण लैंडलाइन कनेक्शन में भले ही कुछ गिरावट आई है, लेकिन मोबाइल सिम के मामले में लोग आज भी बीएसएनएल पर अटूट विश्वास रखते हैं। कोविड-19 में राज्य सरकार के जितने भी कॉल सेंटर चल रहे हैं, इसके लिए सारी नेटवर्किंग बीएसएनएल ही मुहैया करवा रहा है।
मोहल्ले के लोग स्पेशल टेलिफोन देखने आते थे
भगत सिंह कॉलोनी में रहने वाले हरभजन दास का कहना है कि उन्होंने करीब 20 साल पहले लैंडलाइन कनेक्शन लिया था। सर्विस बेहद बढि़या होने के कारण आज भी बाकायदा तौर पर कनेक्शन रेगुलर है। मोबाइल की बात करें तो कई बार नेटवर्क उड़ जाने की शिकायतें रहती हैं, लेकिन लैंडलाइन कभी धोखा नहीं देता।