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LOHRI 2020: आज मनेगी लोहड़ी, जानें- त्‍योहार से जुड़ी रोचक कथा व पूजा की विधि

Lohri 2020 सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के एक दिन पूर्व मनाई जाती है इसलिए लोहड़ी 13 जनवरी को ही मनाई जाएगी।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 11 Jan 2020 08:52 AM (IST)Updated: Mon, 13 Jan 2020 01:06 PM (IST)
LOHRI 2020: आज मनेगी लोहड़ी, जानें- त्‍योहार से जुड़ी रोचक कथा व पूजा की विधि
LOHRI 2020: आज मनेगी लोहड़ी, जानें- त्‍योहार से जुड़ी रोचक कथा व पूजा की विधि

जेएनएन, जालंधर। Lohri 2020: पंजाब के लोगों के लिए लोहड़ी का त्योहर बहुुत अहम है। हालांकि यह देश कई राज्‍यों हरियाणा, हिमाचल, दिल्‍ली व जम्‍मू-कश्‍मीर में भी मनाया जाता है, लेकिन पंजाब में इस त्‍योहार को लेकर अलग ही उत्‍साह देखने को मिलता है। पंजाब में इस पर्व को नई फसलों से जोड़कर भी देखा जाता है। इस त्‍योहार के समय गेहूं व सरसों की फसल अंतिम चरण में होती है। इस बार लोहड़ी 13 जनवरी को मनाई जाएगी।

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धर्माचार्यों के अनुसार इस बार सूर्य मकर राशि में प्रवेश 14 जनवरी की रात को प्रवेश कर रहा है, इसलिए मकर संक्रांति 14 को है। हालांकि अंग्रेजी तिथि के अनुसार इसका पुण्यकाल 15 जनवरी को होगा। मकर संक्राति में दान पुण्य व स्नान का दिन 15 जनवरी की सुबह होगा। जालंधर बर्तन बाजार स्थित शिव मंदिर के प्रमुख पंडित बसंत शास्त्री के अनुसार लोहड़ी सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने के एक दिन पूर्व मनाई जाती है, इसलिए लोहड़ी 13 जनवरी को ही मनाई जाएगी।

पंडित बसंत शास्त्री।

ऐसे की जाती है पूजा

लोहड़ी पर्व की रात को परिवार व आसपड़ोस के लोग इकट्ठे होकर लकड़ी जलाते हैं। इसके बाद तिल, रेवड़ी, मूंगफली, मक्‍का व गुड़ अन्‍य चीजेेंं अग्नि को समर्पित करते हैं। इसके बाद परिवार के लोग आग की परिक्रमा कर सुख-शांति की कामना करते हैं। अग्नि परिक्रमा की पूजा के बाद बचे हुए खाने के सामान को प्रसाद के रूप में सभी लोगों को वितरित किया जाता है।

जानें क्या है लोहड़ी का अर्थ

लोहड़ी का अर्थ है- ल (लकड़ी), ओह (गोहा यानी सूखे उपले), ड़ी (रेवड़ी)। लोहड़ी के पावन अवसर पर लोग मूंगफली, तिल व रेवड़ी को इकट्ठठा कर प्रसाद के रूप में इसे तैयार करते हैं और आग में अर्पित करने के बाद आपस मे बांट लेते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या फ‍िर बच्‍चे का जन्‍म हुआ हो वहां यह त्‍योहार काफी उत्‍साह व नाच-गाने के साथ मनाया जाता है।

लोकगीत गाकर दुल्‍ला भट्टी को करते हैं याद

सुंदर मुंदरिए हो, तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भट्टी वाला हो, दुल्ले दी धी बयाही हो..। लोहड़ी का यह सबसे लोकप्रिय गीत है। लोहड़ी जैसे ही आने वाली होती है तो यही गीत के बोल हर किसी की जुबां पर होते हैं। इस लोकगीत से एक पुरातन कहानी भी जुड़ी हुई है। इस पुरानी कहानी में दुल्‍ला भट्टी नाम के एक डाकू ने पुण्‍य का काम किया था। ऐसा कहा जाता है कि सुंदर व मुंदर नाम की दो लड़कियां थी और वह अनाथ थीं। इन लड़कियों के चाचा ने दोनों को किसी शक्तिशाली सूबेदार को सौंप दिया था।

दुल्‍ला भट्टी नाम के डाकू को जब इस बात का पता चला तो उसने सुंंदर व मुंदर दोनों लड़कियों को मुक्‍त करवाया और दो अच्‍छे लड़के ढूंढकर इनकी शादी करवा दी। कहा जाता है कि जब इन दोनों लड़कियोंं की शादी हुई थी तो आसपास से लकडि़यां एकत्रित कर आग जलाई गई थी और शादी में मीठे फल की जगह गुड़, रेवड़ी व मक्‍के जैसी चीजों का इस्‍तेमाल किया था। उसी समय से दुल्‍ला भट्टी की अच्‍छाई को याद करने के लिए यह त्‍योहर मनाया जाता है। दुल्‍ला भट्टी कहने को तो एक डाकू था, लेकिन अमीर व घूसखोरी करने वाले लोगों से पैसे लूटकर गरीबों में बांट दिया करता था।

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