शहर की शख्सियतः पटेल अस्पताल के मालिक डॉ. शर्मा को जालंधर ने दिए कई अनमोल दोस्त
डॉ. शर्मा का जन्म पाकिस्तान में हुआ था। बंटवारे के बाद उनका परिवार पंजाब आ गया था। उन्होंने अपनी स्कूली व डॉक्टरी की पढ़ाई लुधियाना में की थी।
जालंधर, जेएनएन। वर्ष 1966 में जालंधर में नौकरी की तलाश में आए डॉ. एस.के. शर्मा ने मात्र 750 रुपए वेतन से करियर की शुरुआत की थी। आज वह शहर के पहले बड़े अस्पताल के मालिक हैं। उनके परोपकारी स्वभाव के कारण लोगों का विश्वास उन पर बना, जो अब भी कायम है। आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में उन्हीं की जुबानीः-
मेरा जन्म (मुल्तान) अब पाकिस्तान में हुआ था। देश के बंटवारे के बाद हमारा परिवार मुल्तान से पंजाब आ गया। मैंने अपनी स्कूली व डॉक्टरी की पढ़ाई लुधियाना में की। उसके बाद ट्रेनिंग हासिल की और 1966 में जिंदगी को नए सिरे से आगे बढ़ाने के लिए नौकरी की तलाश में जालंधर आ गया। उस समय मेरी पहली नौकरी गुलाब देवी हस्पताल में फैकल्टी के तौर पर लगी। पूरे परिवार के साथ हस्पताल में ही रहता था। मात्र 750 रुपये वेतन मिलता और की थी। इतने में गुजारा मुश्किल से होता था, लेकिन हम फिल्में भी देख लेते थे और पेशे से डाक्टर होने के नाते मरीजों की सेवा में दिन-रात लगे रहते थे। कभी हार नहीं मानी और हिम्मत से आगे बढ़ता रहा।
शायद यही वजह है कि आज मेरा अपना अस्पताल है। मैंने जालंधर को बदलते हुुए देखा है। तरक्की करते हुए देखा है। उस दौर में जालंधर की सड़कों पर आज जैसी भीड़ नहीं होती थी। अब जिंदगी की रफ्तार तेज हो गई है।
किराए के मकान को बनाया अस्पताल
जालंधर आने के बाद मुझे यह महसूस हुआ कि यहां पर एक ऐसा अस्पताल बनाना चाहिए, जिसमें लोगों को कम पैसों में अच्छा इलाज मिल सके। इसलिए हमने 1975 में पटेल हस्पताल शुरू किया था। शुरुआत में यह केवल एक छोटी सी किराए की इमारत थी लेकिन आज यह हमारी अपनी बिल्डिंग है।
मैंने कभी पैसे को अहमियत नहीं दी
यहां आकर मेरे कई ऐसे दोस्त बने जो आज तक मेरा साथ निभा रहे हैं। चाहे कैसी भी परिस्थियां हो उन्होंने कभी भी मेरा साथ नहीं छोड़ा है। यह मेरी सबसे बड़ी खुशनसीबी है। मैंने कभी पैसे को अहमियत नहीं दी। हमेशा लोगों को अहमियत दी है। शायद इसीलिए आज मुझे इतने अच्छे दोस्त मिले हैं जैसे कि डॉ. चोपड़ा, जो मेरे पार्टनर भी हैं और स्व. डॉ. एनके खोसला।
जन सेवा के लिए बनाई सोसाइटी
जब मैं गुलाब देवी हस्पताल में काम कर रहा था तो वहां पर इलाज के लिए 300 रुपए लगते थे लेकिन कई मरीज ऐसे भी आते थे जिनके पास वो भी उपलब्ध नहीं होते थे तो मैं अपने दोस्तों के जरिए उनकी मदद करता था। इन्हीं दोस्तों की वजह से ही हमने ‘मानव सहयोग सोसाइटी’ की स्थापना 1973 में की, जो आज भी जरूरतमंदों की मदद कर रही है।
उस समय जालंधर में कुछ ही सिनेमा हॉल थे
जालंधर में तब कुछ ही सिनेमा हॉल थे। इन्हीं में थे संत सिनेमा, जो रेलवे स्टेशन के पास था और एक ज्योति सिनेमा, जिनका आज कोई नामोनिशान नहीं है। अगर कभी फिल्म देखने का मन होता था तो हम ज्यादातर इसी सिनेमा हॉल में फिल्म देखने के लिए जाते थे।
देवी तालाब मंदिर में देखने जाता था हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन
मैं दोआबा चौक के पास स्थित शहर के सबसे बड़े देवी तालाब मंदिर में होने वाले हरिवल्लभ संगीत सम्मेलन को देखने व सुनने जाता था। रात को दो बजे तक वहां रहता था। आज भी इस सम्मेलन ने अपनी गरिमा बरकरार रखी है। मुझे उस सम्मेलन में जाकर शांति मिलती थी।
बहुत बदल गया है जालंधर का मेडिकल लेवल
जब मैं जालंधर आया था, उस समय केवल दो ही प्रमुख अस्पताल यहां होते थे। एक डॉ. बावा का अस्पताल और दूसरा सिविल अस्पताल। उस समय शहर का मेडिकल लेवल सिर्फ बेसिक उपचार तक सीमित था। आज यहां का मेडिकल लेवल व सुविधाएं बड़े शहरों के समान ही हैं। जालंधर ने हेल्थ सेक्टर में बहुत तरक्की की है।
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