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पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए श्रद्धा से करें श्राद्ध, इस विधि को अपनाकर पाएं पितरों का आशीर्वाद

16 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध की शुरुआत दो सितंबर से हो गई है। जिसमें अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने तथा पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध पूजन किया जाता है।

By Vikas_KumarEdited By: Published: Wed, 02 Sep 2020 01:17 PM (IST)Updated: Wed, 02 Sep 2020 01:17 PM (IST)
पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए श्रद्धा से करें श्राद्ध, इस विधि को अपनाकर पाएं पितरों का आशीर्वाद
पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए श्रद्धा से करें श्राद्ध, इस विधि को अपनाकर पाएं पितरों का आशीर्वाद

जालंधर, [शाम सहगल]। पितृदोष से मुक्ति पाने के लिए इस बार श्राद्ध दो सितंबर से शुरू हो चुके हैं, जो 17 सितंबर तक चलेंगे। पितर पक्ष अश्विनी मास के कृष्ण पक्ष में होने के चलते पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए श्राद्ध को पूर्ण श्रद्धा के साथ संपन्न करना चाहिए। हिदू धर्म के मुताबिक अपने पितरों को समर्पित श्राद्ध करके उनका आशीर्वाद तो प्राप्त होता ही है और साथ ही कुंडली में पितृदोष का असर भी कम हो जाता है।

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दरअसल, पितरों को समर्पित व उन्हें प्रसन्न करने के लिए 16 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध की शुरुआत दो सितंबर से हो गई है। जिसमें अपने पूर्वजों का आशीर्वाद प्राप्त करने तथा पितृ दोष से मुक्ति पाने के लिए श्राद्ध पूजन किया जाता है। जिसे लेकर जहां मंदिरों में खास तैयारी की जा रही है। वहीं लोग अपने दिवंगत बुजुर्गों के निधन के हिसाब से बनती तिथि पर श्राद्ध करने की जानकारी हासिल कर रहे हैं।

अशुभ होने की भ्रांति है बेबुनियाद

श्राद्ध के दिनों में कोई शुभ कार्य या खरीदारी न करने की धारणा शुरू से रही है। जबकि, जानकारों का मानना है कि अगर इन दिनों में पितर दोष खत्म करने के लिए धार्मिक कर्म सफल होते हैं, तो खरीदारी या शुभ कार्य को लेकर इस तरह की भ्रांति निराधार है। पंडित बसंत शास्त्री के मुताबिक श्राद्ध के दिनों में पूर्वज धरती पर विराजते हैं। ऐसे में अगर उनका घर-परिवार कुछ अच्छा करता है तो वह इससे प्रसन्न होते हैं।

श्राद्ध करने की विधि

इस बारे में श्री गोपी नाथ मंदिर के प्रमुख पुजारी पंडित दीन दयाल शास्त्री बताते हैं कि श्राद्ध को विधिवत संपन्न करना चाहिए। इसके लिए पूजा स्थान को गाय के गोबर से लेप करके व गंगाजल से पवित्र करें। घर की महिलाएं पितरों के लिए भोजन तैयार करें। इसके उपरांत ब्राह्मण को घर बुलाकर पितरों की पूजा और तर्पण कार्य संपन्न करवाएं। पितरों के समक्ष अग्नि में गाय का दूध, दही, घी व खीर अर्पित करें। इसके उपरांत पितरों के लिए बनाए गए भोजन से एक गाय, एक कुत्ते, एक कौअे तथा एक अतिथि के लिए निकालें। वहीं, ब्राह्मण को यथाशक्ति वस्त्र दक्षिणा देकर विदा करें।


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