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Sikh History: सिखों के पांच तख्तों में शामिल है तख्त श्री केसगढ़ साहिब, यहीं हुई थी खालसा पंथ की स्थापना

तख्त श्री केसगढ़ साहिब इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं पर 13 अप्रैल 1699 में सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यहां स्थित गुरुदारा के दर्शन करने देश-विदेश संगत पहुंचती है।

By JagranEdited By: Pankaj DwivediPublished: Fri, 23 Sep 2022 02:43 PM (IST)Updated: Fri, 23 Sep 2022 02:43 PM (IST)
Sikh History: सिखों के पांच तख्तों में शामिल है तख्त श्री केसगढ़ साहिब, यहीं हुई थी खालसा पंथ की स्थापना
श्री आनंदपुर साहिब स्थित भव्य तख्त श्री केसगढ़ साहिब गुरुद्वारा। पुरानी फोटो।

आनलाइन डेस्क, जालंधर। देश में सिख धर्म के पांच तख्तों में श्री केसगढ़ साहिब का अहम स्थान है। अन्य चार तख्तों में श्री अकाल तख्त साहिब अमृतसर, तख्त श्री पटना साहिब, तख्त श्री हजूर साहिब, नांदेड़ तथा पांचवां तख्त श्री दमदमा साहिब शामिल हैं। 

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तख्त श्री केसगढ़ साहिब इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि यहीं पर 13 अप्रैल, 1699 में सिखों के दसवें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यहीं पर उन्होंने पंच प्यारों को अमृत छकाकर सिंह बनाया और फिर खुद भी पांच प्यारों से अमृत छका।

यहीं पर बैसाखी को हुई थी सिख पंथ की स्थापना

बैसाखी पर वर्ष 1699 में एक बहुत बड़े पंडाल में गुरु गोबिंद सिंह जी ने दीवान सजाया था। संगत उनके वचन सुन ही रही थी कि तभी गुरु जी अपने दायें हाथ में एक चमकती हुई तलवार लेकर खड़े हो गए। उन्होंने कहा कि कोई सिख हमें अपना शीश भेंट करें। यह सुनकर भाई दया राम खड़े हो गए और शीश हाजिर किया। गुरु जी बाजू पकड़कर उन्हें तंबू में ले गए। कुछ समय बाद रक्त से भीगी तलवार लेकर बाहर आए। गुरु जी ने फिर एक और सिख के शीश की मांग की। इस बार भाई धर्म जी खड़े हो गए। उन्हें भी गुरु जी अंदर ले गए।

गुरु गोबिंद सिंह जी फिर बाहर आए और इस बार भाई मोहकम चंद व चौथी बार भाई साहिब चंद आगे आए। पांचवी बार हिम्मत मल हाथ जोड़कर खड़े हो गए। गुरु जी उन्हें भी अंदर ले गए। गुरु जी ने तलवार को म्यान में डाल दिया और सिंहासन पर बैठ गए।

पांच प्यारों को अमृत छकाकर खुद भी छका

फिर, पांच शीश भेंट करने वाले प्यारों को नई पोशाकें पहनाकर अपने पास बिठाकर संगत से कहा कि यह पांचों मेरा ही स्वरूप हैं और मैं इनका स्वरूप हूं। ये पांच मेरे प्यारे हैं। तीसरे पहर गुरु जी ने लोहे का बाटा मंगवा कर उसमें सतलुज नदी का पानी डाल कर अपने आगे रख दिया। पांच प्यारों को सजा कर अपने सामने खड़ा कर लिया और मुख से जपुजी साहिब आदि बाणियों का पाठ करते रहे।

पाठ की समाप्ति के बाद अरदास करके पांच प्यारों को एक-एक करके अमृत के पांच-पांच घूंट पिलाए। इस तरह पांच प्यारों से गुरु गोबिंद ने अमृत छका और श्री गोबिंद राय से श्री गुरु गोबिंद सिंह जी कहलाए। इस स्थान पर ये इतिहास की अहम घटना हुई, वहीं तख्त श्री केसगढ़ साहिब स्थापित हुआ। यहां हर साल देश-विदेश से बड़ी संख्या में सिख श्रद्धालु पहुंचते हैं।


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