यह है जालंधर: शहर की जलवायु को स्वच्छ रखने में मदद करते थे 12 बाग Jalandhar News
चहार बाग के एक तरफ बहुत बड़ा सरोवर था जिसमें कुछ किश्तियां भी चला करती थीं। चहार बाग की जगह अब एक घनी आबादी वाला मोहल्ला बन चुका है।
जालंधर, जेएनएन। स्कन्द पुराण के मानस खंड में बागों के महत्व को इस तरह दर्शाया गया है कि वहां एक महर्षि को बागनाथ तक कहा गया है। कहीं-कहीं बागेश्वर नाथ के नाम से एक मंदिर का निर्माण भी हुआ, जिसके चारों तरफ विशाल बाग हैं। इसी तरह जालंधर में भी बागों का बहुत महत्व रहा।
जालंधर के 12 बाग, जिसमें फूल-फल के पेड़-पौधे थे। सभी शहर की जलवायु को स्वच्छ रखने में सहायता करते थे। इसका निर्माण किस शताब्दी में आरंभ हुआ, इस पर इतिहासकारों के मत भिन्न-भिन्न हैं। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि आठवीं शाताब्दी से इन बागों का निर्माण आरंभ हुआ, जैसा कि स्कन्द पुराण में बागेश्वर अथवा बागनाथ के उल्लेख से मिलता है।
12 बाग जितनी जमीन पर फल-फूल रहे थे, वे जालंधर की चारदीवारी के भीतर की जमीन से आधी धरती पर थे। फूल, गुंचे, घास और वातावरण यह किसी भी नगर के बाग की संपत्ति होते हैं। रामायण की कथा में एक प्रसंग आता है कि जब मिथिला में भगवान राम अपने अनुज लक्ष्मण के साथ गुरु विश्वामित्र की आज्ञा से फूल लेने गए तो वहीं पर बगिया के एक कोने पर भगवती सीता के दर्शन हुए। बगिया तो हमारे इतिहास का बहुत बड़ा भाग रही है।
फूलों की बात करें तो मुगलिया सल्तनत की मल्लिका नूरजहां गुलाब के ताजा फूलों को पानी में डालती और उसी सुगंधित जल से स्नान किया करती थीं। बाग तो हर युग में रहें, उसमें शाहजहां से लेकर महाराजा रणजीत सिंह तक कहीं-कहीं बाग से जुड़ी दास्तानें सुनने को मिलती हैं। लाहौर का शालीमार बाग, कश्मीर का निशात बाग बहुत से लोगों के दिमागों में बागों की महानता बताने के लिए काफी है। जहांगीर ने जब कश्मीर के बागात को देखा तो उसके मुंह से निकला गर फिरदौस बररुए जमी अस्त, हमीं अस्तो हमीं अस्तो हमीं अस्तो...इसका भाव यह है कि अगर दुनिया में कहीं स्वर्ग है, तो यहीं है यहीं है, यहीं है।
चार बागों का समूह था चहार बाग
जालंधर के बाहरी क्षेत्र में एक चार बागों का समूह था। इसके एक भाग में फलदार वृक्ष लगे थे। दूसरे में सुगंधित फूलों के दर्शन होते थे और तीसरे में रंग-बिरंगे पौधे थे। बीच में बैठने के लिए मखमल जैसी हरी-हरी घास लगी थी। जिस पर नगर के बड़े-बूढ़े बैठकर आपस में चर्चा कर लेते थे। चौथा भाग जिस पर जाए-मस्तुरान यानि महिलाओं के बैठने का स्थान था। यह बाग दिल्ली गेट और फगवाड़ा गेट के निकट स्थित था। यह बाग अकबर महान के ज़माने में बनाया गया कहा जाता है। अकबर के नवरत्नों में रहीम खान और तानसेन दो ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें प्रकृति से बहुत प्रेम था, इसलिए उस जमाने में भी पेड़ पौधों और पक्षियों से उनका लगाव उत्तरी भारत के कई बागों के अस्तित्व में आने का कारण बना। शाहजहां के दौर तक आते-आते बाग लगभग समाप्त हो गया था। उन दिनों बाग-बगीचों का महत्व बहुत माना जाता था।
जालंधर नगर के बाहर कुछ बस्तियां स्थापित हो चुकी थीं। उन्हीं बस्तियों में से कुछ लोग जो धन-दौलत के स्वामी और बड़े सेठ-साहूकार कहे जाते थे, वे जालंधर नगर के इस छोर पर आकर बसने लगे। चहार बाग उन्हीं लोगों के निवास के लिए अपना अस्तित्व गंवा चुका था और वृक्ष कट चुके थे। पुष्प अपना रंग-रूप खो गए और यहां पर बड़े-बड़े निवास उभर गए। चहार बाग के एक तरफ बहुत बड़ा सरोवर था, जिसमें कुछ किश्तियां भी चला करती थीं। चहार बाग की जगह अब एक घनी आबादी वाला मोहल्ला बन चुका है।
-प्रस्तुति..दीपक जालंधरी (लेखक जालंधर के पुराने जानकार और स्तंभकार हैं।)
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