Move to Jagran APP

मुर्गा 100 रुपये, पंख 650 रुपये किलो! जानें कैसे कोरोना ने किया जालंधर की Shuttle Cock इंडस्ट्री का बुरा हाल

कोरोना काल में सेहत को लेकर जागरूक हुए लोगों ने चिकन खाना कम कर दिया है। इसका सीधा असर मुर्गे के पंख से जुड़े बैडमिंटन शटल काक के कुटीर उद्योग पर पड़ा है। जालंधर में 150 रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाला पंख अब 650 रुपये तक पहुंच गया है।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Tue, 01 Dec 2020 01:59 PM (IST)Updated: Tue, 01 Dec 2020 01:59 PM (IST)
मुर्गा 100 रुपये, पंख 650 रुपये किलो! जानें कैसे कोरोना ने किया जालंधर की Shuttle Cock इंडस्ट्री का बुरा हाल
जालंधर में कोरोना काल में धीमी हुई शटल काक के कुटीर उद्योग की उड़ान। (जागरण)

जालंधर [मनोज त्रिपाठी]। मुर्गे की कीमत भले ही 100 रुपये किलो हो, लेकिन उसके पंख की कीमत 650 रुपये प्रति किलोग्राम हो गई है। ऐसा चिकन की खपत कम होने के कारण हुआ है। कोरोना काल में सेहत को लेकर जागरूक हुए लोगों ने चिकन खाना कम कर दिया है। इसका सीधा असर मुर्गे के पंख से जुड़े बैडमिंटन शटल काक के कुटीर उद्योग पर पड़ा है। सामान्य दिनों में 150 रुपये प्रति किलोग्राम बिकने वाला पंख अब 650 रुपये तक पहुंच गया है। कीमत चार से पांच गुना बढ़ गई है, जबकि कारोबार में करीब 50 फीसद की गिरावट आई है। कारीगरों की मुश्किलें बढ़ने से वे काम छोड़ रहे हैं। उनके पास काम छोड़ने या सस्ते दाम पर शटल बेचने के अलावा कोई चारा नहीं है। 

loksabha election banner

इससे पहले बर्ड फ्लू के कारण पंजाब का शटल काक उद्योग पूरी तरह तबाह हो गया था। बतख के पंखों के बनने वाली शटल काक को बैडमिंटन के आधिकारिक मैचों में इस्तेमाल की मंजूरी है। इस कारण बर्ड फ्लू के बाद शटल काक उद्योग चीन के हाथों में चला गया। घरेलू उद्योग ने मुर्गे के पंख से शटल काक बनाकर नए सिरे से अपनी पैठ बनाना शुरू की और सस्ती शटल काक का विकल्प दिया। 10 सालों में जालंधर व मेरठ के खेल उद्योग ने मुर्गे के पंखों के दम पर दोबारा रफ्तार पकड़ ली थी, लेकिन कोरोना काल में फिर संकट खड़ा हो गया।

जालंधर के भार्गव कैंप में शटल का निर्माण करते हुए कारीगर।

55 से 150 रुपये प्रति दर्जन से ज्यादा नहीं मिलता रेट 


एक शटल बनाने के लिए 10 लोगों के ग्रुप की जरूरत पड़ती है। इसलिए ज्यादातर कारीगर अपने-अपने घरों में लोगों के ग्रुप बनाकर यह काम करते हैं। 22 से 25 मुर्गों से एक किलो पंख निकलते हैं। एक शटल में 16 पंखों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे चार तरह की शटल काक का निर्माण किया जाता है, जो स्थानीय बाजार में 55 रुपये से 150 रुपये दर्जन के हिसाब से बेची जाती हैं। इससे ज्यादा रेट नहीं मिलता, जबकि लागत बढ़ गई है। 

प्लास्टिक की शटल हो रही इस्तेमाल 

बतख के पंख से बनने वाली शटल 800 से 1400 रुपये प्रति दर्जन में बेची जा रही है। हरियाणा में अंबाला के पास स्थित बरवाला गांव से देश भर में मुर्गे के पंखों की सप्लाई की जाती है। पंजाब के 550 पोल्ट्री फार्मों से भी इनका संपर्क है। पहले शटल काक के लिए 62 से 70 एमएम आकार के पंख छांट कर किलो के हिसाब से सप्लाई होते थे, लेकिन अब विभिन्न आकार पंख सप्लाई होने से मुश्किल हो रही है। डिक्सन स्पोर्ट्स के रविंदर धीर का कहना है कि कोराना काल में लोगों की सबसे ज्यादा डिमांड बैडमिंटन की रही, लेकिन शटल काक मंहगी होने के कारण लोग प्लास्टिक की शटल इस्तेमाल कर रहे हैं। 

कारीगरों के लिए रोटी का संकट 

मुर्गे के पंख से शटल काक का निर्माण करने वाले गगनदीप बताते हैं कि उनका परिवार 35 सालों से यह काम कर रहा है। आठ महीनों से मुुर्गे के पंख की कीमतें लगातार चढ़ती जा रही हैं। दुकानदार मंहगी शटल नहीं खरीद रहे हैं। हमारे सामने रोटी का संकट खड़ा हो गया है। 

केस स्टडी
अश्वनी कुमार बताते हैं कि 20 सालों से वह शटल का निर्माण कर रहे हैं। उनके पिता सरदारी लाल भी यही काम करते थे। करीब 50 सालों से उनका परिवार इस काम में है, लेकिन अब पंख न मिलने से मुश्किल हो रही है। पहले 30 हजार रुपये तक कमाई हो जाती थी, अब पंख मंहगा हो गया है। इसलिए शटल बेचने में दिक्कत आती है। पहले कोलकाता से भी बतख के पंख मंगवा लेते थे। अब वह भी नहीं मिल रहे हैं। मुर्गे के पंख की कीमत लगातार बढ़ती जा रही है। इसी काम में 26 सालों से लगे राकेश बताते हैं कि उन्हें दूसरा और कोई काम नहीं आता। पहले महीने में 20 हजार रुपये तक का काम हो जाता था। अब सात से आठ हजार रुपये की ही कमाई हो पा रही है। परिवार का गुजारा भी मुश्किल से हो पा रहा है।

जालंधर में बैडमिंटन शटल काक काटेज इंडस्ट्री के सामने कोरोना के कारण आईं समस्याएं बताते हुए अश्वनी कुमार और राकेश।

रोज 50 हजार मुर्गों व ढाई करोड़ अंडों की खपत 

पंजाब पोल्ट्री फार्म एसोसिएशन के प्रधान राजेश गर्ग बताते हैं कि पंजाब में रोजाना 50 हजार मुर्गों की खपत होती है। पोल्ट्री फार्म में 45 दिनों में मुर्गा तैयार होता है। कोरोना काल में इसकी खपत में 90 फीसद तक की गिरावट आई है। पंजाब में रोजाना ढाई करोड़ अंड़ों की खपत हो रही है। अंडों की खपत पर असर नहीं पड़ा है। 

1570 में इंग्लैंड में बनी थी शटल काक 


बैडमिंटन खेलने के लिए 1570 में पहली बार इंग्लैंड में शटल काक का निर्माण किया गया था। शटल काक का निर्माण एरोडायनमिक शेप में ही किया जाता है। इसका भार 4.7 से 5.5 ग्राम होता है। शटल के निर्माण में इस्तेमाल होने वाली कार्क 25 से 28 एमएम की होती है। 

एक हजार करोड़ रुपये का है कारोबार

शटल काक का कारोबार करीब 1000 करोड़ रुपये का है। करीब 500 परिवार इस कुटीर उद्योग से जुड़े थे। करीब 800 करोड़ रुपये की शटल काक की खपत देश में ही हो जाती। बाकी मिडिल ईस्ट, श्रीलंका, बांग्लादेश व यूरोपीय देशों को एक्सपोर्ट होती है। पहले इस कारोबार में जुटे प्रत्येक परिवार को महीने में 25 से 30 हजार रुपये की आय हो जाती थी। अब तस्वीर उलटी हो चुकी है। जालंधर में इस कारोबार में जुटे 90 फीसद परिवारों ने काम बंद कर दिया है या बंदी के कगार पर है। केवल 10 फीसद परिवार ही अब शटल का निर्माण कर रहे हैं। 

पंजाब की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें 

हरियाणा की ताजा खबरें पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.