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ब्रांडिंग का फंडा 'मिशन फतेह', सरकार की इमेज बनाने के चक्कर में फंसे अफसर

बात चाहे कोरोना मरीज ठीक होने या नेगेटिव आने की हो सब जगह मिशन फतेह हो रहा है। छिटपुट विकास कार्य से लेकर सड़कों पर कटने वाले चालान तक मिशन फतेह के नाम में समा रहे हैं।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Tue, 09 Jun 2020 01:04 PM (IST)Updated: Tue, 09 Jun 2020 01:07 PM (IST)
ब्रांडिंग का फंडा 'मिशन फतेह', सरकार की इमेज बनाने के चक्कर में फंसे अफसर
ब्रांडिंग का फंडा 'मिशन फतेह', सरकार की इमेज बनाने के चक्कर में फंसे अफसर

जालंधर, [मनीष शर्मा]। नशामुक्त पंजाब, तंदुरुस्त पंजाब और अब मिशन फतेह... सुनने में भले ही फिल्मी नाम सरीखे लगते हैं लेकिन ऐसा है नहीं। यह सरकार की ब्रांडिंग के फंडे हैं। नशा पकड़ा तो नशामुक्त पंजाब में चला गया। फिर इसे तंदुुरुस्त पंजाब का नाम दिया। कोरोना आ गया तो अब राजनीतिक बाजार में नया नाम लांच कर दिया 'मिशन फतेह'। बात चाहे कोरोना मरीज ठीक होने या नेगेटिव आने की हो, सब मिशन फतेह हो रहा। यहां तक कि छिटपुट विकास कार्य से लेकर सड़कों पर कटने वाले चालान तक मिशन फतेह के नाम में समा रहे हैं। सरकार की मंशा तो 'इमेज' बनाने की है लेकिन बनाएं कैसे?, इससे अफसर 'चकराए' हुए हैं। सरकारी फरमान की मजबूरी है तो रोज कुछ न कुछ 'मसाला' तो परोसना है। अफसर कहते हैं रोज बैठक बुला लेते हैं और कुछ ना हो तो, फिर मुस्कुराते कहते हैं चालान तो रोज कट ही रहे हैं।

अब लाने का 'क्रेडिट' लेंगे

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कोरोना वायरस संकट काल में सरकार ना श्रमिकों के रहने-खाने का बंदोबस्त कर सकी और ना ही सुरक्षित आजीविका का कोई भरोसा दिया। नतीजा श्रमिक गृहराज्य लौट गए। इससे जालंधर भी अछूता नहीं रहा। परेशान पैदल जा रहे श्रमिक सरकार को भले ही ना दिखे हों लेकिन सड़कों पर डेरा डाले बेघर सभी को जरूर नजर आए। सरकार ने बदनामी के डर से आनन-फानन में पहल की और तुरंत केंद्र से बात करके ट्रेनें चलवा दी। रेलवे स्टेशन पर श्रमिकों को बाय-बाय कहने के लिए अफसर भी दिन-रात लगे रहे। मीडिया में अपनी पीठ भी थपथपाई। अब लॉकडाउन खुला तो फैक्ट्रियों को श्रमिक चाहिए। उद्योग मंत्री सुंदर शाम अरोड़ा आए तो कारोबारी बोले, बिना श्रमिक कैसे चलाएं फैक्ट्री। मंत्री तपाक से बोले, वापस लाने को ट्रेनें-बसें चलवा रहे हैं। तभी एक अफसर दूसरे के कान में बोला, देख लो यही है राजनीति, भेजने के बाद लाने का भी 'क्रेडिट' लेंगे।

कार में शारीरिक दूरी क्यों?

वैसे तो अंग्रेजों के समय में बने कई कानूनों को लेकर वाद-विवाद रहता ही है लेकिन आजकल कार और मास्क व शारीरिक दूरी को लेकर कुछ लोग कानून की जमकर 'टांग-खिंचाई' करने में लगे हुए हैं। कोरोना वायरस से बचने के लिए घर से बाहर निकलने पर मास्क अनिवार्य कर दिया गया है। लोग सवाल पूछते हैं कि अगर अकेले बंद कार में जा रहे हैं तो मास्क लगाना जरूरी है? परिवार के साथ जा रहे हैं तो कार में घर के लोगों से ही शारीरिक दूरी क्यों?, घर में सब इकट्ठे ही रहते हैं फिर कार में ऐसा कौन सा कोरोना हो जाएगा?। इस तर्क के साथ कुछ डॉक्टर भी मैदान में कूदे कि मास्क तो ऐसे नुकसान कर देगा। सवाल जिला मैजिस्ट्रेट वरिंदर शर्मा तक भी पहुंचा तो वो बोले कि कानून कहता है कि घर से बाहर निकलने पर मास्क व शारीरिक दूरी जरूरी है, यही माना जाएगा।

खाकी का डर अच्छा है

वैसे तो खाकी यानि पुलिस  अपराधियों से ज्यादा आम लोगों को डराती रही है लेकिन इन दिनों खाकी में खुद भी डर दिख रहा है। दरअसल, कोरोना के संक्रमण का खतरा अभी कम नहीं हुआ है। इसको पुलिस अधिकारी बखूबी समझ रहे हैं। तभी तो पुलिस कमिश्नरेट में पूरी सावधानी चल रही है। कमिश्नरेट का एक गेट बंद कर रखा है। जो गेट खुला है वहां पहले थर्मल इंफ्रारेड थर्मामीटर से शरीर का तापमान मापा जा रहा। फिर हाथ सैनिटाइज कराए जा रहे और तब अंदर एंट्री मिल रही है। खाकी अच्छी तरह से समझ रही कि महामारी में खुद ही बचना होगा। वैसे, एक और फायदा भी है कि लोग भले संक्रमण से बचने के लिए मास्क ना पहनें या शारीरिक दूरी ना रखें लेकिन यह भी खाकी का डर है कि डीसी दफ्तर के उलट कमिश्नरेट में यह तमाम सावधानियां लोग खुद ब खुद ही बरत रहे हैं।


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