उल्टा चश्माः कुर्सी को ढाई सालों से चेयरमैन का इंतजार, अपनों की नाराजगी से डर रही सरकार
चेयरमैन की अनुपस्थिति में मार्केट कमेटी के सचिव ही सब कार्य देख रहे हैं लेकिन दावेदारों को भी यह बात खल रही है कि उन्हें अपनी सरकार होने के बावजूद कुर्सी से महरूम रखा जा रहा है।
जालंधर [शाम सहगल]। जिले में मार्केट कमेटी की कुर्सी पिछले ढाई वर्षों से चेयरमैन के इंतजार में है। खास बात यह है कि इस पद के लिए मकसूदां सब्जी मंडी व नई दाना मंडी के कई आढ़ती जुगाड़ फिट करने में लगे हैंं। मार्केट कमेटी में सरकार की नुमाइंदगी करने वाले इस राजनीतिक पद पर आसीन होने के लिए कई कांग्रेसी नेता भी कतार में लगे हुए हैं। अधिक समय बीत जाने के साथ ही दावेदारों की संख्या में भी इजाफा हो रहा है। बताया जा रहा है कि दावेदारों की बड़ी संख्या के कारण अपनों की नाराजगी से बचने के लिए ही फिलहाल सरकार ने इस पद को खाली रखा है। बेशक, चेयरमैन की अनुपस्थिति में मार्केट कमेटी के सचिव ही सब कार्य देख रहे हैं लेकिन दावेदारों को भी यह बात खल रही है कि उन्हें अपनी ही सरकार होने के बावजूद चेयरमैनी की कुर्सी से महरूम रखा जा रहा है।
खर्च की दोहरी मार
मकसूदां स्थित नई सब्जी मंडी में फलों की रेहड़ी लगाने वाले इन दिनों खासी परेशानी झेल रहे हैं। कारण, सर्दी का सीजन ऑफ हो रहा है और गर्मी के सीजन का फल मंडी में पहुंचा नहीं है। मंदी के इस दौर में साइकिल स्टैंड के ठेकेदार द्वारा उनसे वसूली जले पर नमक छिड़कने जैसी है। खास बात यह है कि यह पर्ची केवल 12 घंटे के लिए ही मान्य है। अब मंडी को सुबह साढ़े चार-पांच बजे ही सज जाती है और आए हुए माल की बोली भी शुरू हो जाती है। मजबूरीवश रेहड़ी वालों को भी खरीददारी के लिए उसी समय मंडी में जाना पड़ता है। माल खरीद कर वहीं रेहड़ी लगानी पड़ती है। ऐसे में शाम पांच बजे के बाद उन्हें दोबारा रेहड़ी की अदायगी करनी पड़ती है। बेचारे रेहड़ी वाले अपना दुखड़ा सुनाए भी तो किसे। क्यों कि ठेका देने बाद मंडी बोर्ड भी मजबूर है।
ना हटी फडिय़ां, वसूली जारी
मकसूदां सब्जी मंडी में फडिय़ों को लेकर पिछले लंबे समय से राजनीति की जा रही है। कभी फडिय़ां हटा दो, तो कभी रहने दो वाले हालात मंडी में आज भी बरकरार हैं। एक बार तो पुलिस फोर्स लगाकर तथा मुनादी करवाकर बाकायदा फडिय़ों को उठाने का काम शुरू भी होने जा रहा था कि ऐन मौके पर एक फोन काल ने सब कुछ रुकवा दिया। दरअसल, इसके पीछे भी बड़ी राजनीति थी। मंडी में कुछ आढ़ती फडिय़ां अपनी दुकानों के आगे लगवा इनसे वसूली करते हैं। ऐसे में उनका धंधा चौपट हो रहा था। अब बिना काम के पैसे आते किसको अच्छे नहीं लगते। अब आढ़ती हैं तो जाहिर है कि कमाई भी मोटी होगी। इसी कमाई से कई नेताओं को चुनाव में फंड भी देते हैं। जब आढ़तियों के धंधे पर आंच आई तो उन्होंने तुरंत राजनीतिक कनेक्शन जोड़े और प्रशासनिक व पुलिस अधिकारियों को फडिय़ां हटाने से रोक दिया।
कारोबारियों में पूल का खेल
प्याज के धंधे में वारे न्यारे करने वाले थोक कारोबारियों ने भी इस बार पूल का खेल खूब खेला। यही कारण था कि अफगानिस्तान, तुर्की व पाकिस्तान से प्याज मंगवाए जाने के बावजूद दामों में खासी गिरावट नहीं हो सकी। हालांकि, स्थिति से अवगत होते ही पंजाब सरकार ने खाद्य व आपूर्ति विभाग को जमाखोरी व कालाबाजारी करने वालों पर छापेमारी के आदेश दिए थे। लेकिन, जमीनी स्तर पर आदेश भी महज औपचारिकता ही साबित हुए। कारण स्थिति से वाकिफ थोक कारोबारियों ने विभाग की कार्रवाई से पहले ही स्टॉक को शहर से बाहर एडजस्ट कर लिया था। यही वजह थी कि तमाम प्रयासों के बाद भी खाद्य आपूर्ति विभाग के हाथ खाली रहे। छापेमारी की समय सीमा खत्म होते ही फिर से प्याज मंडी के आसपास बने गोदामों में स्टाक किया जाने लगा। जो आज भी जारी है। जब भी किसी सब्जी की कमी होने लगती है आढ़ती पूल बनाकर मनमर्जी के दाम लोगों से वसूल लेते हैं।