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जालंधर के प्रसिद्ध इतिहासकार दीपक जालंधरी बोले- चंचल के निधन से भजन गायकी के एक युग की समाप्ति

अमृतसर के कवि चमन लाल जोश ने फिल्मी धुनों पर माता के कुछ भजन लिखे जिसके गाने से चंचल को खूब ख्याति मिली। 1965 के भारत-पाक युद्ध में नरेंद्र चंचल ने भारतीय सैनिकों के लिए कई गीत गाए। धीरे-धीरे उनकी काफी पहचान हो गई।

By Rohit KumarEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 12:50 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 12:50 PM (IST)
जालंधर के प्रसिद्ध इतिहासकार दीपक जालंधरी बोले- चंचल के निधन से भजन गायकी के एक युग की समाप्ति
चंचल का पहला भगवती जागरण जालंधर के खिंगरा गेट के सामने महंत दीवान चंद ने करवाया था।

जालंधर, जेएनएन। भजन सम्राट नरेंद्र चंचल के जीवन को एक भजन गायक के संघर्ष की समर्पित कथा भी कहा जा सकता है। अमृतसर की नमक मंडी में 16 अक्टूबर, 1940 को उनका जन्म हुआ। माता कैलाशवती महाकाली की उपासक थीं। वह उन्हें अपना पहला गुरु मानते थे। संगीत की विधिवत शिक्षा उन्होंने प्रेमनाथ त्रिखा से ली थी। चंचल शुरुआत से ही फिल्मी गीत बहुत मधुर आवाज में गाते थे और बुल्लेशाह के सूफी कलाम से प्रभावित थे। अमृतसर के कवि चमन लाल जोश ने फिल्मी धुनों पर माता के कुछ भजन लिखे, जिसके गाने से चंचल को खूब ख्याति मिली। 1965 के भारत-पाक युद्ध में नरेंद्र चंचल ने भारतीय सैनिकों के लिए कई गीत गाए। धीरे-धीरे उनकी काफी पहचान हो गई।

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उनका पहला भगवती जागरण जालंधर के खिंगरा गेट के सामने महंत दीवान चंद ने करवाया था। यहां आजकल वैष्णों देवी मंदिर है। वह अकसर कहा करते थे कि भगवती माता की आराधना में जब वह भजन गाने लगते हैं तो आत्म केंद्रित हो जाते हैं। केवल इतना याद रखते हैं कि मां भगवती उनके भजन सुन रही हैं। चंचल को अपनी सीमाओं का एहसास था। वह कभी हल्के-फुल्के शब्दों में भजन नहीं गाया करते थे। कहा करते थे कि वह जो कुछ भी हैं, महारानी जगदंबे की भजन गायकी की वजह से हैं। उन्होंने फिल्मों के लिए भी काफी गाने गाए, इनमें कुछ भजन भी थे।

राज कपूर के आग्रह पर उन्होंने बाबी फिल्म का जो गाना गाया, वह लोकप्रियता की हदें पार कर गया। इसके लिए उन्हें फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला था। इससे पहले हरिदत्त की फिल्म 'उडीकां' के लिए उन्हें अवार्ड भी मिल चुका था। राज कपूर इन्हें अपने साथ मास्को भी ले गए। यह चंचल की पहली विदेश यात्रा थी। इसके बाद जार्जी भल्ली की बदौलत नरेंद्र चंचल यूरोप के बहुत से देशों में मां भगवती का जागरण करने लगे। जालंधर के श्री देवी तालाब मंदिर में तत्कालीन पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हाथों 'भगत ध्यानू अवार्ड' से भी सम्मानित हुए। नरेंद्र चंचल बहुत ही शालीन स्वभाव के थे। वह संबंधों को मधुर बनाए रखना जानते थे। इसलिए उनके मित्रों की बहुत बड़ी संख्या देश-विदेश में है। उनके निधन से न सिर्फ देश-विदेश में शोक की लहर दौड़ गई, बल्कि भजन गायकी के एक युग की समाप्ति हो गई।

-दीपक जालंधरी, लेखक व प्रसिद्ध इतिहासकार, नरेंद्र चंचल के करीबी।


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