Punjab Street Food: कोयले पर कढ़ती कढ़ी की खुशबू से महक जाता है पूरा बाजार, तीन घंटे में होती है तैयार
जालंधर के रैणक बाजार स्थित बिल्ला कढ़ी-चावल वाले की रेहड़ी लोगों को अपनी तरफ खींच लाती है। 60 साल पहले तुलसी दास गांधी ने रेहड़ी पर कढ़ी-चावल बनाकर बेचने शुरू किए थे। आज उनकी तीसरी पीढ़ी के संदीप कढ़ी-चावल परोस रहे हैं।
मनोज त्रिपाठी, जालंधर। खेल नगरी जालंधर अपने स्ट्रीट फूड के लिए अत्यंत प्रसिद्ध है। यहां कई ऐसी मशहूर रेहड़ियां और दुकानें हैं, जिनमें बने समोसे, छोले-भटूरे और अन्य व्यंजनों का स्वाद चखने लोग दूर-दूर से आते हैं।आज हम बात कर कर रहे हैं जालंधर की प्रसिद्ध कढ़ी की। जिसका स्वाद 60 साल से बदस्तूर लोगों को पसंद आ रहा है।
मिलाप चौक से रैणक बाजार की तरफ जाने वाली सड़क पर 200 मीटर अंदर जाने के बाद स्थित बिल्ला कढ़ी-चावल वाले की रेहड़ी लोगों को अपनी तरफ खींच लाती है। कारण इनके कढ़ी-चावल का स्वाद है। इस सड़क पर करीब 50 मीटर पहले से ही बिल्ला की कढ़ी की खुशबू भीड़-भाड़ वाले रास्ते पर भी आने लगती है। 60 साल पहले तुलसी दास गांधी ने रेहड़ी पर कढ़ी-चावल बनाकर बेचने शुरू किए थे। उनके बाद उनकी दूसरी पीढ़ी हेमराज गांधी और अब तीसरी पीढ़ी के संदीप कढ़ी-चावल परोस रहे हैं।
लकड़ी व कोयले से पकाने के कारण हुई प्रसिद्ध
मजेदार बात यह है कि रेहड़ी भी वही है जो 60 साल पहले तुलसी दास ने बनवाई थी। रेहड़ी के पीछे लकड़ी व कोयले की टाल थी। आज टाल तो है, लेकिन कभी-कभी खुलती है। बिल्ला की रेहड़ी पर कढ़ी व चावल के स्वाद का सबसे बड़ी कारण भी इसी टाल की लकड़ी व कोयला है। इनकी रेहड़ी पर गैस पर कढ़ी नहीं बनाई जाती है, बल्कि कढ़ी को बनाने के लिए लकड़ी व कोयले का इस्तेमाल किया जाता है। संदीप बताते हैं धीमी-धीमी आंच में तीन घंटे में कढ़ी तैयार होती है।
चावल कम और कढ़ी ज्यादा
रेट भी इन्होंने काफी कम रखे हैं। आस-पास के इलाकों के लोग घरों में खाने के लिए भी कढ़ी मंगवाते हैं इसलिए चावल कम और कढ़ी ज्यादा बनाते हैं। रोजाना करीब 50 से 60 लीटर कढ़ी की बिक्री होती है। कढ़ी के ऊपर डालने के लिए विशेष प्रकार के मसाले को बिल्ला खुद तैयार करते हैं।
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