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हमें तो अपनों ने लूटा...जानें डीसी ऑफिस की ये अजीब 'कोरोना' कहानी

शहर में बड़ी संख्या में कोरोना पॉजिटिव पाए जाने से हड़कंप मचा था। इस बीच यह शोर भी मच गया कि नए डीसी का अभिनंदन करने वालों में भी एक पॉजिटिव था।

By Pankaj DwivediEdited By: Published: Thu, 25 Jun 2020 01:46 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 01:46 PM (IST)
हमें तो अपनों ने लूटा...जानें डीसी ऑफिस की ये अजीब 'कोरोना' कहानी
हमें तो अपनों ने लूटा...जानें डीसी ऑफिस की ये अजीब 'कोरोना' कहानी

जालंधर, [मनुपाल शर्मा]। बीते दिनों नए डिप्टी कमिश्नर का अभिनंदन करने पहुंचे शहर की अर्थव्यवस्था के सूत्रधारों में कोरोना को लेकर ही जंग होती दिखाई दी। शहर में बड़ी संख्या में लोगों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने से हड़कंप मचा था। इस बीच यह शोर भी मच गया कि अभिनंदन करने वालों में भी एक कोरोना पॉजिटिव था। बात यहां तक फैल गई कि अब तो जिलाधिकारी को ही क्वारंटाइन होना पड़ जाएगा। हालांकि यह अफवाह साबित हुई। आखिर शाम तक जिन खबरनवीसों पर निशाना साधा जा रहा था, उन्हीं के माध्यम से पता चला कि यह सब किया धरा उनके किसी अपने का ही था, जो अभिनंदन के लिए खुद भी साथ आया था। अब चर्चा तो यह भी है कि इस 'अपने' ने एक नेता के कहने पर ऐसा किया। खास बात यह है कि पूर्व में नेता जी इस खास को चुनाव लड़वाते रहे और उसके बाद प्रधान भी बनवाते रहे।

आज जुड़वा रहे हैं हाथ
दो महीने की तालाबंदी के बाद शुरू हुई इंडस्ट्री के समक्ष अब अनस्किल्ड लेबर की समस्या खड़ी हो गई है। इंडस्ट्री संचालक मजबूरी में अब इनकी सभी शर्तें भी मान रहे हैं। ये लोग वे हैं जो केवल इंडस्ट्री में सामान एक जगह से दूसरी जगह रखने का काम करते हैं और किसी भी तरह का तकनीकी काम करने में माहिर नहीं हैं। लॉकडाउन से पहले तक यही लेबर मिन्नतें कर इंडस्ट्री में नौकरी पाती थी और हाथ जोड़कर वेतन भी। अब यही अनस्किल्ड लेबर इंडस्ट्री संचालकों के साथ काम करने को लेकर मोलभाव कर रही है। इंडस्ट्री संचालकों के मुताबिक स्किल्ड लेबर तो गृह राज्य लौटी नहीं थी। अनस्किल्ड लेबर ही गई थी और अब उसी की इंडस्ट्री में सबसे ज्यादा किल्लत है। यही वजह है कि मजबूरी में 25 फीसद ज्यादा वेतन और शर्तें मानकर इनसे काम करवाया जा रहा है।

निजी बस ऑपरेटरों का संतोष
तीन माह से ज्यादा का समय गुजर चुका है, लेकिन निजी बसें सड़क पर दौड़ती नहीं दिखाई दे रही हैं। निजी बस ट्रांसपोर्ट कंपनियां किसी तरह से अपने स्टाफ की जरूरत को पूरा कर रही हैं, लेकिन ट्रांसपोर्ट संचालकों को सरकारी बसों के हालात देखकर अपनी बसें न चलाने के फैसले से संतुष्टि जरूर मिल रही है। सरकारी बसों में सरकारी हिदायतों के मुताबिक 50 फीसद क्षमता से ज्यादा यात्री नहीं बिठाए जा सकते हैं लेकिन एक बस में 25 यात्री इकट्ठे कर पाना भी सरकारी अमले के लिए भारी चुनौती बना हुआ है। हालात यह है कि सरकार को अब पनबस के मुलाजिमों को वेतन देने के लिए भी अगले महीने से सोचना पड़ेगा। निजी बस ऑपरेटर यात्रियों की भारी किल्लत के मद्देनजर कई तरह की छूट मांग कर रहे हैं। हालांकि वे इससे संतुष्ट हैं कि बसें चलाकर कम से कम घाटा तो नहीं उठाना पड़ रहा।

नेताओं में धरने की होड़
लॉकडाउन के लॉक से निकलने के बाद एक बार फिर से नेताओं और राजनीतिक दलों को लोकहित याद आ गया है। लगभग तीन माह तक जनता को उसी के हाल पर छोड़ देने वाली राजनीतिक दलों के नेता अब फिर से नेतागिरी करते दिखाई दे रहे हैं। लोकहित में सरकार के खिलाफ धरने दिए जा रहे हैं। अफसरशाही को ज्ञापन भी सौंपे जा रहे हैं। यही नहीं साथ ही में कोरोना महामारी के बीच शारीरिक दूरी के सिद्धांत की जमकर धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। इतना ही नहीं, राजनीतिक दलों के नेता अपना प्रभाव लोगों को दिखाने के लिए भीड़ को एकत्रित कर धारा 144 भी तोड़ रहे हैं। हालांकि जनता में नेताओं के इस प्रयास का कोई ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ रहा है। वजह यह है कि तीन माह तक अपने बलबूते पर खुद को बचाए रखने वाली जनता अब राजनीतिक पार्टियों की जरूरत ज्यादा महसूस नहीं कर रही है।

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