शहर दरबारः ‘चाचा चौधरी’ की मुश्किल और पानी ने छुड़ाया नेताओं का पसीना
‘चाचा चौधरी’ अब इस शर्त पर उतर आए हैं कि अगर बेटे को चेयरमैन नहीं बनाना तो दुश्मन को भी न बनाओ। पूरा जोर लगा रहे हैं कि सियासी दुश्मन चेयरमैन न बन पाए।
जालंधर, जेएनएन। जिले के राजनेता अक्सर सुर्खियों में रहते हैं। कभी पार्टी में आपसी खींचतान के लिए तो कभी शहर में विकास कार्य न करवा पाने के कारण। आइए डालते हैं नजर इस सप्ताह लोगों के बीच चर्चा में रहीं कुछ राजनीतिक गतिविधियों पर। इन्हें चुटीले अंदाज में प्रस्तुत कर रहे हैं दैनिक जागरण संवाददाता जगजीत सिंह सुशांत।
चेयरमैनी और ‘चाचा चौधरी’
‘चाचा चौधरी’ आजकल बड़ी दुविधा में हैं। मामला जिले की एक बड़ी चेयरमैनी से जुड़ा है। महिला नेता और तेजतर्रार नेता के बीच पेंच फंसा था कि अचानक ‘चाचा चौधरी’ ने अपने बेटे का नाम आगे बढ़ा दिया। इसी के साथ एक ऐसा नाम आ गया जो दुश्मन भी है और बेटे के मुकाबले अधिक सशक्त भी। ‘चाचा चौधरी’ अब इस शर्त पर उतर आए हैं कि अगर बेटे को चेयरमैन नहीं बनाना तो दुश्मन को भी न बनाओ। पूरा जोर लगा रहे हैं कि सियासी दुश्मन चेयरमैन न बन पाए। अगर दुश्मन चेयरमैन बन जाता है तो राजनीति से बेटा पक्के तौर पर आउट भी हो सकता है। इस खींचतान में महिला नेता की लाटरी लग सकती है, क्योंकि उनके नाम पर सहमति बनी दिख रही है। तेजतर्रार नेता ने भी लॉबिंग तेज कर दी है।
बदली का इंतजार
कभी भ्रष्टाचार को लेकर चर्चा तो कभी काम न होने से शिकायतों की गूंज। इस विभाग के चर्चे तो हर जुबान पर हैं। ऐसे हालात में अफसर भी काम करने से बच रहे हैं। अफसरों का फोकस अब काम पर कम और ट्रांसफर के लिए लॉबिंग करने में ज्यादा है। अफसरों से परेशान विभाग के बॉस के लिए परेशानी पहले से ज्यादा बढ़ गई है। लोकसभा चुनाव में भी हार का ठीकरा फूटा था। अफसरों के ऐसे अंदाज के बीच अब जो भी काम शुरू होता है वह सिरे नहीं चढ़ पाता। प्रोजेक्ट का काम अभी पूरा भी नहीं होता कि अफसर बदल जाता है। नया अफसर नए अंदाज में काम शुरू करता है। पुराने काम पर पानी फिर जाता है। हाल ही में दो अफसर बदले हैं और सबसे बड़ा अफसर भी बदली के आर्डर आने के इंतजार में है। नेता जी बस बेबस हैं।
पसीना बहाता पानी
सर्दी बहुत है, लेकिन नेताओं के पसीने छूट रहे हैं। मामला पानी से जुड़ा है। अब सभी को पानी का बिल तो देना ही पड़ेगा। जब तक यह लागू करने का समय आएगा तब तक सिर पर चुनाव आ जाएंगे। पानी का बिल लेने का हुक्म महाराजा का है, इसलिए छोटे को तो मानना ही पड़ेगा। बीच का रास्ता निकालने की कोशिश भी की जा रही है। मुश्किल यह है कि इस पर खुल कर बात भी नहीं कर सकते। रेट तय करने को जब बैठते हैं तो फोन खड़क जाते हैं कि कुछ गड़बड़ न कर देना। यही रेट तय नहीं होने दे रहा। लोगों को पानी कितना मिलेगा, किस भाव मिलेगा, यह तो लंबी गेम है, लेकिन नेताओं का पसीना खूब निकल रहा है। देखना यह है कि इस चक्कर में सीट न निकल जाए।
मैडम से मुश्किल
मामला ‘ट्रस्ट’ यानी विश्वास से जुड़ा है। बड़ी कुर्सी पर बैठ कर भी साहब के काबू में नंबर दो नहीं है। माननीयों ने तो पहले से हुक्म दे दे कर नींद उड़ाई हुई है, ऊपर से मैडम काम में रुकावट बनी रहती हैं। उन्हें कहीं और भेजने के कोशिश भी सफल नहीं हो रही। काम अधूरे पड़े हैं। नई स्कीमें तो बहुत हैं, लेकिन समय हाथ से रेत की तरह निकलता जा रहा है। मुश्किल इसलिए ज्यादा है कि उस चीज के लिए भुगत रहे हैं जो कसूर नहीं किया। लेकिन इसका कोई हल भी नहीं है। शहर के हलका बॉस भी मैडम के खिलाफ थे लेकिन मामला ऐसा घूमा कि सभी को इस मामले में यू-टर्न लेना पड़ा। मिस्टर विश्वास कई बार राजधानी के चक्कर भी लगा आए हैं लेकिन सुपर बॉस भी कुछ नहीं कर पा रहे। ऐसे में काम में ‘इंप्रूवमेंट’ की कोई भी उम्मीद नजर नहीं आ रही।